
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जम्मू-कश्मीर लेक कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (एलसीएमए) और श्रीनगर नगर निगम को निर्देश दिए हैं कि वे बरारी नंबल झील की बहाली के लिए ठोस कदम उठाए और अब तक उठाए कदमों की विस्तृत जानकारी एक रिपोर्ट के रूप में अदालत के सामने प्रस्तुत करे।
यह निर्देश एक सितंबर 2025 को हुई सुनवाई के दौरान दिए गए हैं।
इससे पहले, 29 अगस्त 2025 को जम्मू-कश्मीर राज्य प्रदूषण नियंत्रण समिति ने झील की वर्तमान स्थिति का खुलासा किया था। इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्व रिकॉर्ड में बरारी नंबल झील का क्षेत्रफल 43 हेक्टेयर दर्ज है, लेकिन उपग्रह (जीआईएस) छवियों के अनुसार यह घटकर 41.71 हेक्टेयर रह गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक यह झील नौपोरा चैनल के जरिए डल झील से जुड़ी है और पारिस्थितिकी की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यह डल झील के अतिरिक्त पानी को फतेह कदल के रास्ते झेलम नदी में प्रवाहित करके जल संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
गंदे नालों और खराब सीवेज प्रबंधन से उपजा संकट
निरीक्षण के दौरान पाया गया कि बाबडैम क्षेत्र में सीवेज प्रबंधन की स्थिति बेहद खराब है। दो बड़े नाले सीधे झील में गिरते हैं, जो लैगून में बढ़ रहे प्रदूषण का मुख्य कारण हैं।
बरारी झील के पास दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) मौजूद हैं, जिनकी क्षमता क्रमशः 16.1 और 17.1 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। इनमें से एक प्लांट का संचालन जम्मू-कश्मीर लेक कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी कर रही है, जो शुद्ध किए गए पानी को सीधे झील में छोड़ती है। दूसरा प्लांट, जिसे अर्बन एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने शुरू किया है, वह अपने साफ किए पानी को झील और झेलम नदी, दोनों में छोड़ रहा है।
हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एनजीटी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप काम नहीं कर रहे। इसके अलावा, पूरी तरह से शुद्ध न किए गए सीवेज को बड़ी मात्रा में झील में छोड़ा जा रहा है, जिससे पानी की गुणवत्ता काफी खराब हो गई है। पानी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड, केमिकल ऑक्सीजन डिमांड के साथ-साथ अन्य पोषक तत्वों का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है।
जल गुणवत्ता चिंताजनक
झील के विभिन्न स्थानों से लिए गए पानी के नमूनों के परीक्षण में पाया गया है कि सभी जगहों पर पानी की गुणवत्ता क्लास-बी (बाहरी स्नान योग्य जल) के मानकों पर खरी नहीं उतरती।
इसी तरह पानी में घुली ऑक्सीजन, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड और फीकल कोलीफॉर्म का स्तर तय मानकों से अधिक है, जिसका कारण झील में सीवेज और घरेलू गंदगी का मिलना है। इससे पानी नहाने या अन्य उपयोग के लायक नहीं रह गया है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल व ईश्वर सिंह की बेंच ने अपनी टिप्पणी में कहा कि न केवल झील का क्षेत्रफल घटा है, बल्कि सीवेज के उचित प्रबंधन न किए जाने और खराब सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के कारण हो रहे सीवेज के प्रवाह से झील बुरी तरह प्रभावित हुई है।