लॉन्ग कोविड: तकलीफों के दलदल में महामारी के शिकार

पहली और दूसरी लहर के दौरान वायरस की चपेट में आए लोग अब तक कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं
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कोविड-19 से रिकवरी का मतलब ठीक होना नहीं है। डाउन टू अर्थ ने 2020 में पहली लहर से बाद अगस्त में ऐसे कई लोगों से बात की थी जो रिकवरी के चार-पांच महीने बाद भी कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे। तब से अब तक बहुत पानी बह चुका है। डाउन टू अर्थ दिसंबर 2021 में एक बार फिर उनसे संपर्क साधा और पाया कि उनकी समस्याओं का अंत अब तक नहीं हुआ है। हमने 2021 की दूसरी लहर के दौरान संक्रमित हुए लोगों से भी बात की जो आठ महीने बाद भी वायरस के दुष्प्रभावों से पीड़ित हैं। ऐसे ही कुछ लोगों की पीड़ा:  

एक साथ कई परेशानियों का हमला

दिल्ली के हरिनगर में रहने वाले 43 वर्षीय संदीप बुंदेला और उनकी 45 वर्षीय पत्नी रुचि कटियार कोविड-19 की दूसरी लहर को याद करके ही सिहर उठते हैं। उनका सिहरना लाजिमी भी है क्योंकि संदीप और उनकी पत्नी मौत के मुंह से लौटे हैं। वायरस ने उन्हें जो जख्म दिए हैं, वो अब भी हरे हैं। कोविड-19 के भयावह दिनों को याद करते हुए संदीप बताते हैं, “अप्रैल 2021 के आखिरी हफ्ते में मेरे घर के सामने रह रहे ससुर जी सुरेश चंद्र कटियार को कोरोना हुआ। शायद वह घर के ड्राइवर से वायरस की चपेट में आए क्योंकि ड्राइवर ही बाहर सामान लेने जाता था।” जिस समय संदीप के ससुर को कोविड हुआ, उस समय हॉस्पिटल में कहीं बेड उपलब्ध नहीं थे, जहां थे, वहां कोविड पॉजिटिव की आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांग रहे थे। संदीप के ससुर ने घर में ही सैंपल दिया था, लेकिन रिपोर्ट चार दिन बाद भी नहीं आई थी। ससुर की तबीयत बिगड़ने पर परिवार ने घर में ही 5 लीटर के कंसंट्रेटर का इंतजाम किया, लेकिन उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। उधर कोई अस्पताल लक्षणों के आधार पर भर्ती करने को राजी नहीं था। संदीप के परिवार ने हारकर यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में बने कोविड सेंटर में उन्हें भर्ती कराया। लेकिन अगले ही दिन वहां उनकी मौत हो गई। संदीप बताते हैं, “इसके पीछे बदइंतजामी ज्यादा बड़ी वजह रही, क्योंकि ससुर जी डायबिटिक थे। उन्हें भर्ती करने के बाद शुरुआती 12 घंटों में इंसुलिन नहीं दी गई। उन्हें नियमित ऑक्सीजन सप्लाई की जरूरत थी, लेकिन बीच-बीच में ऑक्सीजन हटाते रहे। लिहाजा भर्ती के समय ऑक्सीजन सपोर्ट पर जो सेचुरेशन लेवल 97 था, वह 18 घंटों में 70 और फिर 50 से नीचे गिर गया। आपाधापी में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर लगाया गया, लेकिन आवश्यकता सिलिंडर से प्राणवायु की थी। नतीजतन भर्ती होने के 24 घंटों में ससुरजी ने दम तोड़ दिया।” संदीप और उनकी पत्नी रुचि सुरेश चंद्र की सेवा में लगे थे, लिहाजा उनमें भी कोविड के लक्षण दिखने लगे। पहले रुचि की हालत खराब हुई। लेकिन ससुरजी के इलाज में लापरवाही देख घर में किसी का मन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने का नहीं था तो घर में ही किराए पर आईसीयू सेटअप किया। स्थिति बिगड़ने पर पर 9 मई को रुचि को गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल से लौटकर संदीप भी हालत भी खराब हो गई और उन्हें 10 मई को कीर्ति नगर स्थित कालरा हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें भी 15 मई को गंगाराम में भर्ती किया गया। संदीप के अनुसार, “मेरी हालत इतनी खराब थी कि मैं इमरजेंसी के वॉशरूम में ही बेसुध होकर गिर पड़ा। फिर मुझे बायपैप (वेंटिलेटर से ऑक्सीजन देने का सिस्टम) लगाया गया। तीन दिन बाद मुझे बायपैप से छुट्टी मिली। मई के आखिर में अस्पताल से छुट्टी मिली।”

जिस समय संदीप को अस्पताल से छुट्टी मिली, उस वक्त उनकी पत्नी आईसीयू में ही थीं। इस बीच उनके बेटे, दीदी के बेटे और उनके पति को भी कोरोना हो गया है लेकिन गनीमत रही कि वे सब घर में ही ठीक हो गए। संदीप अस्पताल से घर आकर भी शुरुआती चार-पांच दिन तक कंसन्ट्रेटर पर रहे। धीरे-धीरे ऑक्सीजन की डिमांड कम हुई तो थोड़ा चलने फिरने लगे। संदीप के अनुसार, “मेरे लिए चुनौती थी कि पत्नी के घर आने से पहले मैं इस लायक हो सकूं कि उसका ध्यान रख सकूं।”

कोविड से संक्रमित हुए संदीप को छह महीने से अधिक समय हो गया है लेकिन उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं। डॉक्टरों और दवाओं का सिलसिला अब तक जारी है। संदीप ने डाउन टू अर्थ को बताया, “अब भी मेरी दिल की धड़कन 160-170 के बीच रहती है। इसे नियंत्रित करने के लिए दवाई खानी पड़ रही है। सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूलती है।” कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद उनकी याद्दाश्त काफी कमजोर हो गई है। अब उन्हें लोगों के नाम याद नहीं रहते। सुबह पानी की मोटर चलाने और उसे बंद करने के लिए, ऑफिस के पंच इन और पंच आउट जैसे काम करने के लिए भी उन्हें अलॉर्म लगाना पड़ता है। संदीप को लगता है कि उनकी आंखें भी कमजोर हो गई हैं। इसके चलते उन्हें घर में चार-पांच लाइटें जलाकर काम करना पड़ता है। फेफड़े भी 90 प्रतिशत क्षमता के साथ ही अभी काम कर रहे हैं।

संदीप की पत्नी रुचि की हालत इतनी खराब थी कि दो महीने अस्पताल में भर्ती के बाद जब जुलाई में उन्हें छुट्टी मिली, तब भी उन्हें एंबुलेंस से घर लाना पड़ा। अस्पताल में 30 दिन वह आईसीयू में रहीं। घर आने के करीब महीने भर तक उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहना पड़ा। संदीप की तरह रुचि भी कोविड-19 के दुष्प्रभावों से अब तक जूझ रही हैं। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया, “संक्रमण के वक्त करीब एक महीने तक स्टेरॉइड चली। स्टेरॉयड छोड़ने के बाद जोड़ों में दर्द उठना शुरू हो गया। अब भी मेरे शरीर और उंगलियों में सूजन रहती है।”

इतना ही नहीं, सांस फूलने की दिक्कत बढ़ने से उनके लिए लगातार चलना मुश्किल हो रहा है। संक्रमण के बाद से उनके बाल लगातार झड़ रहे हैं। कोविड के पहले रुचि के सिर में बेहद घने और लंबे बाल थे लेकिन अब 25 प्रतिशत बाल ही बचे हैं। रुचि बताती हैं कि जुलाई में स्टेरॉयड बंद करने के बाद अगस्त से बाल गिरने की सिलसिला शुरू हो गया। उनके फेफड़ों पर संक्रमण का असर इतना ज्यादा था कि वे अब भी 76 फीसदी ही काम कर रहे हैं। फेफड़ों का फाइब्रोसिस ठीक करने के लिए वह परफिनिक्स नामक दवा खा रही हैं। रुचि का ऑक्सीजन स्तर अब भी अक्सर 90 से नीचे चला जाता है। वह मानती हैं, “रिकवरी बेहद धीमी है और डॉक्टर भी बोल रहे हैं कि पूरी तरह ठीक होने में लंबा समय लेगा।” 

संदीप बताते हैं कि महामारी ने शारीरिक क्षति को पहुंचाई ही, साथ ही इसने आर्थिक रूप से भी कमर तोड़ दी है। पत्नी के इलाज में 10 लाख और उनके खुद के इलाज में चार लाख रुपए खर्च हुए। यह खर्च अस्पताल में भर्ती के दौरान का है। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी दोनों के इलाज में हर महीने 25 हजार रुपए का खर्च आ रहा है। इसमें डॉक्टरों की फीस और दवाओं का खर्च आदि शामिल है।    

हार्मोन में असंतुलन   

गुड़गांव के सेक्टर-56 में रहने वाली 32 साल की प्रीति बिष्ट खुशकिस्तम रहीं कि उन्हें संदीप और रुचि की तरह कोविड का गंभीर संक्रमण नहीं हुआ, लेकिन वह भी कोविड के अनचाहे दुष्प्रभावों की शिकार हैं। दिमाग पर जोर डालने के बाद प्रीति बताती हैं, “जिस समय दूसरी लहर जारी थी, तभी एक दिन महसूस हुआ कि स्वाद और सूंघने की क्षमता चली गई है। जांच में कोविड की पुष्टि हुई और डॉक्टर में 14 दिन तक घर में क्वारंटाइन होने की सलाह दी।” संक्रमण के वक्त प्रीति को विशेष परेशानी नहीं हो रही थी, फिर भी खुद को संक्रमण से मुक्त करने और परिवार को बचाने के लिए प्रीति ने अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए 30 दिन तक खुद को एकांतवास में रखा। उन्होंने डॉक्टरों की सलाह पर नियमित दवाइयां खाईं और ऑक्सीमीटर जैसे तमाम उपकरण का इंतजाम कर लिया।

डॉक्टर, दवा और उपकरणों पर उनके करीब 40 हजार रुपए खर्च हुए। 30 दिन बाद जांच रिपोर्ट नेगेटिव आने पर उन्होंने खुद को कोविड से रिकवर मान लिया और जिंदगी को सामान्य बनाने की कोशिशों में जुट गईं। उनकी असली परेशानी तब शुरू हुई जब संक्रमण के करीब ढाई महीने बाद जुलाई में उन्हें कुछ खटका लगा। उन्होंने महसूस किया कि वह सामान्य महसूस नहीं कर रही हैं। शंकाओं का समाधान करने के लिए उन्होंने पूरी बॉडी का चेकअप कराया तो एक नई समस्या से उनका सामना हुआ। जांच में पता चला कि उनका थॉयराइड काफी बढ़ गया है और उनके हार्मोन में असंतुलन आ गया है। प्रीति को कोविड से पहले कभी भी थॉयराइड की समस्या नहीं थी।

प्रीति अपने बढ़े हुए थॉयराइड की वजह कोविड-19 को ही मानती हैं और बताती हैं कि संक्रमण से बाद से उनका वजन कम हो रहा है। संक्रमण से पहले वह 54 किलो की थीं लेकिन अब 52 किलो की रह गई हैं। वह चाहकर भी अपना वजन नहीं बढ़ा पा रही हैं। प्रीति बताती हैं कि उनके बाल भी तेजी से झड़ रहे हैं और तनाव भी काफी बढ़ गया है। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि कोविड-19 संक्रमण के बाद चीजें इतनी बदतर हो जाएंगी।

बार-बार हो रही है एजर्ली

कुछ ऐसी दिक्कत से दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाली शिक्षिका सुशीला भी जूझ रही हैं। वह 10 जून 2020 को वायरस से संक्रमित हुई थीं। उनका संक्रमण भी गंभीर नहीं था। 15 दिन बाद उन्होंने खुद को संक्रमण से मुक्त भी मान लिया, लेकिन बाद के कुछ महीनों में सुशीला को महसूस हुआ कि उनका शरीर पहले जैसा सामान्य नहीं हुआ है।

दरअसल, उनका दिल अचानक इतनी तेजी से धड़कता था कि उन्हें लगता था कि कहीं दिल सीने से बाहर न निकल जाए। उन्हें दिसंबर 2020 तक यह दिक्कत रही। बाद में यह समस्या तो दूर हो गई लेकिन एक नई समस्या ने उन्हें घेर लिया। सुशीला बताती हैं, “संक्रमण के बाद मेरी इम्यूनिटी काफी कमजोर हुई है। मुझे एजर्ली बहुत हो रही है जिससे बार-बार सर्दी जुकाम हो जाता है।” 

स्वभाव में चिड़चिड़ापन

दिल्ली के पांडव नगर में रहने वाले चंदन कुमार भी पहली लहर के दौरान जुलाई 2020 में संक्रमित हुए थे। उन्हें जीवन में कभी सिरदर्द नहीं हुआ लेकिन संक्रमण के बाद से अब तक यह दर्द उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। 35 वर्षीय चंदन बताते हैं कि सिर में सात-आठ दिन में अचानक दर्द होने लगता है। यह दर्द पूरे सिर में न होकर अलग-अलग हिस्सों में होता है।

उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि यह दर्द क्यों हो रहा है। करीब आधा घंटे तक इस दर्द से तड़पते रहते हैं। कोविड के बाद चंदन को अपने बर्ताव में भी बदलाव महसूस होता है। उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया और वह बिना बात किसी पर गुस्से से भड़क उठते हैं। इस दौरान वह अपने आसपास किसी को नहीं देखना चाहते। चंदन को नहीं पता कि उनकी यह समस्याएं कब दूर होंगी।

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