भूले नहीं भूलता भोपाल: त्रासदी ने कम की पीड़ितों की उम्र

भूले नहीं भूलता भोपाल: त्रासदी ने कम की पीड़ितों की उम्र

एक व्यापक अध्ययन में पाया गया कि 21 वर्ष या उससे अधिक उम्र के युवाओं को सबसे अधिक कष्ट भोगना पड़ा
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भोपाल गैस त्रासदी के संपर्क में आने वाले और फिर बच जाने वाले लोगों की न सिर्फ जीवन अवधि कम हुई बल्कि बच जाने वाले पीड़ितों को जल्दी मृत्यु हो जाने के शीर्ष जोखिम का भी सामना करना पड़ा है। मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) जहरीली गैस रिसाव के शिकार हुए ऐसे लोग जो 21 वर्ष या उससे अधिक उम्र के थे, उन्हें यह कष्ट सबसे ज्यादा उठाना पड़ा है। वहीं, महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में यह ज्यादा देखा गया।

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जुलाई, 2023 में पबमेड जर्नल पर “सर्वाइवल एनालिसिस फॉर कोहर्ट ऑफ भोपाल गैस डिजास्टर विक्टिम ड्यूरिंग 1985-2015” शीर्षक से प्रकाशित अध्ययन में उन व्यक्तियों की उत्तरजीविता का मूल्यांकन किया गया जो जहरीली गैस के संपर्क में थे। इस अध्ययन में ऐसे लोगों के एक समूह को उन समूहों के साथ तुलना की गई जो गैसस रिसाव के संपर्क में नहीं थे। इसका मकसद यह समझना था कि गैस के संपर्क, लिंग, और आयु (मध्यम आयु) जैसे कारक मृत्यु दर को कैसे प्रभावित करते हैं।

इस अध्ययन में कुल कुल 92,320 व्यक्तियों के डेटा का विभिन्न मॉडल के आधार पर 30 वर्षों (365 महीनों) का विश्लेषण किया गया। अध्ययन के मुताबिक, गैस पीड़ित समूह के पुरुषों और 21 वर्ष से ऊपर के व्यक्तियों को उच्च मृत्यु दर का सामना करना पड़ा।

इस अध्ययन में पाया गया कि 365 महीने (लगभग 30 वर्षों) की अवधि के दौरान 6,609 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और कुल मृत्यु दर 7.2 फीसदी थी। इन व्यक्तियों की मध्य आयु 40 वर्ष थी। इन मरने वालों में 5,540 व्यक्ति गैस के संपर्क में आए क्षेत्रों से थे जबकि 1,159 मरने वाले व्यक्तियों का संपर्क उन क्षेत्रों से था जो गैस के संपर्क में नहीं आए थे।

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अध्ययन बताता है कि त्रासदी के बाद जहरीली गैस से संपर्क में आए समूह के पीड़ितों का औसत उत्तरजीविता समय 344.5 महीने थी, जबकि ऐसा समूह जो गैस पीड़ित नहीं था उसका औसत उत्तरजीविता समय 349.5 महीने था। यानी जो गैस रिसाव के पीड़ित थे वह पांच महीने कम जी सके। करीब 30 वर्षों के अंतराल में मृत्यु दर का यह अंतर कम दिखाई पड़ता है। हालांकि, शुरुआती वर्षों में मृत्यु दर काफी अधिक थी, लेकिन बाद में यह स्थिर हो गई। इससे यह संकेत मिलता है कि समय के साथ, चिकित्सा सुविधाओं और सरकारी योजनाओं के कारण उत्तरजीविता में सुधार हुआ है।

अध्ययन में यह देखा गया कि पहले चरण यानी 0 से 100 महीने और दूसरे चरण यानी 101 से 300 महीने की अवधि के दौरान, प्रभावित समूह की सर्वाइवल दर कम थी, जबकि गैर प्रभावित समूह में यह अधिक थी। तीसरे चरण यानी 301 से 400 महीने के दौरान दोनों समूहों में मृत्यु दर लगभग समान थी। इससे यह पता चलता है कि शुरुआती चरणों में प्रभावित क्षेत्रों में मृत्यु दर अधिक थी, जबकि बाद में यह स्थिर हो गई।

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वहीं, अध्ययन में पाया गया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उत्तरजीविता दर अधिक थी। साथ ही 21 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की उत्तरजीविता दर 20 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों की तुलना में कम थी।

यह भी पाया गया किकि गैस से संपर्क में आए व्यक्तियों को मृत्यु का जोखिम 1.30 गुना अधिक था। अध्ययन में पाया गया कि 1986-2000 और 2001-2015 के बीच, भोपाल गैस पीड़ितों में श्वसन संबंधी समस्याएं सबसे सामान्य मृत्यु का कारण थीं, जबकि गैर-संक्रमित समूह में यह दर कम थी। वहीं, समय के साथ हृदय और रक्तवाहिनी रोग (सर्कुलेटरी सिस्टम) और तंत्रिका तंत्र से संबंधित मृत्यु दर में वृद्धि देखी गई।

इस अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि उम्र और लिंग जैसे जैविक कारक मृत्यु दर को प्रभावित करते हैं और गैस से संपर्क किए गए व्यक्तियों के लिए दीर्घकालिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है। अध्ययन के मुताबिक गैस रिसाव के शिकार लोगों की उम्र अब 30 से 99 वर्ष के बीच हो गई है, और वे अब वृद्धावस्था के स्वास्थ्य मुद्दों जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह, और कैंसर के जोखिम में हैं।

इस रिसर्च पेपर को मध्य प्रदेश स्थित आईसीएमआर इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवॉयरमेंटल हेल्थ के डिवीजन ऑफ बॉयोस्टैटिक्स एंड बॉयोइन्फोरमैटिक्स के सुशील सिंह और धर्मराज और आईसीएमआर इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवॉयरमेंटल हेल्थ के डिवीजन ऑफ एनवॉयरमेंटल हेल्थ एंड एपिडेमोलॉजी के योगेश साबदे व राजनारायणरामशंकर तिवारी व तमिलनाडु में चेन्नई स्थित स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, आईसीएमआर नेशनलइंस्टीट्यूट ऑफ इपिडेमोलॉजी के मधनराज कल्याणसुंदरम ने संयुक्त रूप से तैयार किया है।

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