
लम्बे सूखे के बाद जब भी पानी की बूंद जमीन पर गिरती है, एक अनचाहा मेहमान जाने कहां से धमक पड़ता है। यह मेहमान कोई ओर नहीं मच्छर हैं, जो लाख जतन करने के बाद भी कहीं से भी हमारे आसपास पहुंच जाते हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कैसे कई हफ्तों तक सूखे मौसम का सामना करने के बाद भी मच्छर जीवित बच जाते हैं और बारिश के साथ ही फिर वापस आ जाते हैं। ऐसा क्या है कि यह जीव इतनी तेजी से वापसी करने में सफल रहते हैं। सिनसिनाटी विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने इन नन्हें जीवों से जुड़े ऐसे ही कुछ सवालों के रोचक उत्तर खोजे हैं।
मच्छर बेहद सख्त जीव होते हैं, इनमें से कई तो डेंगू, मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कुख्यात हैं।
आमतौर पर लोग सोचते हैं कि सूखे मौसम जल स्रोतों के सूखने के साथ इनकी आबादी घट जाएगी, लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है। मच्छरों के पास ऐसे कठोर मौसम में भी बचे रहने के लिए गजब की रणनीति होती है। सूखे के दौरान वे अपने आप को हाइड्रेटेड बनाए रखने के लिए अधिक बार काटते हैं।
अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला है कि क्यों सूखे के दौरान मच्छरों से होने वाले संक्रमण की घटनाएं हमेशा कम नहीं होती। शोध के मुताबिक हालांकि इस दौरान मच्छरों की संख्या जरूर कम हो सकती है, लेकिन जो बच जाते हैं वे कहीं ज्यादा बार काटते हैं।
इस अध्ययन के नतीजे जर्नल आईसाइंस में प्रकाशित हुए हैं।
आपको जानकार हैरानी होगी कि यह बिना बारिश के मच्छर तीन सप्ताह तक जीवित रह सकते हैं। एडीज एजिप्टी मच्छर तो सूखे के प्रति बेहद प्रतिरोधी होते हैं। यहां तक की इसके अंडे तो कभी-कभी एक साल तक जीवित रह सकते हैं, जो बारिश के संपर्क में आने से तुरंत फूट जाते हैं।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता क्रिस्टोफर होम्स ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा "दुर्भाग्य से, हमने पाया है कि मच्छर लोगों को हमारी सोच से कहीं अधिक बार काटते हैं।" उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन से हालात और खराब हो रहे हैं, क्योंकि गर्म होती सर्दियां मच्छरों को जीवित रहने और बढ़ने में मदद करती हैं।
होम्स के मुताबिक अनुकूल परिस्थितियों में मादा मच्छर अंडे देने के लिए खून चूसती है। इसकी मदद से वो चार दिनों के भीतर अपने अंडे देती है, फिर इस चक्र को दोहराने के लिए नए शिकार की तलाश में निकल पड़ती है।
हालांकि, जब सूखे से सामना होता है तो वो इस चक्र में बदलाव कर देती है। ऐसे समय में वो खून चूसने के बाद अंडे देने के लिए इन्तजार करने के बजाय अपने आप को हाइड्रेटेड रखने के लिए अधिक बार काटती है। इसकी वजह से डेंगू, जीका या मलेरिया जैसी बीमारियों के फैलने की आशंका बढ़ जाती है।
यह अपने अस्तित्व को बचाए रखने की एक दिलचस्प लेकिन चिंताजनक रणनीति है।
यह समझने के लिए कि मच्छर सूखे के दौरान कैसे जीवित रहते हैं, टीम ने आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छरों का अध्ययन किया है, जिनमें कार्बन डाइऑक्साइड को पहचानने की क्षमता कमजोर थी। बता दें कि मच्छर अपने शिकार को खोजने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं।
शोधकर्ताओं ने एक दिलचस्प खोज की है: अगर मच्छर कार्बन डाइऑक्साइड को महसूस नहीं कर पाएंगे, तो उन्हें काटने के लिए कोई मेजबान नहीं मिलेगा। ऐसे में वे सूखे की स्थिति में जीवित नहीं रह पाएंगे।
अध्ययन से यह भी सामने आया है कि मच्छरों की कुछ प्रजातियां ठंडे तापमान में भी जीवित रह सकती हैं। वे सर्दियों से पहले ही अपना भोजन एकत्र करती हैं और भारी मात्रा में चर्बी जमा कर लेती हैं। इसके बाद गर्मी पड़ते ही अंडे देना शुरू कर देती हैं।
देखा जाए तो मच्छर बेहद रोचक जीव हैं, जो अपनी गजब की काबिलियत से करोड़ों वर्षों से अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे हैं।
यह नन्हें जीव करीब साढ़े 12 करोड़ वर्षों से क्रेटेशियस काल की शुरुआत से धरती पर मौजूद हैं। मतलब की यह डायनासोर के समय से अब तक धरती पर मौजूद हैं। हालांकि इस बीच अनगिनत जीव धरती से विलुप्त हो चुके हैं।
भले ही यह मानव जाति के लिए बड़ा खतरा हों, लेकिन इसके बावजूद मच्छर खाद्य श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो मछलियों, पक्षियों, चमगादड़ों और अन्य कीटों को भोजन प्रदान करते हैं।
लम्बे समय से बचे रहने की वजह से इन्होने अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कई रणनीतियां विकसित कर ली हैं। इनकी वजह से यह जीव खाद्य श्रृंखला में बने हुए हैं। हालांकि, इनके जीवित बचे रहने की कीमत इंसानों को चुकानी पड़ रही है। मच्छरों से होने वाली बीमारियां हर साल 700,000 से ज्यादा जिंदगियों को लील रही हैं।
बदलती जलवायु के साथ नए क्षेत्रों को निशाना बना रहे मच्छर
शोधकर्ताओं के मुताबिक कैसे यह जीव लम्बे समय से बचे रहे, जैसे-जैसे वैज्ञानिक इसके बारे में और अधिक जान रहे हैं वैसे-वैसे वो उनके द्वारा पैदा होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के करीब पहुंच रहे हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बदलती जलवायु में मच्छरों से होने वाली बीमारियों से निपटने की आवश्यकता पर बल दिया है।
देखा जाए तो जैसे-जैसे मच्छर कठिन परिस्थितियों के अनुकूल हो रहे हैं और गर्म होती सर्दियों के साथ नए क्षेत्रों में फैल रहे हैं, उसके साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी रणनीतियों में भी बदलाव करने की जरूरत होगी।
मच्छरों पर नियंत्रण के नए तरीके, जैसे कि पर्यावरण अनुकूल रिपेलेंट या आनुवंशिक परिवर्तन, जैसे उपाय इनकी आबादी और बीमारियों के प्रसार को कम कर सकते हैं। इसके अलावा उन्नत निगरानी प्रणालियां जो जलवायु पैटर्न के आधार पर मच्छरों के प्रकोप की भविष्यवाणी करती हैं, समुदायों को बीमारियों के फैलने से पहले बचाव करने में सशक्त बना सकती हैं।