छोटे 'पैक रैट' में बड़ी ताकत: सांप के विष से मुकाबला कर खोले उपचार के नए रास्ते

विष प्रतिरोध: पैक रैट छोटे आकार के बावजूद रैटलस्नेक के जहरीले विष से बच सकते हैं, जो इंसानों के लिए घातक होता है।
इस खोज से अन्य जीवों में विष प्रतिरोध जीन और प्राकृतिक चयन के महत्व को समझने के नए अवसर मिलते हैं।
इस खोज से अन्य जीवों में विष प्रतिरोध जीन और प्राकृतिक चयन के महत्व को समझने के नए अवसर मिलते हैं।प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • पैक रैट छोटे आकार के बावजूद रैटलस्नेक के जहरीले विष से बच सकते हैं, जो इंसानों के लिए घातक होता है।

  • जीन डुप्लीकेशन: पैक रैट में सर्पिना3 जीन की 12 कॉपी होती हैं, जो विष को निष्क्रिय करने के लिए अलग-अलग प्रोटीन बनाती हैं।

  • टैंडेम डुप्लीकेशन प्रक्रिया: अतिरिक्त जीन कॉपी बनने से नए प्रोटीन विकसित होते हैं, जिससे जीव को विष और अन्य खतरों से सुरक्षा मिलती है।

  • कोइवोल्यूशन का उदाहरण: सांप विष में बदलाव करते हैं, जबकि पैक रैट अपने जीन के जरिए उसके प्रभावों से बचाव विकसित करता है।

  • भविष्य का शोध: इस खोज से अन्य जीवों में विष प्रतिरोध जीन और प्राकृतिक चयन के महत्व को समझने के नए अवसर मिलते हैं।

छोटे-छोटे जीव कभी-कभी बड़े रहस्य छुपाए होते हैं। ऐसा ही एक जीव है पैक रैट। ये जीव वजन में आधे पाउंड से भी कम होते हैं, लेकिन वे उन जहरीले रैटलस्नेक के विष का सामना कर सकते हैं, जो एक वयस्क इंसान को अस्पताल तक भेज सकता है या जानलेवा भी हो सकता है। हाल ही में मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने यह रहस्य सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।

विष प्रतिरोध का रहस्य

शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि पैक रैट में कुछ ऐसे जीन होते हैं, जो उन्हें सांप के विष से बचाते हैं। ये जीन हैं सर्पिन, जो प्रोटीन का निर्माण करते हैं और विष में पाए जाने वाले खतरनाक तत्वों को ब्लॉक कर सकते हैं। पहले के शोध में यह पता चला था कि सर्पिना1 नामक जीन यूरोपीय रैटलस्नेक के विष को निष्क्रिय कर सकता है, लेकिन पैक रैट में एक और जीन सर्पिना3 की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

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मानव शरीर में केवल एक सर्पिना3 जीन होता है, जबकि पैक रैट में 12 कॉपी मौजूद हैं। प्रत्येक कॉपी थोड़ी अलग प्रोटीन बनाती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि इनमें से कई प्रोटीन सीधे विष के घटकों से जुड़ते हैं और उनके प्रभाव को रोकते हैं।

जीन डुप्लीकेशन: प्रकृति की चतुर चाल

इन अतिरिक्त जीनों की उपस्थिति टैंडेम प्रतिलिपि या डुप्लीकेशन प्रक्रिया से हुई है। इसमें एक जीन की अतिरिक्त कॉपी जेनेटिक कोड में जुड़ जाती है। मूल जीन अपनी मूल गतिविधियों को जारी रखता है, जबकि नई कॉपी अलग प्रोटीन बनाने और नए कार्य विकसित करने की क्षमता प्राप्त करती है।

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इसी तरह सांप भी अपने विष में नए प्रोटीन विकसित करते हैं ताकि उनके शिकार उन्हें बचाने से असमर्थ रहें। यह एक तरह की इवोल्यूशन की “आर्म्स रेस” है, जहां शिकार और शिकारी लगातार एक-दूसरे के विकास का सामना कर रहे हैं।

शोध का तरीका

मॉलिक्यूलर बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पैक रैट के 12 सर्पिना3 प्रोटीन को रैटलस्नेक के विष के साथ टेस्ट किया। उन्होंने देखा कि कई प्रोटीन विष के विभिन्न हिस्सों को रोकते हैं और उनका असर कम कर देते हैं। कुछ प्रोटीन विष के साथ किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करते, जो यह दर्शाता है कि उनका और भी कोई महत्वपूर्ण जीव वैज्ञानिक कार्य हो सकता है।

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कुछ प्रोटीन तो विष के दो अलग-अलग तत्वों को एक साथ निष्क्रिय कर सकते हैं। इस खोज ने सर्पिना3 प्रोटीन को विष प्रतिरोध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बना दिया है। पहले शोध ज्यादातर सर्पिना1 पर केंद्रित था, लेकिन अब सर्पिना3 की भूमिका भी स्पष्ट हो गई है।

अहम निष्कर्ष

  • जीन डुप्लीकेशन का महत्व: पैक रैट का विष प्रतिरोध दिखाता है कि कैसे अतिरिक्त जीन जीवों को खतरों से बचाने में मदद कर सकते हैं।

  • इवोल्यूशन का प्रमाण: जैसे सांप का विष विकसित होता है, वैसे ही शिकार जीव भी उससे बचने के उपाय विकसित करते हैं।

  • भविष्य के शोध के लिए अवसर: यह अध्ययन अन्य जीवों में भी विष से बचने के जीनों का अध्ययन करने के रास्ते खोलता है।

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पैक रैट दिखाता है कि आकार में छोटा जीव भी प्रकृति में अपनी बड़ी ताकत के लिए तैयार होता है। उसके पास अपने शरीर को बचाने के लिए जीनों की ऐसी “टूलकिट” है, जो विष के खिलाफ सुरक्षा देती है। यह अध्ययन केवल पैक रैट और सांप के बीच के संबंध को नहीं दिखाता, बल्कि यह भी बताता है कि प्राकृतिक चयन और जीन डुप्लीकेशन जीवन को कैसे अनुकूल बनाते हैं।

छोटा होने के बावजूद पैक रैट अपने आप में विज्ञान का एक चमत्कार है। यह साबित करता है कि प्रकृति के रहस्य अक्सर सबसे छोटे जीवों में छिपे होते हैं, और उन्हें समझने के लिए विज्ञान को और गहराई में जाना पड़ता है।

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