मानसिक स्वास्थ्य पर असर: परफेक्ट सेल्फी की चाहत ने बढ़ाई कॉस्मेटिक सर्जरी की मांग

भारत पहले ही सेल्फी से जुड़ी मौतों में दुनिया में सबसे आगे है। अब यह आदत न केवल शारीरिक खतरे बढ़ा रही है, बल्कि धीरे-धीरे पहचान, मानसिक स्वास्थ्य और सौंदर्य की सोच को भी बदल रही है।
सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं।
सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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आज के दौर में सेल्फी लेना एक आम आदत बन चुका है। खासकर युवाओं में यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब यह केवल तस्वीर खींचने तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि उनके आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। हाल ही में द एस्थेटिक क्लीनिक्स द्वारा किए गए एक बड़े अध्ययन में पता चला है कि युवाओं में बढ़ती सेल्फी की लत कॉस्मेटिक सर्जरी की मांग को तेजी से बढ़ा रही है।

जर्नल ऑफ कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में 5,000 लोगों को शामिल किया गया। शुरुआती नतीजों से पता चलता है कि लगातार सेल्फी लेने और उन्हें एडिट करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की आदत ने युवाओं को अपनी शक्ल-सूरत बदलवाने की चाह में धकेल दिया है। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अंतिम रिपोर्ट अगले कुछ महीनों में आएगी, लेकिन शुरुआती संकेत चौंकाने वाले हैं।

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सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं।

📸 पहले के अध्ययन ने भी दिखाया असर

यह पहली बार नहीं है जब सेल्फी संस्कृति और कॉस्मेटिक सर्जरी के बीच संबंध सामने आया है। 2019 में द एस्थेटिक क्लीनिक्स ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और हैदराबाद के 3,000 युवाओं पर अध्ययन किया था। उस शोध से यह साबित हुआ कि - लगातार सेल्फी लेना और पोस्ट करना सोशल एंग्जायटी (सामाजिक चिंता) बढ़ाता है। इससे युवाओं का आत्मविश्वास कम होता है। खासकर युवतियों में कॉस्मेटिक सर्जरी की इच्छा ज्यादा पाई जाती है।

बिना एडिट की गई सेल्फी तुरंत चिंता तो बढ़ाती हैं, लेकिन एडिटेड सेल्फियां आत्मविश्वास और आकर्षण दोनों को और ज्यादा गिराती हैं। यह शोध पहली बार यह साबित करता था कि डिजिटल तस्वीरों में बदलाव (फिल्टर, एडिटिंग) सीधा असर युवाओं की मानसिकता और शरीर के प्रति सोच पर डालता है।

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सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं।

📸 क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

इस नए अध्ययन का नेतृत्व कर रहे शोधकर्ता का कहना है कि आजकल कई युवा मरीज हमारे पास अपनी एडिटेड सेल्फियां लेकर आते हैं और कहते हैं कि वे बिल्कुल वैसे ही दिखना चाहते हैं। अब हमारे अध्ययन से साफ हो गया है कि यह केवल कुछ गिने-चुने मामलों की बात नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर प्रवृत्ति बन चुकी है। सेल्फी की लत असली है और यह युवाओं को सर्जरी की ओर धकेल रही है। यह न सिर्फ कॉस्मेटिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की भी चिंता का विषय है।

पहले कि गए एक शोध में यह सामने आया था कि सेल्फी पोस्ट करना अगर वे बिना एडिट की हों, भी आत्मविश्वास को घटा देता है। लेकिन एडिटेड सेल्फियां युवाओं को खतरनाक चक्र में डाल देती हैं, जहां वे लगातार अपनी तुलना अवास्तविक सौंदर्य मानकों से करने लगते हैं। यही कारण है कि आज कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं का जिम्मेदारी से इस्तेमाल और जागरूकता बेहद जरूरी है।

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सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं।

📸 सांस्कृतिक और सामाजिक चुनौती

भारत पहले से ही दुनिया में सेल्फी से जुड़ी मौतों में सबसे आगे है। अक्सर खतरनाक जगहों पर खींची गई तस्वीरें जानलेवा साबित होती हैं। लेकिन अब यह आदत एक और चुनौती बनकर सामने आई है। यह केवल शारीरिक खतरे नहीं बढ़ा रही, बल्कि धीरे-धीरे युवाओं की पहचान, मानसिक स्वास्थ्य और सौंदर्य की सोच को भी बदल रही है।

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सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रवृत्ति से निपटने के लिए कई कदम उठाए जाने जरूरी हैं, जैसे—

  • स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

  • युवाओं को मीडिया लिटरेसी यानी डिजिटल तस्वीरों और वास्तविकता के बीच फर्क सिखाया जाए।

  • डॉक्टर और क्लीनिक मरीजों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को समझें और तभी कॉस्मेटिक सर्जरी की अनुमति दें।

सेल्फी संस्कृति ने युवाओं को नई पहचान दी है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परफेक्ट सेल्फी पाने की चाह में युवा अपनी वास्तविक सुंदरता और आत्मविश्वास खो रहे हैं। कॉस्मेटिक सर्जरी का जिम्मेदारी से उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देकर ही इस नई चुनौती से निपटा जा सकता है।

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