किशनगढ़ में मार्बल स्लरी की खतरनाक डंपिंग पर एनजीटी सख्त, जांच के लिए समिति गठित

किशनगढ़ डंपिंग साइट करीब 82 एकड़ में फैली है। इस डंपिंग यार्ड में रोजाना 5,500 मीट्रिक टन से अधिक मार्बल स्लरी डाली जाती है
किशनगढ़ में मार्बल स्लरी की खतरनाक डंपिंग पर एनजीटी सख्त, जांच के लिए समिति गठित
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मार्बल स्लरी के खतरनाक और अवैज्ञानिक तरीके से निपटान के मामले में दो सदस्यीय संयुक्त समिति को मौके पर जाकर निरीक्षण करने और तथ्यों व कार्रवाई पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला राजस्थान के अजमेर जिले के किशनगढ़ का है।

यह आदेश 4 जुलाई, 2025 को एनजीटी की बेंच ने न्यायमूर्ति शिव कुमार सिंह की अध्यक्षता में पारित किया गया।

यह आदेश एनजीटी की बेंच ने न्यायमूर्ति शिव कुमार सिंह की अध्यक्षता में पारित किया। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में राजस्थान सरकार, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), अजमेर के जिलाधिकारी और किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन से भी जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता द्रुपद मलिक का कहना है किशनगढ़ डंपिंग साइट लगभग 82 एकड़ में फैली हुई है। इस डंपिंग यार्ड में रोजाना 1,200 से अधिक मार्बल प्रसंस्करण इकाइयों से 5,500 मीट्रिक टन से अधिक मार्बल स्लरी डाली जाती है। यह एशिया के सबसे बड़े स्लरी निपटान साइटों में से एक है।

मगर इतनी बड़ी मात्रा में स्लरी का निपटान बुनियादी पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के बिना किया जा रहा है। यहां न तो स्लरी को रोकने के लिए कोई विशेष लाइनिंग सिस्टम है, न डस्ट कंट्रोल व्यवस्था, न ही हवा या भूजल की निगरानी का कोई तंत्र है। इसके साथ ही सुरक्षा के लिए ग्रीन बेल्ट भी नहीं है।

स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर मंडरा रहा खतरा

इसके चलते भूजल प्रदूषण, कृषि भूमि की गुणवत्ता में गिरावट और गंभीर धूल प्रदूषण हो रहा है, जिससे स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।

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याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2023 में स्लरी प्रबंधन के लिए केवल ड्राफ्ट दिशानिर्देश जारी किए थे, जो अब तक आधिकारिक रूप से लागू नहीं हुए हैं।

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों ने इस अनियमित डंपिंग के स्वास्थ्य और पारिस्थितिक प्रभावों को दर्ज किया है। हालांकि, इन जानकारियों का उपयोग नियामक अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया, और न ही विशेषज्ञों को समाधान प्रक्रिया में शामिल किया गया है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह डंपिंग यार्ड अब घूमने और फोटोग्राफी का स्थान बनता जा रहा है, जिससे आम लोग बिना किसी सार्वजनिक चेतावनी या प्रतिबन्ध के सीधे जहरीली धूल के संपर्क में आ रहे हैं।

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