विश्व स्वास्थ्य दिवस: मांओं व शिशुओं का स्वास्थ्य स्वस्थ परिवारों की नींव

आज भी दुनिया भर में गर्भावस्था या प्रसव संबंधी जटिलताओं के कारण हर दो मिनट में एक महिला की मृत्यु हो जाती है।
माताओं और नवजात शिशुओं को खतरे में डालने वाली कई जटिलताएं केवल प्रसूति संबंधी प्रकृति की नहीं हैं। उनमें प्रसवोत्तर अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी अज्ञात गैर-संचारी बीमारियां और परिवार नियोजन तक पहुंच की कमी शामिल हैं।
माताओं और नवजात शिशुओं को खतरे में डालने वाली कई जटिलताएं केवल प्रसूति संबंधी प्रकृति की नहीं हैं। उनमें प्रसवोत्तर अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी अज्ञात गैर-संचारी बीमारियां और परिवार नियोजन तक पहुंच की कमी शामिल हैं।फोटो साभार: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)
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हर साल सात अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व स्वास्थ्य दिवस वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रकाश डालता है तथा स्वस्थ विश्व के निर्माण हेतु एकजुट प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।

साल 1950 से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सात अप्रैल को चिंतन और संकल्प के वार्षिक क्षण के रूप में पहचान दी है। जैसे-जैसे बीमारियों, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और निवारक देखभाल के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, दुनिया भर में स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में केंद्र में आ गया है।

दिसंबर 1945 में युद्ध के बाद के मलबे के बीच, दो देशों- ब्राजील और चीन ने आधुनिक इतिहास में सबसे महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य आंदोलन के बीज बोए। उन्होंने क्षेत्र या क्षतिपूर्ति की मांग नहीं की। उन्होंने कुछ और क्रांतिकारी मांगा, राजनीति की पहुंच से परे एक स्वास्थ्य संगठन।

एक वैश्विक स्वास्थ्य संस्था, जो किसी एक सरकार के प्रति नहीं, बल्कि मानवता के प्रति जवाबदेह हो। सात अप्रैल, 1948 तक, उनका सपना विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के रूप में साकार हो चुका था और इसके साथ ही, विश्व स्वास्थ्य दिवस का जन्म हुआ।

हर साल, विश्व स्वास्थ्य संगठन विश्व स्वास्थ्य दिवस के लिए एक खास थीम की घोषणा करता है ताकि समस्या के एक प्रमुख क्षेत्र पर प्रकाश डाला जा सके। साल 2025 के लिए, थीम "स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य" है।

आज भी दुनिया भर में गर्भावस्था या प्रसव संबंधी जटिलताओं के कारण हर दो मिनट में एक महिला की मृत्यु हो जाती है। नवजात शिशुओं की मृत्यु पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में होने वाली सभी मौतों में से लगभग आधी होती है। इससे भी बढ़कर, इनमें से कई मौतें, अनुपचारित स्थितियों के कारण नहीं होती हैं। उन्हें रोका जा सकता है।

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माताओं और नवजात शिशुओं को खतरे में डालने वाली कई जटिलताएं केवल प्रसूति संबंधी प्रकृति की नहीं हैं। उनमें प्रसवोत्तर अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी अज्ञात गैर-संचारी बीमारियां और परिवार नियोजन तक पहुंच की कमी शामिल हैं।

लगभग एक तिहाई महिलाओं को जरूरी आठ प्रसवपूर्व जांचों में से चार भी नहीं मिलती हैं या उन्हें आवश्यक प्रसवोत्तर देखभाल नहीं मिलती है, जबकि लगभग 27 करोड़ महिलाओं के पास आधुनिक परिवार नियोजन विधियों तक पहुंच नहीं है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल लगभग 3,00,000 महिलाएं गर्भावस्था या प्रसव के कारण अपनी जान गंवा देती हैं, जबकि 20 लाख से अधिक बच्चे अपने जीवन के पहले महीने में ही मर जाते हैं और लगभग 20 लाख बच्चे मृत पैदा होते हैं। यह लगभग हर सात सेकंड में एक रोकी जा सकने वाली मृत्यु होती है।

वर्तमान रुझानों के आधार पर, 2030 तक मातृ उत्तरजीविता में सुधार के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पांच में से चार देश सही दिशा में नहीं हैं। तीन में से एक नवजात मृत्यु को कम करने के लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहेगा।

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माताओं और नवजात शिशुओं को खतरे में डालने वाली कई जटिलताएं केवल प्रसूति संबंधी प्रकृति की नहीं हैं। उनमें प्रसवोत्तर अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी अज्ञात गैर-संचारी बीमारियां और परिवार नियोजन तक पहुंच की कमी शामिल हैं।

डब्ल्यूएचओ के द्वारा इस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस पर सरकारों और स्वास्थ्य समुदाय से आग्रह किया गया है कि वे इस खाई को पाटें। यह केवल मातृ मृत्यु दर को कम करने के बारे में नहीं है। यह ऐसी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तैयार करने के बारे में है जो प्रसव से पहले, प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद मां को महत्व देती है। क्योंकि संख्याएं साबित करती हैं कि जो समाज अपनी माताओं की देखभाल करते हैं, वे सभी की बेहतर देखभाल करते हैं।

सदियों से प्रसव को पवित्र माना जाता रहा है, इस दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डब्ल्यूएचओ इसे बदलना चाहता है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि हर जगह महिलाओं और परिवारों को उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल की जरूरत होती है जो उन्हें जन्म से पहले, जन्म के दौरान और जन्म के बाद शारीरिक और भावनात्मक रूप से सहारा दे।

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माताओं और नवजात शिशुओं को खतरे में डालने वाली कई जटिलताएं केवल प्रसूति संबंधी प्रकृति की नहीं हैं। उनमें प्रसवोत्तर अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी अज्ञात गैर-संचारी बीमारियां और परिवार नियोजन तक पहुंच की कमी शामिल हैं।

डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि इस अभियान को समझने के लिए, हमें केवल अस्पतालों के संदर्भ में सोचना बंद करके सिस्टम के संदर्भ में सोचना शुरू करना होगा। जैसा कि डब्ल्यूएचओ बताता है, माताओं और नवजात शिशुओं को खतरे में डालने वाली कई जटिलताएं केवल प्रसूति संबंधी प्रकृति की नहीं हैं। उनमें प्रसवोत्तर अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी अज्ञात गैर-संचारी बीमारियां और परिवार नियोजन तक पहुंच की कमी शामिल हैं।

मातृत्व देखभाल एक विशिष्ट मुद्दा लग सकता है, लेकिन यह एक ऐसा प्रिज्म है जो समाज के कामकाज के बारे में सब कुछ बताता है। जब कोई देश स्वस्थ शुरुआत में निवेश करता है, तो यह सभी के लिए आशापूर्ण भविष्य में विश्वास की ओर इशारा करता है। यही बात इस अभियान को चुपचाप क्रांतिकारी बनाती है। इस बात पर जोर देना कि हर महिला, हर जगह, प्रसव के दौरान सम्मान और उसके बाद देखभाल की हकदार है।

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