
दुनिया की 40 फीसदी आबादी (तीन अरब लोग) किसी न किसी न्यूरोलॉजिकल बीमारी से पीड़ित है।
हर साल 1.1 करोड़ से अधिक मौतें मस्तिष्क रोगों से होती हैं।
सिर्फ 32 फीसदी देशों के पास इन बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति है।
कम आय वाले देशों में न्यूरोलॉजिस्ट की भारी कमी, 80 गुना कम विशेषज्ञ।
डब्ल्यूएचओ ने देशों से नीति, निवेश और सेवाओं के विस्तार पर त्वरित कदम उठाने की अपील की है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन न्यूरोलॉजी जारी करते हुए चेतावनी दी है कि अब दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी यानी तीन अरब से अधिक लोग किसी न किसी न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क-संबंधी) बीमारी से जूझ रहे हैं। हर साल इन बीमारियों के कारण 1.1 करोड़ से अधिक मौतें होती हैं।
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि विश्व के केवल तीन में से एक देश के पास ऐसी बीमारियों से निपटने की कोई राष्ट्रीय नीति है। अधिकांश देशों में अब भी पर्याप्त बजट, प्रशिक्षित विशेषज्ञ और देखभाल सेवाओं की भारी कमी है।
मुख्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियां
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में जो शीर्ष 10 बीमारियां मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा कारण बनीं, वे हैं:
नवजात एन्सेफैलोपैथी (जन्म के बाद मस्तिष्क की क्षति)
अल्जाइमर रोग और अन्य डिमेंशिया
डायबिटिक न्यूरोपैथी (मधुमेह से नसों की क्षति)
मेनिन्जाइटिस (मस्तिष्कावरण की सूजन)
मिर्गी (एपिलेप्सी)
अल्पकालिक जन्म से जुड़ी न्यूरोलॉजिकल जटिलताएं
तंत्रिका तंत्र के कैंसर
गरीब देशों में संकट गहराया
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में बताया गया कि कम आय वाले देशों में उच्च आय वाले देशों की तुलना में 80 गुना कम न्यूरोलॉजिस्ट (मस्तिष्क विशेषज्ञ) हैं। इस वजह से करोड़ों मरीज समय पर निदान और उपचार से वंचित रह जाते हैं।
अधिकांश गरीब और मध्यम आय वाले देशों में न तो कोई राष्ट्रीय योजना है, न बजट, और न ही प्रशिक्षित चिकित्सा स्टाफ। कई ग्रामीण इलाकों में तो मस्तिष्क रोगों के उपचार की कोई सुविधा ही नहीं है।
सेवाओं की सीमित पहुंच
सिर्फ 25 फीसदी देशों (49 देशों) में ही न्यूरोलॉजिकल बीमारियां यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) के लाभ पैकेज में शामिल हैं। इसका अर्थ है कि अधिकांश लोगों को स्ट्रोक यूनिट, पुनर्वास केंद्र, बच्चों की न्यूरोलॉजी और पैलिएटिव केयर जैसी सेवाएं नहीं मिलतीं।
रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ के असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल डॉ. जेरेमी फैरार के हवाले से कहा गया है कि दुनिया के हर तीन में से एक व्यक्ति मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी से पीड़ित है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं मिलें। कई बीमारियां रोकी या ठीक की जा सकती हैं, लेकिन सेवाएं लोगों की पहुंच से बाहर हैं, खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
देखभालकर्ताओं की स्थिति चिंताजनक
रिपोर्ट बताती है कि केवल 46 देशों में ही देखभाल सेवाएं हैं और 44 देशों में ही देखभाल करने वालों के लिए कानूनी सुरक्षा है। ज्यादातर मामलों में देखभाल का बोझ महिलाओं पर पड़ता है, जिससे सामाजिक असमानता और आर्थिक तनाव बढ़ता है।
नीति और शोध में पिछड़ापन
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कमजोर स्वास्थ्य सूचना प्रणाली और अपर्याप्त शोध निवेश के कारण नीति-निर्माण और प्रभावी रणनीतियों में बाधा आती है।
विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह स्थिति गंभीर है। आंकड़ों की कमी से यह समझना कठिन होता है कि बीमारी का वास्तविक बोझ कितना है और किन क्षेत्रों में सबसे अधिक खतरा है।
कार्ययोजना और समाधान
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, डब्ल्यूएचओ ने 2022 में सदस्य देशों के साथ मिलकर “इंटरसेक्टोरल ग्लोबल एक्शन प्लान ऑन एपिलेप्सी एंड अदर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स” अपनाया। इसका उद्देश्य नीति प्राथमिकता बढ़ाना, समय पर और प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना, मस्तिष्क स्वास्थ्य को जीवन के हर चरण में प्रोत्साहित करना, डेटा प्रणाली और निगरानी को मजबूत बनाना तथा प्रभावित लोगों को नीति निर्माण में शामिल करना है।
डब्ल्यूएचओ की सिफारिशें
डब्ल्यूएचओ ने देशों से आग्रह किया है कि वे न्यूरोलॉजिकल बीमारियों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में प्राथमिकता दें। सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के तहत मस्तिष्क रोगों की सेवाएं शामिल करें। मस्तिष्क स्वास्थ्य को बचपन से वृद्धावस्था तक एक सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंडा बनाएं। आंकड़े संग्रह और शोध को मजबूत करें ताकि साक्ष्य-आधारित नीतियां बन सकें।
न्यूरोलॉजिकल बीमारियां अब सिर्फ चिकित्सा का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट का भी संकेत बन चुकी हैं। यदि समय रहते ठोस नीति, निवेश और वैश्विक सहयोग नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह बोझ और भी बढ़ेगा। डब्ल्यूएचओ का यह संदेश स्पष्ट है कि मस्तिष्क स्वास्थ्य कोई विलासिता नहीं, बल्कि मानव विकास की मूल आवश्यकता है।