
आज 23 जनवरी को दुनिया भर में मातृ स्वास्थ्य जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन माताओं के द्वारा सामना किए जाने वाले शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के स्वास्थ्य संबंधी अनोखे संघर्षों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए समर्पित है।
मातृत्व स्वास्थ्य जागरूकता दिवस प्रसव के बाद होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं, मातृ मृत्यु दर और प्रसव के बाद मातृ स्वास्थ्य देखभाल के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। नई माताओं को जन्म देने के बाद कई तरह की स्वास्थ्य जटिलताओं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा होता है और इन समस्याओं को दूर करने के लिए उन्हें सहायता की जरूरत पड़ती है।
मातृ मृत्यु दर, हालांकि रोकी जा सकती है, फिर भी दुनिया के कई हिस्सों में आम है। सीडीसी के अनुसार, अमेरिका में अश्वेत महिलाओं की गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं से मरने की आशंका श्वेत महिलाओं की तुलना में दो से तीन गुना अधिक है।
स्वास्थ्य जटिलताओं को रोकने में मातृ देखभाल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो एक नई मां के संघर्ष को और भी चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं।
भारत में 22 फीसदी नई माताओं को प्रसवोत्तर अवसाद (पीपीडी) का कोई न कोई रूप अनुभव होता है, जिसका अर्थ है कि बहुत सी माताएं बच्चे के जन्म के बाद मूड में बदलाव से गुजरती हैं, जिसके कारण वे दुखी या चिंतित रहती हैं। ऐसा कई कारणों से हो सकता है, लेकिन अधिकतर मामलों में, यह अनुमान लगाया जाता है कि प्रसव के बाद प्रजनन हार्मोन में बदलाव होता है।
मातृ स्वास्थ्य जागरूकता दिवस के इतिहास के बारे में बात करें तो, पहला मातृ स्वास्थ्य जागरूकता दिवस 23 जनवरी, 2017 को न्यू जर्सी में मनाया गया था। मातृ स्वास्थ्य जागरूकता दिवस की स्थापना की गई ताकि मातृ स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके।
प्रसवोत्तर अवसाद, चिंता, अनिद्रा, हृदय रोग का बढ़ता जोखिम, संक्रमण, थायरॉयड की समस्या, मूत्र असंयम कुछ ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं हैं जिनका सामना नई माताओं को करना पड़ता है। माताओं के लिए समाज, समुदाय, सरकार और परिवार के सदस्यों से निरंतर देखभाल और सहायता हासिल करना जरूरी है।
प्रसवकालीन मनोदशा या चिंता विकार महिलाओं में काफी आम हैं, जिनमें से पांच में से एक महिला गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद पहले 12 महीनों तक इस तरह के विकार से पीड़ित होती है। उनमें से लगभग 80 फीसदी चिंता के लक्षणों का अनुभव करते हैं, जबकि केवल 15 फीसदी को मदद मिल पाती है।