नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 16 अक्टूबर, 2024 को आकाश जैन द्वारा त्रिवेणी घाट और आसपास के इलाकों में चलाई जा रही खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
अदालत के समक्ष दायर आवेदन में दावा किया गया है कि आकाश जैन को त्रिवेणी घाट पर बाढ़ के कारण जमा गंदगी और गाद को हटाने के काम पर रखा गया था। हालांकि इस काम के बहाने उसने देहरादून में त्रिवेणी घाट, नावघाट, दत्तत्रय घाट, सूर्य घाट और ऋषिकेश के मायाकुंड में गंगा नदी के तल से अवैध खनन, रेत और बजरी निकालना शुरू कर दिया।
शिकायत में कहा गया है कि अवैध खनन के लिए जेसीबी जैसी भारी मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो नदी की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रहा है। साथ ही इससे पर्यावरण को भी बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है।
इस मामले में 14 अक्टूबर, 2024 को दिए अपने जवाब में, देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट ने संयुक्त समिति की रिपोर्ट की एक प्रति भी अदालत के सामने प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट से पता चला कि जिला मजिस्ट्रेट ने उचित अधिकार के बिना ट्रिब्यूनल द्वारा गठित समिति को बदल दिया।
इसके तहत साइट का दौरा करने और रिपोर्ट सौंपने के लिए जिला मजिस्ट्रेट की जगह देहरादून के उप कलेक्टर को सदस्य के रूप में नियुक्त किया। इस समिति को साइट का दौरान करने के साथ रिपोर्ट सौंपने का निर्देश अदालत द्वारा दिया गया था।
अदालत का कहना है कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई यह कार्रवाई पूरी तरह से अवैध और अनधिकृत थी। इसके साथ ही यह उनके अधिकार क्षेत्र से परे है। इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि आकाश जैन को ऋषिकेश में त्रिवेणी घाट के पास रेत खनन की अनुमति दी गई थी, लेकिन खनन शुरू होने से पहले किसी भी पर्यावरणीय मंजूरी या सहमति प्राप्त करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
वहीं उत्तराखंड की ओर से पेश वकील का कहना है कि केवल परिवहन की अनुमति दी गई थी। हालांकि, वे इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आकाश जैन को रेत निकालने, परिवहन करने और निपटान करने की अनुमति दी गई थी।
पर्यावरण नियमों के उल्लंघनों पर मेरठ विकास प्राधिकरण और परियोजना प्रस्तावक को करना होगा जांच का सामना
16 अक्टूबर, 2024 को एनजीटी ने मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) से जुड़े अधिकारियों को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई छह नवंबर, 2024 को होनी है।
उन्हें यह बताना होगा कि आवश्यक आंतरिक सेवाओं को विकसित किए बिना और पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन करते हुए, परियोजना प्रस्तावक को सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) की सेवाएं कैसे प्रदान की गईं।
ऐसे में अदालत ने सवाल किया है कि क्या प्रस्तावक के साथ-साथ एमडीए को भी उल्लंघनकर्ता माना जाए। साथ ही क्या उन पर आपराधिक मुकदमा चलाने और पर्यावरण कानूनों के तहत अन्य कार्रवाइयां करने के साथ-साथ पर्यावरणीय मुआवजा भी लगाना जाना चाहिए।
27 सितंबर, 2024 को अदालत के आदेश के बाद, मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) ने 10 अक्टूबर, 2024 को अपना जवाब प्रस्तुत किया था। एमडीए ने स्वीकार किया कि प्रस्तावक आंतरिक विकास के लिए जिम्मेवार था, जबकि एमडीए को बाहरी सेवाएं प्रदान करनी थीं।
ट्रिब्यूनल का कहना है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण आंतरिक विकास का हिस्सा है, जिसे प्रस्तावक को संभालना होगा। इसलिए, प्रस्तावक को बाहरी एसटीपी प्रदान नहीं किया जा सकता क्योंकि यह पर्यावरण मंजूरी (ईसी) की शर्तों के अनुरूप नहीं है।
गौरतलब है कि इस मामले में सुशांत सिटी के एक निवासी द्वारा आवेदन दायर किया गया था। उसमें पर्यावरण सम्बन्धी नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। शिकायत मेरठ में वेदव्यास पुरी के अंसल सुशांत सिटी के सेक्टर 7ए से जुड़ी है।
इसमें कचरे के अनुचित भंडारण और निपटान को लेकर शिकायत की गई थी। आवेदक का दावा है कि इसकी वजह से स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है।