
मां हमें इस दुनिया में लाती है, पालन-पोषण करती है और जीवन जीने का तरीका सिखाती है। लेकिन मां बनना इतना आसान भी नहीं है। गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक के सफर में कई महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं।
इसलिए हर साल 11 अप्रैल को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस, प्रसव की सुरक्षित प्रथाओं को सुनिश्चित करने और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए एक मंच के रूप में काम करता है। यह दिन गर्भवती महिलाओं को जरूरी देखभाल प्रदान करने के महत्व पर प्रकाश डालता है, जिसमें प्रसवपूर्व से लेकर प्रसवोत्तर तक के विभिन्न चरण शामिल हैं, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जोर दिया जाता है।
साल 2025 की थीम "स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य" है। यह गर्भावस्था के पहले दिन से ही हर मां के लिए सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की जरूरतों पर प्रकाश डालता है। यह अभियान माताओं और नवजात शिशुओं दोनों के स्वास्थ्य पर आधारित है। यह देखभाल की कमी के कारण होने वाली रोकी जा सकने वाली मातृ और शिशु मृत्यु को रोकने के लिए एक वैश्विक पहल है।
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की स्थापना 2003 में व्हाइट रिबन अलायंस इंडिया (डब्ल्यूआरएआई) द्वारा की गई थी। यह दिन महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी की जयंती का प्रतीक है, जिन्होंने अपना जीवन महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। इस तरह भारत मातृ स्वास्थ्य के लिए एक दिन समर्पित करने वाला अग्रणी देश बन गया, जिसने वैश्विक जागरूकता और कार्रवाई के लिए एक मिसाल कायम की।
दुनिया भर में शुरुआत में मातृ स्वास्थ्य पर बहुत कम ध्यान दिया गया, लेकिन धीरे-धीरे यह एक भारी चिंता का विषय बन गया, जैसा कि सतत विकास लक्ष्यों में इसके शामिल होने से स्पष्ट है। पिछले कुछ सालों में, ठोस प्रयासों के चलते 1987 से मातृ मृत्यु दर में 43 फीसदी की गिरावट आई है, फिर भी चुनौतियां बनी हुई हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया भर में अभी भी 3,00,000 महिलाएं गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं के कारण हर साल दम तोड़ देती हैं।
भारत की मातृ मृत्यु दर 2000 में 384 से घटकर 2020 में 103 हो गई, जो दुनिया भर की गिरावट से अधिक है। सतत विकास लक्ष्य 3.1 का लक्ष्य 2030 तक मातृ मृत्यु दर को प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर 70 से कम तक लाना है।
देश में मातृ स्वास्थ्य को समर्थन देने वाली पहल और कार्यक्रम:
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए): प्रत्येक महीने की नौ तारीख को निःशुल्क प्रसवपूर्व देखभाल प्रदान करना।
सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन): महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके): सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में निःशुल्क प्रसव सेवाएं और संबंधित प्रावधान प्रदान करना।
लक्ष्य: प्रसव कक्षों और प्रसूति ऑपरेशन थिएटरों में देखभाल की गुणवत्ता बढ़ाना।
ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) जैसी आउटरीच पहल, ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना।