बाढ़, सूखा और भूस्खलन जैसे खतरे हर साल लाखों लोगों को प्रभावित कर रहे हैं, यही वजह है कि समाज पर इन आपदाओं के पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को सीमित करने के लिए वैज्ञानिक कहीं ज्यादा शोध कर रहे हैं। हालांकि इन शोधों में कमजोर देशों और वहां आने वाली आपदाओं पर उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा, जितना दिया जाना चाहिए। आपदाओं से निपटने के लिए किए जा रहे शोधों के मामले में कमजोर देश अभी भी समृद्ध देशों की तुलना में काफी पीछे हैं।
इसका मतलब है कि बाढ़, सूखा और भूस्खलन पर किए जा रहे वैज्ञानिक शोधों में सभी क्षेत्रों को एक बराबर तवज्जो नहीं दी जा रही। वे क्षेत्र जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं, जब इस तरह की आपदाओं का अनुभव करते हैं तो उन पर बहुत अधिक ध्यान और शोध किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ इन आपदाओं से प्रभावित कमजोर देशों को न पर्याप्त सहायता मिल रही है और न ही उन पर उतना अधिक शोध किया जाता है।
ऐसे में इन प्राकृतिक आपदाओं से कैसे निपटा जाए इसकी समझ में भारी अंतर है। जहां कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां इसको लेकर समझ काफी परिपक्व है और इससे निपटने के लिए संसाधनों की कमी नहीं है, जबकि दूसरी ओर कुछ क्षेत्र इसको लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
पॉट्सडैम विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता लीना स्टीन का प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि यह निर्धारित करने के लिए कि क्या इस विषय पर किए जा रहे शोधों में प्रभावित क्षेत्रों को शामिल किया गया है और क्या इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को प्रभावी ढंग से लक्षित किया गया है, इसे समझने के लिए हमें एक वैश्विक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उनके मुताबिक यह समझना होगा कि क्या रिसर्च सही स्थानों पर केंद्रित है।
खाई भरने के लिए करने होंगे अथक प्रयास
अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक भले ही प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में शोध बढ़ रहे हैं। लेकिन समान अनुसंधान का ध्यान आकर्षित करने के लिए कमजोर देशों में इन आपदाओं से प्रभावित लोगों की संख्या समृद्ध देशों की तुलना में करीब 100 गुणा अधिक होनी चाहिए।
पॉट्सडैम विश्वविद्यालय, आईबीएम रिसर्च और जीएफजेड के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुए हैं।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने "टेक्स्ट-एज-डेटा" पद्धति का उपयोग किया है, ताकि इस विषय पर किए जा रहे शोधों का एक वैश्विक मैप तैयार किया जा सके। मैप में इस बात को दर्शाया गया है कि आपदाओं को लेकर कहां किन क्षेत्रों में शोध हुए हैं।
इतना ही नहीं इसके पैटर्न को समझने और सार्थक जानकारी प्राप्त करने के लिए के लिए शोधकर्ताओं ने आईबीएम रिसर्च की मदद से करीब तीन लाख से ज्यादा वैज्ञानिक अध्ययनों का विश्लेषण किया है।
अध्ययन के नतीजों पर प्रकाश डालते हुए लीना स्टीन ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि उन क्षेत्रों में अधिक शोध हुए हैं, जहां आबादी अधिक है। इसी तरह समृद्ध क्षेत्रों और जहां पहले भी इस तरह की आपदाएं सामने आ चुकी हैं वहां अधिक शोध किए जा रहे हैं।
उनके मुताबिक हालांकि समृद्ध देशों में अभी भी इस दिशा में की जा रही रिसर्च पर अभी भी अधिक ध्यान दिया जा रहा है, भले ही कमजोर देशों में यह आपदाएं कहीं ज्यादा लोगों को प्रभावित कर रही हैं।
रिसर्च से पता चला है कि समृद्ध क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान को निष्पक्ष रूप से साझा करने के लिए कहीं अधिक शोधों और आर्थिक मदद की आवश्यकता है।
शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि, उन क्षेत्रों में शोध पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जो इन आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित हैं, लेकिन अभी भी जहां उनका अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है। उनके मुताबिक इससे हमें भविष्य में आने वाली आपदाओं के लिए तैयारी रहने और उनके प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।