शुरुआती संक्रमण के बाद कोविड-19 द्वारा छोड़े गए प्रोटीन मस्तिष्क में कोर्टिसोल के स्तर को कम कर सकते हैं। इससे थकान, अवसाद, मस्तिष्क पर असर, अनिद्रा और स्मृति संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के वैज्ञानिकों के शोध में यह बात सामने आई है। यह शोध ब्रेन बिहेवियर एंड इम्युनिटी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इस शोध में लॉन्ग कोविड के दिमागी लक्षणों के पीछे छिपी वजहों पर नई रोशनी डाली गई है। लॉन्ग कोविड एक ऐसा खतरनाक सिंड्रोम है, जो वायरस से संक्रमित 35 फीसदी लोगों पर बुरा असर डालता है।
ये निष्कर्ष ऐसे समय में आए हैं जब कोविड ने गर्मियों में वापसी की है, 84 देशों में इसके मामले बढ़ रहे हैं और हाल ही में संपन्न हुए पेरिस ओलंपिक में कई हाई-प्रोफाइल एथलीट पॉजिटिव पाए गए थे।
यहां यह उल्लेखनीय हैं कि पिछले शोधों से पता चला था कि सार्स-सीओवी-2 एंटीजन, कोविड-19 का कारण बनने वाले वायरस द्वारा छोड़े गए प्रतिरक्षा-उत्तेजक प्रोटीन, संक्रमण के एक साल बाद तक लॉन्ग कोविड रोगियों के खून में बने रहते हैं। उन्हें कोविड के उन रोगियों के मस्तिष्क में भी पाया गया है जिनकी मृत्यु हो चुकी है।
लॉन्ग कोविड का असर जानने के लिए चूहों पर प्रयोग
वैज्ञानिकों ने यह नया शोध चूहों पर किया है, जिसमें यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि एंटीजन मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को कैसे प्रभावित करते हैं, शोधकर्ताओं ने चूहों के स्पाइनल द्रव में एस1 (स्पाइक प्रोटीन की एक उप इकाई) नामक एक एंटीजन डाला और उनकी तुलना एक नियंत्रित समूह से की।
एक हफ्ते बाद, एस1 के संपर्क में आए चूहों में, कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन कॉर्टिकोस्टेरोन का स्तर हिप्पोकैम्पस में 31 फीसदी तक की कमी आई, जो मस्तिष्क का वह क्षेत्र है जो स्मृति, निर्णय लेने और सीखने से जुड़ा होता है। नौ दिनों के बाद, स्तर 37 फीसदी तक गिर गया। शोधकर्ता ने शोध में कहा, एक चूहे के जीवन काल में नौ दिन एक लंबा समय होता है, उन्होंने कहा कि चूहे औसतन दो से तीन साल तक जीवित रहते हैं।
क्या है और क्यों जरूरी है कोर्टिसोल?
शोध के मुताबिक, कोर्टिसोल एक महत्वपूर्ण एंटी-इंफ्लेमेटरी है, जो ईंधन को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है, रक्तचाप, नींद-जागने के चक्र को नियमित करने और संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रण में रखने के लिए जरूरी है। एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि लॉन्ग कोविड वाले लोगों में कोर्टिसोल का स्तर कम होता है। शोध से पता चलता है कि क्रोनिक फटीग या थकान सिंड्रोम वाले लोगों में भी कोर्टिसोल का स्तर कम होता है।
ब्रेन बिहेवियर एंड इम्युनिटी नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि कोर्टिसोल में इतने सारे लाभकारी गुण हैं कि अगर इसे कम कर दिया जाए तो इसके कई बुरे परिणाम हो सकते हैं।
एक अन्य प्रयोग में, शोधकर्ताओं ने चूहों के विभिन्न समूहों को एक प्रतिरक्षा तनाव (एक कमजोर बैक्टीरिया) के संपर्क में रखा और उनकी हृदय गति, तापमान और व्यवहार के साथ-साथ मस्तिष्क में ग्लियाल कोशिकाओं नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं की गतिविधि की भी जांच पड़ताल की।
शोधकर्ताओं ने पाया कि चूहों का वह समूह जो पहले कोविड प्रोटीन एस1 के संपर्क में आया था, उसने तनाव के प्रति कहीं अधिक प्रतिक्रिया की, जिसमें खाने, पीने, व्यवहार, शरीर के तापमान और हृदय गति में अधिक स्पष्ट बदलाव, अधिक न्यूरोइन्फ्लेमेशन और ग्लियाल कोशिकाओं की अधिक सक्रियता शामिल थी।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, हमने पहली बार देखा कि इस वायरस द्वारा छोड़े गए एंटीजन के संपर्क में आने से मस्तिष्क में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया वास्तव में बदल जाती है, जिससे यह बाद के तनाव या संक्रमण के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रिया करता है।
वैज्ञानिकों ने माना कि लॉन्ग कोविड पर और अधिक शोध की जरूरत है
शोधकर्ता ने शोध में जोर देकर कहा कि यह अध्ययन जानवरों पर किया गया था और यह निर्धारित करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या और कैसे कम कोर्टिसोल लोगों में लॉन्ग कोविड के लक्षणों का कारण बन सकता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह प्रक्रिया कुछ इस तरह हो सकती है, कोविड एंटीजन कोर्टिसोल को कम करते हैं, जो मस्तिष्क में तनाव के प्रति उकसाने वाली प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने का काम करता है। एक बार जब कोई तनाव उत्पन्न होता है - चाहे वह काम का एक बुरा दिन हो, हल्का संक्रमण हो या कड़ी कसरत हो - मस्तिष्क के उकसाने वाली प्रतिक्रिया उन सीमाओं के बिना मुक्त हो जाती है और गंभीर लक्षण वापस आ जाते हैं।
इनमें थकान, अवसाद, मस्तिष्क पर असर, अनिद्रा और स्मृति संबंधी समस्याएं शामिल हो सकती हैं। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि उन्हें संदेह है कि कोर्टिसोल का उपचार लॉन्ग कोविड के लिए एक प्रभावी उपचार हो सकता है, क्योंकि वे मूल कारण तक नहीं पहुंचेंगे और कई दुष्प्रभावों के साथ आते हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि विभिन्न तनावों की पहचान करना और उन्हें कम करना लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है।
शोध के मुताबिक, एंटीजन के स्रोत को जड़ से खत्म करना, जिसमें ऊतक भंडार शामिल हैं जहां वायरस के हिस्से छिपे रहते हैं, यह भी खोज के लायक नजरिया हो सकता है।
शोधकर्ता ने शोध में कहा कि इस कमजोर करने वाले सिंड्रोम से पीड़ित कई लोग हैं। यह शोध हमें यह समझने के करीब ले जाता है कि न्यूरो-बायोलॉजिकल रूप से क्या चल रहा है और कोर्टिसोल किस तरह से भूमिका निभा सकता है।