क्या अवैध खनन से उत्तर प्रदेश में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र पर पड़ रहा है असर, जानिए क्या है समिति की राय

समिति का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र का सीमांकन नहीं किया है, जिसे जल्द से जल्द किया जाना बेहद जरूरी है
अवैध खनन का कारोबार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
अवैध खनन का कारोबार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र का सीमांकन नहीं किया है। इस क्षेत्र का जल्द से जल्द सीमांकन बेहद जरूरी है। इसके साथ ही स्थानीय प्रशासन को खनन विभाग की मदद से भदोही में इब्राहिमपुर गांव के पास स्थापित कार्यालय और तौल कांटा को ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए।

वहां खनिजों का जो भंडारण किया गया है, उसकी जांच की जानी चाहिए। यह बाते उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय प्रशासन ने भदोही में संयुक्त निरीक्षण के दौरान पाई गई बालू को जब्त कर लिया है।

इसके साथ ही समिति ने सिफारिश की है कि स्थानीय प्रशासन कछुआ वन्यजीव अभयारण्य की ओर जाने वाली सड़कों संकेत लगाने चाहिए ताकि आम लोगों को वन्यजीव अधिसूचना के बारे में पता चल सके। वो जान सकें कि अभयारण्य में किस तरह की गतिविधियों पर रोक है और किन गतिविधियों की अनुमति है।

आवेदक ने क्या कुछ लगाए थे आरोप

गौरतलब है कि यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 18 अप्रैल, 2024 को दिए आदेश पर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई है। बता दें कि आवेदक ने शिकायत की थी कि प्रयागराज, मिर्जापुर और संत रविदास नगर में भारी मशीनरी की मदद से रेत खनन का काला कारोबार जारी है।

इसकी वजह से कछुआ वन्यजीव अभयारण्य के प्रजनन स्थल और जलीय जीवन को नुकसान हो रहा है। इन गतिविधियों के चलते ध्वनि प्रदूषण की भी शिकायत की गई थी। रिकॉर्ड बताते हैं कि भदोही में रेत खनन के लिए दो और मिर्जापुर में एक पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) दी गई है।

संयुक्त समिति को भदोही और मिर्जापुर में कछुआ वन्यजीव अभयारण्य के नदी स्थल पर कोई अवैध खनन गतिविधि होती नहीं मिली है। हालांकि, उन्होंने खनन पट्टे के एक कार्यालय के पास काफी मात्रा में रेत जमा देखी है। इस दौरान समिति ने दो डॉल्फिन, देशी मछलियों की पांच प्रजातियों और विदेशी मछली की एक प्रजाति सहित जैव विविधता पर भी ध्यान दिया है। वहीं कछुआ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र के पास कछुए नहीं देखे गए।

वहीं प्रयागराज के जिला मजिस्ट्रेट ने डीएफओ प्रयागराज के अनुरोध का हवाला देते हुए आदेश दिया कि कछुआ अभयारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र को देखते हुए 10 किलोमीटर के दायरे में कोई खनन पट्टा स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए। आदेश में अभयारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी तरह के अवैध रेत खनन को रोकने की सलाह दी गई है।

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