बच्चों के जीन में बदलाव की वजह बन सकती है पैसिव स्मोकिंग, धूम्रपान करने जितनी ही है खतरनाक

रिसर्च से पता चला है कि पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आने से बच्चों के एपिजीनोम में बदलाव हो सकते हैं। इसकी वजह से उनके जीन के काम करने के तौर-तरीकों पर असर पड़ सकता है
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धूम्रपान सिर्फ करने वाले के लिए ही नहीं बल्कि आसपास उस धुंए के संपर्क में आने वालों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।

बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आने से बच्चों के एपिजीनोम में बदलाव हो सकते हैं। इसकी वजह से उनके जीन के काम करने के तौर-तरीकों पर असर पड़ सकता है। बच्चों के जीन में आने वाले यह बदलाव आगे चलकर बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन के नतीजे  खासकर बच्चों को सेकेंड हैंड स्मोक के संपर्क में आने से बचाने की वकालत करते हैं।

बता दें कि किसी कोशिका के डीएनए में जीन की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सभी बदलावों को एपिजीनोम कहते हैं। वहीं पैसिव स्मोकिंग का मतलब है कि जब खुद धूम्रपान न करके आसपास धूम्रपान करने से हो रहे धुंए (सेकेंड हैंड स्मोक) के संपर्क में आते हैं।

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गौरतलब है कि हमारा डीएनए शरीर के लिए एक निर्देश पुस्तिका की तरह काम करता है। ऐसे में तंबाकू का हानिकारक धुआं इस पुस्तक के शब्दों यानी जीन अनुक्रम को तो नहीं बदलता, लेकिन उसपर ऐसे “निशान” छोड़ देता है, जो इन निर्देशों को पढ़ने के तरीके को प्रभावित करते हैं।

ऐसा ही एक निशान को डीएनए मिथाइलेशन कहा जाता है, जो जीन की अभिव्यक्ति को चालू या बंद करने की अनुमति देता है।

बता दें कि वैज्ञानिकों इस तथ्य को पहले से जानते हैं कि गर्भावस्था के दौरान मां के धूम्रपान करने से बच्चे के जीन पर असर पड़ सकता है। हालांकि यह पहला अध्ययन है जो दर्शाता है कि बचपन में तम्बाकू के धुंए के संपर्क में आने से बच्चों की जीन पर गहरा असर पड़ सकता है।

यह अध्ययन स्पेन, फ्रांस और यूके सहित आठ यूरोपीय देशों के 2,695 बच्चों से जुड़े आंकड़ों पर आधारित है। इन बच्चों की आयु सात से दस वर्ष के बीच थी। ये बच्चे प्रेग्नेंसी एंड चाइल्डहुड एपिजेनेटिक्स कंसोर्टियम के छह शोध समूहों का हिस्सा थे।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने डीएनए मिथाइलेशन स्तर की जांच के लिए रक्त के नमूनों का परीक्षण किया और उनकी तुलना घर में धूम्रपान करने वालों की संख्या से की है।

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स्वास्थ्य से खिलवाड़

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 11 क्षेत्रों (सीपीजी) में डीएनए मिथाइलेशन में बदलाव को रिकॉर्ड किया जो सेकेंड हैंड स्मोकिंग के संपर्क से जुड़े थे। इनमें से अधिकांश बदलावों को पिछले शोधों में भी धूम्रपान करने वालों या गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान के सीधे संपर्क में आने से जोड़ा गया था। इनमें से छह अस्थमा और कैंसर जैसी बीमारियों से जुड़े हैं, जिन्हें धूम्रपान के जोखिम के रूप में जाना जाता है।

इस बारे में आईएसग्लोबल की प्रमुख शोधकर्ता मार्टा कोसिन-टॉमस ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "अध्ययन दर्शाता है कि बचपन में पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आने से मॉलिक्यूलर लेवल पर गहरे निशान पड़ सकते हैं, जो जीन में बदलावों की वजह बन सकते हैं। यह जीवन में आगे चलकर बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकते हैं।"

हालांकि देखा जाए तो भारत सहित कई देशों में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं, लेकिन अभी भी बच्चे घरों में पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आ रहे हैं। 2004 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में करीब 40 फीसदी बच्चे इसके संपर्क में आए थे।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस धुंए से फेफड़े और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। इसके साथ-साथ बच्चे के दिमागी विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी इस धुंए का गहरा असर पड़ सकता है।

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गौरतलब है कि बंद चहारदीवारी में तंबाकू का धुआं प्रदूषण का एक खतरनाक रूप है, क्योंकि इसमें 7,000 से अधिक केमिकल होते हैं। इनमें से 69 तरह के कैंसर का कारण बनते हैं। जर्नल जामा ऑप्थैल्मोलॉजी में छपे एक शोध के मुताबिक सेकंड-हैंड स्मोकिंग ने केवल बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि आने वाले वक्त में बच्चों की दृष्टि में विकार भी पैदा कर सकता है।

यदि आंकड़ों की माने तो तम्बाकू हर चार सेकंड में एक इंसान की जान ले रही है। मतलब की एक साल में 80 लाख लोगों की मौत के लिए तम्बाकू जिम्मेवार है।

विडंबना देखिए कि इनमें से 13 लाख लोग वो है जो इसके कारण पैदा हुए धुंए का शिकार बन जाते हैं। देखा जाए तो यह वो लोग हैं जो स्वयं इन उत्पादों का उपयोग न करने के बावजूद अप्रत्यक्ष रूप से इससे पैदा हुए धुंए में सांस लेने को मजबूर हैं। ऐसे में घर और बंद स्थानों पर बच्चों को तंबाकू के धुएं से बचाने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।

भारत में भी तम्बाकू एक बड़ी समस्या है। आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में धूम्रपान के चलते हर साल 10 लाख लोगों की मौत हो रही है। इतना ही नहीं इस आंकड़े में पिछले तीन दशकों में 58.9 फीसदी का इजाफा हुआ है। वहीं यदि सभी रूपों में तम्बाकू के सेवन की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल होने वाली साढ़े तरह लाख मौतों के लिए तम्बाकू जिम्मेवार है।

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