एनजीटी ने सेल से कहा, रावघाट लौह अयस्क परियोजना की वजह से फसलें प्रभावित न होने पाए

एनजीटी ने यह भी निर्देश दिया है कि खनन के लिए किसी भी विस्फोट से पहले, सेल को यह अध्ययन करना चाहिए कि इन विस्फोटों का आस-पास के क्षेत्रों और इमारतों पर क्या प्रभाव पड़ेगा
प्रतीकात्मक तस्वीर
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पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर कुछ न कुछ प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना कोई भी विकास संभव नहीं है और आम लोगों के हितों से जुड़ी परियोजनाओं को छोड़ा नहीं जा सकता। लेकिन साथ ही लोगों के हितों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना भी बेहद महत्वपूर्ण है।

यह बातें तीन सितंबर, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण मंत्रालय के आदेश को पलटने की अपील को खारिज करते हुए कही हैं। बता दें कि पर्यावरण मंत्रालय ने यह आदेश 21 दिसंबर, 2023 को दिया था।

गौरतलब है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परियोजना के लिए चार जून 2009 को दी गई मूल पर्यावरण मंजूरी (ईसी) में संशोधन की अनुमति दे दी थी। इसके तहत 20 लाख टन लौह अयस्क को रावघाट खदानों से अंतागढ़ या भानुप्रतापपुर रेलवे साइडिंग तक दो वैकल्पिक सड़कों के माध्यम से ले जाया जा सकेगा।

इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कई नए नियम भी बनाए हैं।

अदालत ने आदेश दिया है कि दल्ली राजहरा से रावघाट तक रेल लाइन का काम तय समय में पूरा किया जाना चाहिए। साथ ही खनिजों का परिवहन करने वाले वाहनों के लिए 40 किलोमीटर प्रति घंटा की गति सीमा तय की जानी चाहिए।

इतना ही नहीं इन खनिजों का परिवहन हर दिनी सुबह छह से रात दस बजे तक किया जाना चाहिए और समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर आम जनता द्वारा बुनियादी सुविधाओं के उपयोग को ध्यान में रखते हुए इसमें संशोधन किया जाना चाहिए।

क्या कुछ उठाए जाने चाहिए कदम

अदालत ने यह भी कहा है कि परियोजना प्राधिकरण सेल भिलाई स्टील प्लांट को इस परियोजना में खनन से जुड़ी सर्वोत्तम पद्धतियों का उपयोग करना चाहिए। खनन क्षेत्र में, बारिश के पाने के प्रवाह को नियंत्रित करने और मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पर्याप्त संख्या में चेक डैम, रिटेनिंग वॉल, गारलैंड ड्रेन और तालाब बनाने की आवश्यकता है।

खनन या लौह अयस्क गतिविधियों के लिए किसी भी विस्फोट को शुरू करने से पहले, सेल को यह अध्ययन करना चाहिए कि इन विस्फोटों का आस-पास के क्षेत्रों और इमारतों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ताकि प्रभाव क्षेत्र आसपास के इलाकों में पड़ने वाले प्रभावों का पहले से मूल्यांकन किया जा सके।

कोर्ट के अनुसार सेल को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके संचालन से आस-पास की फसलों को नुकसान न पहुंचे। साथ ही फसलों के नुकसान की आशंका को देखते हुए इस नुकसान को कवर करने के लिए बीमा योजना लेनी चाहिए। इस बीमा के तहत खदान पट्टे के किनारे से पांच किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करना चाहिए।

एनजीटी का यह भी कहना है कि छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड को ऐसे प्रदूषण निगरानी उपकरण लगाने चाहिए, जो रियल टाइम में एसपीसीबी और डीएमजी को आंकड़े भेज सकें। इससे इन विभागों को रियल टाइम में मार्ग पर वायु गुणवत्ता को ट्रैक करने में मदद मिलेगी और वो जरूरत पड़ने पर ट्रकों की आवाजाही को रोक सकेंगे। इससे वायु प्रदूषण को तय मानकों के भीतर लाया जा सकेगा।

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