राज्य के पास खान एवं खनिज अधिनियम के तहत नियम बनाने की शक्ति है: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

राज्य के पास खान एवं खनिज अधिनियम के तहत नियम बनाने की शक्ति है: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुष्टि की है कि राज्य के पास खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम के तहत नियम बनाने का पूरा अधिकार है
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुष्टि की है कि राज्य के पास खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम के तहत नियम बनाने का पूरा अधिकार है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि कानून में दिए नियमों के आधार पर, राज्य खनिजों, विशेष रूप से गौण खनिजों के परिवहन पर पूर्ण नियंत्रण रखता है।

खान एवं खनिज (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1957 की धारा 4 (1-ए) के अनुसार, राज्य सरकार के पास खनिजों के परिवहन की निगरानी करने की व्यापक शक्ति है। यह नियंत्रण राज्य के भीतर और राज्यों के बीच दोनों क्षेत्रों में है, जैसा कि 18 अगस्त, 2023 को उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट का यह भी कहना है कि राज्य को खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम की धारा 15-1 के तहत नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है।

इस मामले में न्यायाधीश महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि "2020 नियमावली का नियम 21(4) और नियम 70(2) के साथ-साथ 2021 उत्तर प्रदेश खनन और रियायत नियमावली 2021 के नियम 21(5) और नियम 72(2) के एमएमडीआर अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हैं।

गौरतलब है कि याचिकाकर्ता मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में गौण खनिजों के दोहन, परिवहन और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा है। उसने उत्तर प्रदेश गौण खनिज (रियायत) नियमावली, 1963 के 48वें संशोधन के साथ-साथ उत्तर प्रदेश गौण खनिज (रियायत) नियमावली 2020 के नियम 21 (4) और नियम 70 (2) सहित कई प्रावधानों को कानूनी रूप से चुनौती दी थी। इसके अतिरिक्त, उसने 24 फरवरी, 2020 को जारी एक सरकारी आदेश और 10 अगस्त, 2022 को जारी एक अन्य आदेश का भी विरोध किया था।

याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि 48वें संशोधन के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश गौण खनिज (रियायत) नियम 2020 को अधिसूचित किया था, जिसके तहत राज्य सरकार ने नियम 21 (4) जोड़ा है।

वहीं संशोधित नियम 2020 के तहत, नियम 21 (4) राज्य सरकार को अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश में परिवहन किए गए खनिजों पर विनियमन शुल्क लगाने का अधिकार देता है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह भी तर्क दिया है कि "उत्तर प्रदेश की तुलना में अन्य राज्यों में लघु खनिजों की दर में अंतर के कारण विनियमन शुल्क लगाया गया है।" उनके मुताबिक विनियमन शुल्क लगाने का यह तर्क उस मूल उद्देश्य के विपरीत है जिसके लिए नियम बनाए गए हैं।" 

क्षिप्रा के किनारे नहीं चल रही खनन गतिविधियां: समिति रिपोर्ट

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निरीक्षण के दौरान क्षिप्रा नदी और उसके किनारों पर किसी तरह की खनन गतिविधि नहीं देखी पायी गयी। न ही निरीक्षण के दौरान नदी में ठोस कचरे के निपटान के सबूत मिले हैं।

हालांकि, उज्जैन में क्षिप्रा शुद्धिकरण योजना के हिस्से के रूप में 11 बिंदु हैं जहां नालों को रोककर उन्हें पुनर्निर्देशित किया जाता है। कई बार बिजली कटौती और यांत्रिक समस्याओं के कारण इन नालों से होने वाला अतिप्रवाह क्षिप्रा में मिल जाता है, जिससे वो नदी को प्रदूषित करता है।

यह बाते मध्य प्रदेश में उज्जैन, देवास, रतलाम और इंदौर की संयुक्त समिति ने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में कही हैं। रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की  सेंट्रल बेंच द्वारा 20 अप्रैल, 2023 और 13 जुलाई, 2023 को दिए आदेश पर कोर्ट में सबमिट की गई है। पूरा मामला क्षिप्रा नदी प्रदूषण और देवास, उज्जैन, इंदौर और रतलाम में नदी की स्थिति से जुड़ा है।

जानकारी मिली है कि हवानखेड़ी के पास नागधामन नाला और मरेठी के पास मेंडकी नाला क्षिप्रा नदी में मिलते हैं। देवास में औद्योगिक क्षेत्र के ऊपर, आवासीय क्षेत्र हैं जहां घरों से निकलने वाला दूषित पानी औद्योगिक क्षेत्र से गुजरने वाले नागधामन नाले में जाता है। वर्तमान में, देवास नगर निगम द्वारा तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए गए हैं। हालांकि ये संयंत्र देवास शहर के नालों में बहते अपशिष्ट जल का उपचार नहीं कर रहे हैं।

जांच के दौरान उज्जैन में पीलिया खाल नाले में कोई अवरोधन या मार्ग परिवर्तन नहीं पाया गया। इस प्रकार, पीलिया खाल नाला सीधे क्षिप्रा नदी में गिरता है। उज्जैन नगर निगम की एसटीपी एवं अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र परियोजना निविदा चरण में है। इसी तरह, मोती नगर नाला क्षिप्रा नदी से मिलता है और इसमें डायवर्जन सुविधा का अभाव है।

उज्जैन नगर निगम ने शहर के बाकी हिस्सों के लिए अमृत 2.0 के तहत सीवरेज योजना के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है। यह भी पता चला है कि उज्जैन के भेरूगढ़ क्षेत्र में छपाई और रंगाई जैसे छोटे उद्योगों द्वारा पैदा हो रहा रंगीन अपशिष्ट जल सीधे सिद्धवट के पास क्षिप्रा नदी में मिल रहा है।

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