पोरस लैबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड की एक यूनिट से 03 जून 2022 को हुए गैस रिसाव की जांच के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छह सदस्यीय समिति को घटना की जांच के निर्देश दिए हैं। मामला आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम का है। कोर्ट ने समिति को घटना के कारणों की जांच के साथ-साथ भविष्य में इस तरह की घटना दोबारा न हो उसके लिए भी उपाय ढूंढने के लिए कहा है।
03 अगस्त 2022 को दिए आदेश में कोर्ट ने कहा है कि समिति ऐसे संभावित क्षेत्रों और उद्योगों को चिन्हित करे जहां इस तरह की घटनाएं हो सकती है। इससे घटना की जवाबदेही तय करने के साथ-साथ दुर्घटना के मामले में प्रदूषकों का पता लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं इसकी मदद से भविष्य में इस तरह की घटनाओं से निपटने के उपाय किये जा सकते हैं। एनजीटी ने समिति को अगले तीन महीनों के भीतर रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि इस मामले में कोर्ट ने एक रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाही शुरू की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पोरस लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड, विशाखापत्तनम से हुए गैस रिसाव से 178 महिला श्रमिकों के स्वास्थ्य को असर पहुंचा है।
इस मामले में एनजीओ 'साइंटिस्ट्स फॉर पीपल' की ओर से अदालत में दाखिल रिपोर्ट में कहा गया है कि सीड्स इंटिमेट अपैरल फैक्ट्री और पोरस लैब जिनसे गैस रिसाव हुआ है वो आंध्रप्रदेश इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (एपीआईआईसी) के स्पेशल इकोनॉमिक जोन में है। उद्योग से हुए अमोनिया के रिसाव में 369 महिला श्रमिक चपेट में आ गई थी।
इस मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का कहना था कि यह गैस रिसाव पोरस लैब प्राइवेट लिमिटेड से न होकर मेसर्स ब्रैंडिक्स अपैरल इंडिया लिमिटेड से हुआ था।
चमड़ा उद्योग के केंद्र जाजमऊ में नहीं है कोई सीवेज नेटवर्क: उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि चमड़ा उद्योग के केंद्र जाजमऊ, कानपुर में कोई सीवेज नेटवर्क नहीं है। साथ ही रिपोर्ट का कहना है कि जाजमऊ क्षेत्र में पैदा होने वाला बिना साफ किया घरेलू सीवेज भी औद्योगिक प्रवाह के साथ मिश्रित हो रहा है जो कन्वेक्शन चैनल के माध्यम से सीईटीपी में जाता है।
गौरतलब है कि जाजमऊ के कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) में 9 एमएलडी टेनरी एफ्लुएंट और 27 एमएलडी घरेलू सीवेज एफ्लुएंट को ट्रीट करने की क्षमता है। इस क्षेत्र की सभी चमड़ाशोधन इकाइयां मुख्य रूप से एक कन्वेक्शन चैनल के माध्यम से उपचारित अपशिष्ट का निर्वहन करती हैं, जिसे आगे 4 पंपिंग स्टेशनों की मदद से 36 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) की क्षमता वाले सीईटीपी प्लांट में भेज दिया जाता है। इस प्लांट को 9 एमएलडी टेनरी एफ्लुएंट और 27 एमएलडी घरेलू सीवेज से मिश्रित अपशिष्ट के उपचार के लिए डिजाईन किया गया है।
जानकारी मिली है कि इस कन्वेक्शन चैनल, पंपिंग स्टेशनों का रखरखाव और सीईटीपी का संचालन कानपुर जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाईद्वारा किया जाता है। रिपोर्ट से पता चला है कि कानपुर नगर के राखी मण्डी क्षेत्र में कोई जहरीला वेस्ट नहीं डाला जा रहा है न ही भूजल के नमूनों में प्रदूषण के निशान मिले हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में इसके उपचार की कोई आवश्यकता नहीं है।
इस क्षेत्र में राखी मण्डी वासियों को 15 जनवरी, 2020 से उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा जलापूर्ति की जा रही है। वहां कुल 225 घरेलू कनेक्शन दिए गए हैं। इसी तरह 15 जुलाई, 2020 से ग्राम खानचंदपुर, रानिया के निवासियों को साफ पानी की आपूर्ति की जा रही है।
यह रिपोर्ट कानपुर के जाजमऊ में चमड़ा उद्योग द्वारा होते जल प्रदूषण और रानिया, कानपुर देहात और राखी मंडी में क्रोमियम डंप के चलते होते जल प्रदूषण के मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा सबमिट की गई है।