क्या दिल्ली में गायब होते जल निकायों और बाढ़ के बीच है कोई नाता, एनजीटी ने मंत्रालय से मांगी प्रतिक्रिया

विशेषज्ञ दिल्ली में आई बाढ़ के लिए मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर क्षेत्र में जल निकायों और आर्द्रभूमि के गायब होने के साथ जल निकासी की खराब व्यवस्था को जिम्मेवार मानते हैं
क्या दिल्ली में गायब होते जल निकायों और बाढ़ के बीच है कोई नाता, एनजीटी ने मंत्रालय से मांगी प्रतिक्रिया
Published on

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली में आती बाढ़ और गायब होते जल निकायों के सम्बन्ध में दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी और जल शक्ति मंत्रालय से अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है।

इस मामले में 30 अगस्त 2024 को ट्रिब्यूनल ने जिन लोगों से जवाब मांगा है, उनमें दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जियोस्पेशियल दिल्ली लिमिटेड शामिल थे। गौरतलब है कि इस मामले पर 16 अगस्त, 2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के आधार पर एनजीटी ने स्वतः संज्ञान लिया है।

खबर के मुताबिक उस दौरान दिल्ली में थोड़े समय में ही हुई भारी बारिश और जलवायु परिवर्तन ने बाढ़ में योगदान दिया। हालांकि विशेषज्ञ इसके लिए मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर क्षेत्र में जल निकायों और आर्द्रभूमि के गायब होने के साथ जल निकासी की खराब व्यवस्था को जिम्मेवार मानते हैं।

खबर में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कचरे के ढेर को कम करने की दिल्ली सरकार की नीति अप्रत्यक्ष रूप से आर्द्रभूमि को भी प्रभावित कर रही है, हालांकि यह इसका मुख्य फोकस नहीं है

इस नीति के तहत निचले इलाकों को कचरे से भरना शामिल था, जिससे जमीन के पानी के सोखने के लिए जगह कम हो जाती है। नतीजन बरसाती पानी के लिए बनाए नालों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे दिल्ली में बाढ़ की स्थिति और बदतर हो जाती है।

ऐसे में खबर के मुताबिक आर्द्रभूमि को होते नुकसान और मिट्टी के पानी सोखने की क्षमता में आती गिरावट से बाढ़ की स्थिति बिगड़ रही है।

नदियों की सफाई परियोजनाओं की सुस्त रफ्तार को गंभीरता से लेते हुए एनजीटी ने अधिकारियों से मांगा जवाब

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत नदियों की सफाई से जुड़ी परियोजनाओं की सुस्ती को गंभीरता से लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अधिकारियों से उनका जवाब मांगा है। इस मामले में 30 अगस्त, 2024 को दिए अपने आदेश में ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, स्वच्छ गंगा मिशन और जल शक्ति मंत्रालय को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

मामले में अगली सुनवाई 11 दिसंबर, 2024 को होगी। बता दें कि अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया था।

खबर के अनुसार 2015 से नमामि गंगे मिशन के तहत कई परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनका मुख्य फोकस सीवेज प्रबंधन और बुनियादी ढांचे का विकास है। हालांकि इन परियोजनाओं के लिए करीब 37,550 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद जून 2024 तक केवल 18,033 करोड़ रुपए ही खर्च किए जा सके हैं। इसमें से अकेले सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए ही मुख्य रूप से 15,039 करोड़ का इस्तेमाल किया गया है।

खबर में कहा गया है कि एनएमसीजी के महानिदेशक ने पाया है कि इन परियोजनाओं पर किए जा रहे खर्च की गति बहुत धीमी है। खबर में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा परियोजनाएं हैं।

वहीं धीमी गति से खर्च के बारे में पूछे जाने पर, उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने जौनपुर, कासगंज, वाराणसी, बरेली, सलोरी और आगरा में छह परियोजनाओं पर ₹15.16 करोड़ खर्च किए हैं। वहीं 25 करोड़ की भुगतान राशि अभी भी प्रोसेस की जा रही है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in