भारत में फेफड़े के कैंसर से पीड़ितों की संख्या 81,219 होने के आसार

वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे: फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है, जिससे हर साल 18 लाख से अधिक मौतें होती हैं
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (2025) के अनुसार, भारत में इसके मामलों की संख्या 2015 में 63,807 से बढ़कर 2025 में 81,219 होने के आसार हैं।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (2025) के अनुसार, भारत में इसके मामलों की संख्या 2015 में 63,807 से बढ़कर 2025 में 81,219 होने के आसार हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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हर साल एक अगस्त को दुनिया इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए फेफड़े का कैंसर दिवस मनाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, फेफड़ों का कैंसर (लंग कैंसर) दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है, जिससे हर साल 18 लाख से अधिक मौतें होती हैं।

2022 में यह दुनिया भर में सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर भी था, जिसमें 25 लाख नए मामले सामने आए। यह सभी नए कैंसर मामलों का 12.4 फीसदी है। स्तन कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर इसके ठीक बाद आते हैं, लेकिन फेफड़ों का कैंसर कैंसर से होने वाली मौतों में सबसे अधिक संख्या का कारण बनता है।

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इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (2025) के अनुसार, भारत में इसके मामलों की संख्या 2015 में 63,807 से बढ़कर 2025 में 81,219 होने के आसार हैं।

फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में और भारत में भी, सबसे आम और जानलेवा कैंसर में से एक है। यह हर साल हजारों लोगों की जान लेता है, धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान न करने वालों, दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (2025) के अनुसार, भारत में इसके मामलों की संख्या 2015 में 63,807 से बढ़कर 2025 में 81,219 होने के आसार हैं।

राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री और ग्लोबोकैन 2020 के अनुसार, भारत में 2020 में फेफड़ों के कैंसर के 85,221 नए मामले और 70,264 मौतें दर्ज की गई, जिसमें आयु-मानकीकृत घटना दर 7.3 प्रति 100,000 थी।

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इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (2025) के अनुसार, भारत में इसके मामलों की संख्या 2015 में 63,807 से बढ़कर 2025 में 81,219 होने के आसार हैं।

फेफड़ों के कैंसर के 50 फीसदी से अधिक मामलों की जांच केवल एडवांस अवस्था में ही होती है। इसका मतलब है कि बहुत से लोगों को तब तक पता ही नहीं चलता कि उन्हें यह बीमारी है जब तक कि इसका इलाज मुश्किल न हो जाए। जितनी जल्दी इसका पता चल जाए, ठीक होने की संभावना उतनी ही बेहतर होती है। फिर भी अधिकतर मामलों का पता देर से चलता है क्योंकि लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते जब तक कि बीमारी बढ़ न जाए।

विश्व फेफड़े का कैंसर दिवस की शुरुआत 2012 में इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएएसएलसी) और फोरम ऑफ इंटरनेशनल रेस्पिरेटरी सोसाइटीज (एफआईआरएस) के बीच सहयोग से हुई थी। इसका उद्देश्य लोगों को इसके खतरे को समझने में मदद करना, शीघ्र पहचान को प्रोत्साहित करना और बेहतर उपचार एवं सहायता प्रणालियों को बढ़ावा देना।

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इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (2025) के अनुसार, भारत में इसके मामलों की संख्या 2015 में 63,807 से बढ़कर 2025 में 81,219 होने के आसार हैं।

कौन-कौन हैं खतरे में?

अगर आप धूम्रपान करते हैं, भले ही आपने सालों पहले इसे छोड़ ही क्यों न दिया हो, तो आपको अधिक खतरा है। 40 से अधिक उम्र के लोग, खासकर जो लंबे समय तक प्रदूषण या औद्योगिक केमिकल के संपर्क में रहते हैं, वे भी इसके शिकार हो सकते हैं।

भले ही आपने कभी धूम्रपान न किया हो, प्रदूषित शहर में रहना, कुछ उद्योगों में काम करना या कैंसर का पारिवारिक इतिहास होना, आपको फेफड़ों के कैंसर होने की आशंका बढ़ा सकता है।

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क्या इसका इलाज हो सकता है?

एक बार जांच हो जाने के बाद, उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर कितनी दूर तक फैल चुका है। इसमें सर्जरी, विकिरण चिकित्सा, कीमोथेरेपी, या तय चिकित्सा और इम्यूनोथेरेपी जैसे नए उपचार शामिल हो सकते हैं। ये नए विकल्प जीवन को लम्बा करने और दुष्प्रभावों को कम करने में विशेष रूप से सहायक हो सकते हैं। अगर समय पर पता चल जाए, तो फेफड़ों के कैंसर का कभी-कभी इलाज संभव है।

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