

लॉन्ग कोविड केवल कोरोना वायरस से नहीं, बल्कि शरीर में पहले से मौजूद या दोबारा सक्रिय हुए संक्रमणों से भी जुड़ा हो सकता है
एपस्टीन-बार वायरस का दोबारा सक्रिय होना थकान, ब्रेन फॉग और याददाश्त की समस्या जैसे लक्षणों से जुड़ा पाया गया
कोविड-19 इम्यून सिस्टम को कमजोर कर सकता है, जिससे तपेदिक जैसी छुपी बीमारियां फिर से उभर सकती हैं
वैज्ञानिकों ने “प्रतिरक्षा चोरी” का विचार रखा, जिसमें कोविड के बाद शरीर दूसरी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है
शोधकर्ताओं का मानना है कि अन्य संक्रमणों का इलाज करने से भविष्य में लॉन्ग कोविड के लक्षण कम हो सकते हैं
कोविड-19 से ठीक होने के बाद भी लाखों लोग ऐसे हैं जो महीनों या वर्षों तक थकान, सांस लेने में तकलीफ, दिमागी धुंध (ब्रेन फॉग), याददाश्त की समस्या और कमजोरी जैसी परेशानियों से जूझते रहते हैं। इस स्थिति को लॉन्ग कोविड कहा जाता है। अब तक वैज्ञानिकों के लिए यह समझना बहुत कठिन रहा है कि आखिर लॉन्ग कोविड होता क्यों है और इसका इलाज कैसे किया जाए।
हाल ही में माइक्रोबायोलॉजी (सूक्ष्मजीव विज्ञान) के 17 प्रमुख वैज्ञानिकों के एक समूह ने एक नई और अहम संभावना पर ध्यान दिलाया है। उनका कहना है कि लॉन्ग कोविड के लिए केवल कोरोना वायरस को ही जिम्मेदार मानना सही नहीं हो सकता। हो सकता है कि शरीर में पहले से मौजूद या कोविड के दौरान हुई अन्य संक्रमण बीमारियां भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही हों।
यह यह शोध ईलाइफ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें रटगर्स हेल्थ और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) से जुड़े विशेषज्ञ भी शामिल हैं।
लॉन्ग कोविड को समझना इतना मुश्किल क्यों है?
अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 40 करोड़ लोग लॉन्ग कोविड से प्रभावित हो चुके हैं। इसके लक्षण हल्के भी हो सकते हैं और बहुत गंभीर भी। कुछ लोगों में यह दिमाग, दिल, फेफड़ों और पाचन तंत्र तक को प्रभावित करता है। इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद डॉक्टरों के पास अब तक कोई पक्का इलाज नहीं है, क्योंकि इसके पीछे की जैविक वजहें साफ नहीं हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को इस तरह बिगाड़ देता है कि दूसरी बीमारियां सक्रिय हो जाती हैं।
एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) की भूमिका
सबसे मजबूत सबूत एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) से जुड़े हैं। यह वही वायरस है जो मोनोन्यूक्लियोसिस नामक बीमारी का कारण बनता है। हैरानी की बात यह है कि दुनिया के लगभग 95 प्रतिशत वयस्कों के शरीर में यह वायरस मौजूद होता है, लेकिन आमतौर पर यह निष्क्रिय (सोया हुआ) रहता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को कोविड होता है, तो उसकी इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकती है। इससे ईबीवी दोबारा सक्रिय हो सकता है। शुरुआती अध्ययनों में पाया गया कि लगभग दो-तिहाई लॉन्ग कोविड मरीजों में हाल ही में ईबीवी के सक्रिय होने के संकेत मिले। जिन लोगों में ज्यादा लक्षण थे, उनमें ईबीवी से जुड़ी एंटीबॉडी का स्तर भी अधिक था।
बाद की रिसर्च में यह भी देखा गया कि ईबीवी का दोबारा सक्रिय होना लॉन्ग कोविड के आम लक्षणों जैसे अत्यधिक थकान और सोचने-समझने में परेशानी से जुड़ा हो सकता है।
तपेदिक (टीबी) और कोविड का संबंध
एक और बड़ी बीमारी है तपेदिक (टीबी)। दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत आबादी के शरीर में टीबी का संक्रमण छुपे रूप में मौजूद है। आमतौर पर इम्यून सिस्टम इसे नियंत्रण में रखता है।
कुछ अध्ययनों से संकेत मिले हैं कि कोविड-19 उन इम्यून कोशिकाओं को कम कर सकता है जो टीबी को दबाकर रखती हैं। इससे टीबी दोबारा सक्रिय हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यह संबंध दोनों तरफ से काम करता है - टीबी से पीड़ित लोगों में कोविड ज्यादा गंभीर हो सकता है और कोविड के बाद टीबी उभर सकती है।
“इम्युनिटी चोरी” का विचार
वैज्ञानिकों ने एक नया विचार भी पेश किया है, जिसे “इम्युनिटी चोरी” कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि कोविड होने के बाद व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता इस तरह प्रभावित हो जाती है कि वह दूसरी बीमारियों के प्रति ज्यादा कमजोर हो जाता है।
इसका एक संकेत यह भी है कि महामारी के बाद 44 देशों में कई संक्रामक बीमारियों के मामलों में महामारी से पहले की तुलना में दस गुना तक वृद्धि देखी गई है।
इलाज की संभावनाएं और सीमाएं
अगर यह सिद्ध हो जाता है कि दूसरी बीमारियां लॉन्ग कोविड में भूमिका निभाती हैं, तो इसका इलाज आसान हो सकता है। पहले से मौजूद एंटीवायरल और एंटीबायोटिक दवाओं को इस्तेमाल में लाया जा सकता है। लेकिन अभी यह सब केवल संभावना है।
वैज्ञानिक साफ कहते हैं कि अभी तक कोई भी अध्ययन यह साबित नहीं कर पाया है कि कोई खास संक्रमण सीधे लॉन्ग कोविड का कारण बनता है। जैसा कि शोधकर्ताओं में से एक ने कहा, संबंध होना और कारण होना एक बात नहीं है।
आगे की राह
यह शोध लॉन्ग कोविड को समझने के नए रास्ते खोलता है। इससे यह संकेत मिलता है कि इसका समाधान केवल कोरोना वायरस पर ध्यान देने से नहीं मिलेगा, बल्कि हमें पूरे इम्यून सिस्टम और दूसरी बीमारियों के साथ उसके संबंध को समझना होगा।
भले ही इससे तुरंत इलाज न मिले, लेकिन भविष्य में यह लाखों लोगों के लिए उम्मीद की नई किरण बन सकता है।