2008 से 2017 के बीच जन्मे करीब 1.56 करोड़ लोगों पर पेट के कैंसर का खतरा!

अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक नई वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दस सालों में जन्मे लोगों में अगर हेलिकोबैक्टर पाइलोरी की समय रहते पहचान और इलाज न किया गया तो भारत व चीन में पेट के कैंसर के 65 लाख से ज्यादा मामले सामने आ सकते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और कोरोना की बात कर रही है, इस बीच एक और खतरा चुपचाप हमारे पेट में पनप रहा है, जो आने वाले दशकों में करोड़ों को बीमार कर सकता है। यह बीमारी है गैस्ट्रिक कैंसर, जिसे पेट का कैंसर भी कहा जाता है।

अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक नई वैज्ञानिक रिपोर्ट से पता चला है कि 2008 से 2017 के बीच जन्मे करीब 1.56 करोड़ लोग अपने जीवन में कभी न कभी इस बीमारी के शिकार हो सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इनमें से करीब 76 फीसदी मामले पेट में पाए जाने वाले एक आम बैक्टीरिया हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (एच पाइलोरी) के कारण हो सकते हैं। यह बैक्टीरिया लंबे समय तक पेट की भीतरी परत में सूजन पैदा कर सकता है, जिससे बाद में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

गौरतलब है कि हेलिकोबैक्टर पाइलोरी एक स्पाइरल (घुमावदार) आकार का बैक्टीरिया है, जो पेट की भीतरी परत में छिपकर धीरे-धीरे गैस्ट्रिक कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। यह संक्रमण अक्सर बचपन में ही शरीर में प्रवेश कर जाता है और वर्षों तक बिना किसी लक्षण के चुपचाप सक्रिय बना रहता है।

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इस बैक्टीरिया की सबसे बड़ी चालाकी यही है कि यह अक्सर बिना किसी स्पष्ट लक्षण के शरीर में छिपा रहता है। लोग इसकी मौजूदगी को सामान्य गैस, अपच या एसिडिटी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन अंदर ही अंदर यह बैक्टीरिया पेट की अंदरूनी परत को धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त करता रहता है, जिससे समय के साथ गंभीर घाव (अल्सर) हो जाते हैं। यहां तक कि इसकी वजह से कैंसर जैसी जानलेवा स्थिति भी पैदा हो सकती है।

इसका मुख्य कारण है गंदा पानी, दूषित खाना और खराब जीवनशैली। एक बार शरीर में सक्रिय हो जाने के बाद, यह बैक्टीरिया पेट में अल्सर से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकता है। भारत जैसे विकासशील देशों में यह बैक्टीरिया बेहद आम है, जहां साफ-सफाई का स्तर अभी भी अपेक्षाकृत कम है और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कमजोर हैं।

एशिया सबसे अधिक प्रभावित, भारत-चीन में बढ़ेगा बोझ

अध्ययन में इस बात का भी खुलासा किया है कि इनमें से 1.06 करोड़ नए मामले एशिया में सामने आ सकते हैं, जिनमें से 65 लाख मामले केवल भारत और चीन में सामने आने की आशंका है।

हालांकि इस समय सब-सहारा अफ्रीका में गैस्ट्रिक कैंसर के मामले कम हैं, लेकिन रिसर्च से पता चला है कि आने वाले वर्षों में वहां यह खतरा 2022 की तुलना में छह गुणा तक बढ़ सकता है।

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रोकथाम से हो सकता है बचाव

आंकड़ों से पता चला है कि गैस्ट्रिक कैंसर, कैंसर से होने वाली मौतों के लिहाज से दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा कारण है। इसका मुख्य कारण एच पाइलोरी संक्रमण है, जिसे समय रहते इलाज करके रोका जा सकता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर देशों में बड़े पैमाने पर एच पाइलोरी की जांच और इलाज की योजना शुरू की जाए, तो पेट के कैंसर के संभावित मामलों में 75 फीसदी तक की कमी लाई जा सकती है।

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वैज्ञानिकों का मानना है कि कई देशों खासकर वे जहां स्वास्थ्य सेवाओं और संसाधनों की कमी है, वहां कैंसर से जुड़े आंकड़े अधूरे, असंगठित या कमजोर हो सकते हैं। इसके बावजूद, शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा है कि पेट के कैंसर की रोकथाम और निगरानी के लिए वैश्विक स्तर पर निवेश बढ़ाया जाना बेहद जरूरी है।

अध्ययन में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि अगर हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण की समय रहते पहचान और इलाज न किया गया, तो आने वाले दशकों में पेट के कैंसर का वैश्विक बोझ तेजी से बढ़ेगा। इसका सबसे ज्यादा असर भारत जैसे देशों पर पड़ सकता है, जहां संक्रमण की दर पहले ही काफी अधिक है।

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