नई उम्मीद: कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं से घट सकता है डिमेंशिया का खतरा

अध्ययन में पाया गया है कि जिन लोगों में ऐसे जेनेटिक बदलाव होते हैं जो स्वाभाविक रूप से कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम रखते हैं, उनमें डिमेंशिया का खतरा कम होता है
फोटो:आईस्टॉक
फोटो:आईस्टॉक
Published on
सारांश
  • एक नए अध्ययन के अनुसार, खून में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने से डिमेंशिया का खतरा घट सकता है।

  • यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के शोधकर्ताओं ने 10 लाख से अधिक लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि जिनमें जेनेटिक बदलाव से कोलेस्ट्रॉल कम होता है, उनमें डिमेंशिया का खतरा 80 फीसदी तक कम हो सकता है।

  • अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि अगर शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम है, चाहे वह जीन के कारण हो या दवाओं से तो डिमेंशिया का खतरा घट सकता है।

एक नए अध्ययन में सामने आया है कि खून में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होने से डिमेंशिया का खतरा घट सकता है। इस अध्ययन में पाया गया है कि जिन लोगों में ऐसे जेनेटिक बदलाव होते हैं जो स्वाभाविक रूप से कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम रखते हैं, उनमें डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) का खतरा कम होता है।

यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया, जिसमें 10 लाख से अधिक लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल अल्जाइमर्स एंड डिमेंशिया में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन यूके बायोबैंक, कोपेनहेगन जनरल पॉपुलेशन स्टडी, फिनजेन स्टडी और ग्लोबल लिपिड्स जेनेटिक्स कंसोर्टियम जैसे बड़े डेटा स्रोतों पर आधारित है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक कुछ लोगों में ऐसे जेनेटिक बदलाव होते हैं जो उन ही प्रोटीनों को प्रभावित करते हैं, जिन पर कोलेस्ट्रॉल घटाने वाली दवाएं (जैसे स्टैटिन्स और एजेटिमाइब) असर करती हैं। डिमेंशिया के खतरे पर इन दवाओं के प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने मेंडेलियन रैंडमाइजेशन नामक तकनीक का उपयोग किया है।

यह एक जीन-आधारित विश्लेषण विधि है, जो इन दवाओं के असर की तरह ही स्थिति पैदा कर यह जांचने में मदद करती है कि कोलेस्ट्रॉल घटने से डिमेंशिया के खतरे पर कैसे प्रभाव पड़ता है। साथ ही इसमें वजन, खानपान और जीवनशैली जैसे अन्य कारणों का प्रभाव बेहद कम हो जाता है।

यह भी पढ़ें
भारत में 2050 तक 197 फीसदी बढ़ सकते हैं डिमेंशिया के मरीज
फोटो:आईस्टॉक

80 फीसदी तक घट सकता है खतरा

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ऐसे लोगों की तुलना उन लोगों से की है जिनमें ये जेनेटिक बदलाव नहीं थे। इसके निष्कर्षों से पता चला है कि रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा थोड़ी भी (एक मिलीमोल प्रति लीटर) घटाने से डिमेंशिया का खतरा कुछ मामलों में 80 फीसदी तक कम हो सकता है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर नॉर्डेस्टगार्ड ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया, “अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि जिन लोगों में ऐसे जेनेटिक बदलाव हैं जो कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं, उनमें डिमेंशिया होने का खतरा काफी कम होता है।“

अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि अगर शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम है, चाहे वह जीन के कारण हो या दवाओं से तो डिमेंशिया का खतरा घट सकता है। हालांकि, अध्ययन यह पक्के तौर पर नहीं कहता कि दवाओं का सीधा असर डिमेंशिया पर कितना होता है।

यह भी पढ़ें
पीएम 2.5 में दो माइक्रोग्राम की वृद्धि के साथ 17 फीसदी बढ़ सकता है डिमेंशिया का खतरा
फोटो:आईस्टॉक

क्यों कोलेस्ट्रॉल से बढ़ जाता है डिमेंशिया का खतरा?

शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि अधिक कोलेस्ट्रॉल से डिमेंशिया का खतरा क्यों बढ़ जाता है, लेकिन एक संभावित कारण यह है कि उच्च कोलेस्ट्रॉल, एथेरोस्क्लेरोसिस का कारण बन सकता है।

बता दें कि एथेरोस्क्लेरोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें धमनियों में वसा, कोलेस्ट्रॉल और अन्य पदार्थों जमा हो जाते हैं। इनकी वजह से धमनियां सख्त और संकरी हो जाती हैं। नतीजन रक्त का प्रवाह सीमित हो जाता है और यह हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी वजह से शरीर और दिमाग दोनों में खून के छोटे थक्के बनने लगते हैं, जो डिमेंशिया के मुख्य कारणों में से एक हैं।

यह भी पढ़ें
एआई की मदद से लक्षण प्रकट होने से वर्षों पहले ही लग सकता है डिमेंशिया का पता
फोटो:आईस्टॉक

डॉ. नॉर्डस्टगार्ड का कहना है, “अगर आने वाले वर्षों में 10 से 30 साल तक चलने वाले दीर्घकालिक परीक्षण किए जाएं, जिनमें लोगों को कोलेस्ट्रॉल घटाने की दवाएं दी जाएं, तो हम डिमेंशिया पर इनका प्रभाव और स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे।“

क्या है डिमेंशिया और क्यों है इतना खतरनाक

गौरतलब है कि डिमेंशिया किसी एक बीमारी का नाम नहीं, बल्कि कई बीमारियों या यूं कहें कई लक्षणों के एक समूह का नाम है। यह एक ऐसा विकार है, जिसके शिकार मानसिक रूप से इतने कमजोर हो जातें हैं, उन्हें अपने रोजमर्रा के कामों को पूरा करने के लिए भी किसी दूसरे की मदद लेनी पड़ती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक इस विकार में दिमाग के अंदर विभिन्न प्रकार के प्रोटीनों का निर्माण होने लगता है, जो मस्तिष्क के सेल्स को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। नतीजतन इंसान की याददाश्त, देखने, सोचने-समझने और बोलने की क्षमता में धीरे-धीरे गिरावट आने लगती है।

यह बीमारी आज दुनिया में तेजी से पैर पसार रही है। आज दुनिया में करीब 5.7 करोड़ से ज्यादा लोग मनोभ्रंश के साथ जिंदगी व्यतीत करने को मजबूर हैं। वहीं अंदेशा है कि 2050 तक 166 फीसदी की वृद्धि के साथ डिमेंशिया से पीड़ित इन लोगों का आंकड़ा बढ़कर 15.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in