
वैज्ञानिक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण बच्चों में मायोपिया की समस्या को बढ़ा सकता है।
प्रदूषण के कारण बच्चों की आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही है, जिससे दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं।
शोध में पाया गया है कि साफ हवा बच्चों की दृष्टि में सुधार ला सकती है, खासकर छोटे बच्चों में।
आज दुनिया में करीब एक तिहाई बच्चे और किशोर निकट दृष्टि दोष या मायोपिया से पीड़ित हैं। इसकी वजह से बच्चों को दूर की चीजें देखने में कठिनाई हो रही है।
अध्ययन से पता चला है कि दूषित हवा आंखों में सूजन और तनाव पैदा कर सकती है। साथ ही यह सूरज की रोशनी के संपर्क को कम कर सकती है और आंख के आकार में बदलाव ला सकती है, जिससे मायोपिया बढ़ सकता है।
साफ हवा सिर्फ सांसों के लिए ही नहीं बच्चों की आंखों की रोशनी के लिए भी बेहद जरूरी है। एक नए वैज्ञानिकों अध्ययन में सामने आया है कि वायु प्रदूषण बच्चों में मायोपिया की समस्या को बढ़ा सकता है। यानी की हवा में घुला जहर बच्चों की आंखों में अंधेरा घोल सकता है। गौरतलब है कि निकटदृष्टि दोष या मायोपिया एक ऐसी समस्या है, जिसमें दूर की चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं।
इस विकार में आंखों के कॉर्निया का आकार बदल जाता है। नतीजन जब रोशनी आंखों में प्रवेश करती है, तो वह रेटिना पर केंद्रित होने के बजाय, रेटिना से थोड़ा आगे केंद्रित हो जाती है। इससे छवि स्पष्ट न होकर धुंधली दिखने लगती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह विकार आमतौर पर बचपन में विकसित होता है और उम्र के साथ स्थिति और खराब हो जाती है।
अध्ययन में पाया गया है कि हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व, खासकर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ₂) और प्रदूषण के महीन कण (पीमए2.5) बच्चों में आंखों की प्राकृतिक क्षमता को प्रभावित करते हैं। ऐसे में जिन इलाकों में प्रदूषण कम है, वहां रहने वाले बच्चों की दृष्टि चश्मे के बिना भी बेहतर होती है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि यह समस्या छोटे बच्चों में कहीं अधिक गंभीर है।
इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण कम करने से मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) की गति को धीमा किया जा सकता है। यह समस्या खासकर पूर्वी एशिया के बच्चों में तेजी से बढ़ रही है। यह अध्ययन तियानजिन मेडिकल यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम और उनके सहयोगी संस्थानों द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल पीएनएएस नेक्सस में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि भले ही जीन और जीवनशैली जैसे मोबाइल या टीवी स्क्रीन पर समय बिताना जैसे कारक मायोपिया में बड़ा योगदान देते हैं, लेकिन पर्यावरणीय कारक, खासकर वायु प्रदूषण, भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मतलब की साफ हवा सिर्फ फेफड़ों के लिए नहीं, बल्कि आंखों के लिए भी जरूरी है।
निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) से जूझ रहे एक तिहाई बच्चे
शोध में यह भी सामने आया कि प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की दृष्टि प्रदूषण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होती है। अध्ययन में छोटे बच्चों के साफ हवा के संपर्क में आने पर दृष्टि में सबसे ज्यादा सुधार देखा गया, जबकि बड़े बच्चे और जिनमें मायोपिया अधिक है, उनमें आनुवंशिकी का प्रभाव ज्यादा पाया गया। इसका मतलब है कि जल्द कार्रवाई करने से समस्या को गंभीर होने से रोका जा सकता है।
ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि आज दुनिया में करीब एक तिहाई बच्चे और किशोर निकट दृष्टि दोष या मायोपिया से पीड़ित हैं। इसकी वजह से बच्चों को दूर की चीजें देखने में कठिनाई हो रही है।
आशंका है कि अगले 26 वर्षों में इस समस्या से जूझ रहे बच्चों की संख्या बढ़कर 74 करोड़ तक पहुंच जाएगी।
अध्ययन से पता चला है कि दूषित हवा आंखों में सूजन और तनाव पैदा कर सकती है। साथ ही यह सूरज की रोशनी के संपर्क को कम कर सकती है और आंख के आकार में बदलाव ला सकती है, जिससे मायोपिया बढ़ सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि स्कूलों में एयर प्यूरीफायर लगाना, स्कूलों के आसपास “साफ हवा जोन” बनाना और स्कूल पिक-अप/ ड्रॉप-ऑफ के समय सड़क बंद करना बच्चों की दृष्टि में सुधार लाने में मददगार हो सकता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर युकिंग डाई का कहना है, “मायोपिया की समस्या तेजी से बढ़ रही है और यह भविष्य में आंखों से जुड़ी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है।" उनका आगे कहना है, बच्चों के जीन को नहीं बदला जा सकता, लेकिन उनके वातावरण को बदलकर आंखों की सुरक्षा की जा सकती है।”