बालूखंड-कोणार्क अभयारण्य: तटीय कटाव और चक्रवातों से पारिस्थितिकी को खतरा

अध्ययन में पाया गया है कि चित्तीदार हिरणों और काले हिरणों के घर इस अभयारण्य में घनी वनस्पति 1993 में जो 41.8 फीसदी थी यह घटकर 2023 में 37.1 फीसदी रह गई है।
चक्रवातों के सालों के दौरान वनस्पति का विनाश स्बसे अधिक होता है, जिसने पेड़-पौधों को तबाह कर दिया और पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।
चक्रवातों के सालों के दौरान वनस्पति का विनाश स्बसे अधिक होता है, जिसने पेड़-पौधों को तबाह कर दिया और पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।काला हिरण, फोटो साभार: आईस्टॉक
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तटीय पारिस्थितिकी तंत्र जैव विविधता संरक्षण, जलवायु और लोगों की आजीविका को सहारा देने में अहम भूमिका निभाते हैं। ओडिशा के पुरी और कोणार्क शहरों के बीच बसा बालूखंड-कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य (बीकेडब्ल्यूएस) है। यह सुनहरी रेत, कैसुरीना के पेड़ों, एक विशाल समुद्री मार्ग और लुप्तप्राय ओलिव रिडले कछुओं के घोंसले के मैदानों की एक अनोखी जगह है।

अध्ययन में भविष्य की तटरेखा और भूमि उपयोग, भूमि आवरण में बदलाव (एलयूएलसीसी) के अनुमानों की जांच की गई है। जिसमें कहा गया है कि यहां पारिस्थितिकी खतरे में है।

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चक्रवातों के सालों के दौरान वनस्पति का विनाश स्बसे अधिक होता है, जिसने पेड़-पौधों को तबाह कर दिया और पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।

अध्ययन में पाया गया है कि चित्तीदार हिरणों और काले हिरणों के घर कहे जाने वाले इस अभयारण्य में घनी वनस्पति 1993 में जो 41.8 फीसदी थी यह घटकर 2023 में 37.1 फीसदी रह गई है। अब इस इलाके के 50 फीसदी से अधिक हिस्से पर बहुत कम वनस्पति रह गई है।

फानी जैसे विनाशकारी चक्रवातों के सालों के दौरान वनस्पति का विनाश सबसे अधिक हुआ, जिसने पेड़-पौधों को तबाह कर दिया और पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।

बालूखंड-कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य एक विशाल समुद्री मार्ग और लुप्तप्राय ओलिव रिडले कछुओं के घोंसले के मैदानों की एक अनोखी जगह है।
बालूखंड-कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य एक विशाल समुद्री मार्ग और लुप्तप्राय ओलिव रिडले कछुओं के घोंसले के मैदानों की एक अनोखी जगह है। फोटो साभार: आईस्टॉक

यह शोध बालासोर के फकीर मोहन विश्वविद्यालय और ब्राजील के संघीय विश्वविद्यालय पैराइबा के शोधकर्ताओं के द्वारा किया गया है। शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि उत्तरी तट का तेजी से कटाव हो रहा है, जबकि दक्षिणी भागों में तलछट या सेडीमेंट जमा हो रही है।

अध्ययन में अभयारण्य के विकसित होते परिदृश्य पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा किया गया है। अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं के द्वारा 1993 से 2023 तक भूमि उपयोग और तटरेखा में बदलावों का विश्लेषण करने और 2043 तक भविष्य के रुझानों का पूर्वानुमान लगाने के लिए मशीन लर्निंग मॉडल के माध्यम से संसाधित तीन दशकों के उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग किया गया है।

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चक्रवातों के सालों के दौरान वनस्पति का विनाश स्बसे अधिक होता है, जिसने पेड़-पौधों को तबाह कर दिया और पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।

अध्ययन में वनस्पति में एक परेशान करने वाला पैटर्न सामने आया। 2002 और 2023 में, घनी वनस्पति लगभग गायब हो गई। इसके विपरीत, 2017 में हरियाली के पुनरुत्थान का एक दुर्लभ क्षण देखने को मिला। लेकिन कुल मिलाकर आंकड़े स्वस्थ, घनी वनस्पति से बंजर की ओर एक क्रमिक बदलाव दिखाता है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह केवल पेड़ों के नुकसान के बारे में नहीं है। यह एक पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट होने के बारे में है जो प्रवासी पक्षियों, हिरण जैसे जानवरों, सरीसृपों और ओलिव रिडले कछुओं जैसी समुद्री प्रजातियों का घर है।

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साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने पिछले 30 सालों में इन समस्याओं को और बढ़ा दिया है। चक्रवाती तूफान सबसे बड़ा खतरा पैदा करने वाले बने हुए हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि प्रत्येक प्रमुख तूफान वनस्पति में भारी बदलाव का कारण बनता है और उनकी बढ़ती आवृत्ति, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी गिरावट में आई कमी को बेकार कर रही है।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने कटाव और निक्षेपण के एक गतिविधि पैटर्न का अवलोकन किया। 2000 के दशक की शुरुआत में बड़े पैमाने पर कटाव देखा गया। हालांकि 2013 से 2023 तक, तटरेखा की स्थिरता में सुधार हुआ, जिसमें 91 फीसदी की वृद्धि देखी गई, हो सकता है तलछट जमाव या संरक्षण प्रयासों के कारण ऐसा हुआ हो।

साल 2043 तक, बीकेडब्ल्यूएस के उत्तर में कुछ इलाकों में 51 मीटर से अधिक की गहराई तक कटाव हो सकता है, जबकि दक्षिणी भागों में 179 मीटर तक जमाव हो सकता है।
साल 2043 तक, बीकेडब्ल्यूएस के उत्तर में कुछ इलाकों में 51 मीटर से अधिक की गहराई तक कटाव हो सकता है, जबकि दक्षिणी भागों में 179 मीटर तक जमाव हो सकता है।फोटो साभार: आईस्टॉक

शोध के मुताबिक, फिर भी, पूर्वानुमान चिंताजनक हैं। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि साल 2043 तक, उत्तर में कुछ इलाकों में 51 मीटर से अधिक की गहराई तक कटाव हो सकता है, जबकि दक्षिणी भागों में 179 मीटर तक जमाव हो सकता है। वन्यजीव गलियारों, घोंसले के मैदानों और आस-पास की मानव बस्तियों के लिए इसके परिणाम बहुत भयानक हो सकते हैं।

प्रभावों का आकलन करने के अलावा अध्ययन सबूतों के आधार पर तटीय प्रबंधन नीति, टिकाऊ भूमि उपयोग योजना, आवासों की बहाली के अहम उपाय प्रदान करता है।

अध्ययन सामान्य रूप से तटीय प्रबंधन में भी योगदान देता है क्योंकि यह पृथ्वी पर अन्य ऐसी जगहों का विश्लेषण करने का एक दोबारा तैयार किए जा सकने वाला ढांचा प्रदान करता है। साथ ही जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों के प्रतिकूल प्रभावों के प्रबंधन में पूर्वानुमान मॉडलिंग की अहम भूमिका पर जोर देता है।

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