
दिल्ली में मुंह के कैंसर पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि मरीजों में इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों और सरकारी मुफ्त स्क्रीनिंग के बारे में जागरूकता की भारी कमी है।
तंबाकू के सेवन के बावजूद, अधिकांश मरीजों को इसके खतरों की जानकारी नहीं है।
महज 0.9 फीसदी मरीजों को ही सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सरकारी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही मुफ्त स्क्रीनिंग के बारे में जानकारी थी। इतना ही नहीं केवल 7.8 फीसदी मरीजों को ही तंबाकू से जुड़े कानूनों के विषय में जानकारी थी।
निष्कर्ष से पता चला है कि अध्ययन किए गए 54 फीसदी मरीज चबाने वाले तंबाकू का उपयोग कर रहे थे। वहीं 10.3 फीसदी को धूम्रपान की लत थी। दूसरी तरफ 27.6 फीसदी मरीज ऐसे भी थे जो इन दोनों तरीकों से तम्बाकू का इस्तेमाल कर रहे थे।
अध्ययन ने जनस्वास्थ्य अभियानों को तेज करने और तंबाकू के खतरों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की सिफारिश की है।
भारत में मुंह का कैंसर स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है। इसकी रोकथाम के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे भरसक प्रयासों के बावजूद, इसके मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। चिंता की बात है कि दिल्ली जैसे महानगर में भी मरीज न केवल इस बीमारी के शुरूआती लक्षणों से अनजान हैं बल्कि उनमें सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही मुफ्त स्क्रीनिंग के विषय में भी बेहद कम जानकारी है।
हालांकि देखा जाए तो दिल्ली में गुटखा, पान मसाला, फ्लेवर्ड या सुगंधित तंबाकू, खैनी सहित अन्य तंबाकू उत्पादों के निर्माण, भंडारण, वितरण और बिक्री पर लगभग एक दशक से प्रतिबंध है। इसके बावजूद आज भी लोग बड़े पैमाने पर लोग इसका सेवन कर रहे हैं, जिसकी वजह से कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है।
इस कड़ी में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा एक नया अध्ययन किया है। इस अध्ययन का उद्देश्य मुंह के कैंसर के मरीजों में तंबाकू के हानिकारक प्रभावों और तंबाकू नियंत्रण से जुड़े उपायों के बारे में जागरूकता का मूल्यांकन करना था।
जागरूकता में बड़ी कमी
दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में अगस्त 2023 से जून 2024 के बीच 116 मरीजों पर किए इस अध्ययन में सामने आया है कि इनमें से अधिकांश मरीज बीमारी के शुरुआती लक्षणों से पूरी तरह अनजान थे। साथ ही यह मरीज खुद जांच करने के तरीकों से भी अनजान थे।
वहीं महज 0.9 फीसदी मरीजों को ही सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सरकारी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही मुफ्त स्क्रीनिंग के बारे में जानकारी थी। इतना ही नहीं केवल 7.8 फीसदी मरीजों को ही तंबाकू से जुड़े कानूनों के विषय में जानकारी थी। हालांकि अधिकांश प्रतिभागियों (83.6 फीसदी) ने तंबाकू उत्पादों पर लिखी चेतावनी पर गौर किया था, लेकिन महज 38 फीसदी ही इन चेतावनियों से डरे थे।
गौरतलब है कि यह सभी मरीज मुंह के कैंसर से पीड़ित थे। अध्ययन में शामिल मरीजों की औसत आयु करीब 48 वर्ष थी। उनमें से 87.9 फीसदी पुरुष थे और करीब 98 फीसदी मरीज निचले या निम्न-मध्यम आर्थिक वर्ग से सम्बन्ध रखते थे। करीब 34 फीसदी मरीज अशिक्षित थे। इतना ही नहीं इनमें से करीब 89.7 फीसदी बेरोजगार थे, जबकि महज 38 फीसदी ही इंटरनेट का उपयोग कर रहे थे।
तंबाकू का इस्तेमाल बेहद आम
अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं, उनसे पता चला है कि अध्ययन किए गए 54 फीसदी मरीज चबाने वाले तंबाकू का उपयोग कर रहे थे। वहीं 10.3 फीसदी को धूम्रपान की लत थी। दूसरी तरफ 27.6 फीसदी मरीज ऐसे भी थे जो इन दोनों तरीकों से तम्बाकू का इस्तेमाल कर रहे थे।
स्टडी में यह भी सामने आया है कि इन मरीजों में से ज्यादातर लोग रोजाना तंबाकू का सेवन करते थे। हालांकि, 52.6 फीसदी मरीजों ने माना कि मुंह के कैंसर का पता चलने के बाद उन्होंने तंबाकू का सेवन छोड़ दिया था।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि 66.4 फीसदी मरीजों को तंबाकू और मुंह के कैंसर के बीच संबंध की जानकारी थी, जो उन्हें ज्यादातर तंबाकू के पैकेट पर लिखी चेतावनियों (48.1 फीसदी) और विज्ञापनों के माध्यम (36.3 फीसदी) से मिली थी। वहीं 14.3 फीसदी को इस बारे में दोस्तों से जानकारी मिली थी।
महज एक मरीज ने सर्वे में बताया कि उसे इस बारे में जानकारी स्वास्थ्यकर्मी से मिली थी। हालांकि, किसी भी मरीज को भी बीमारी के शुरुआती लक्षणों या खुद जांच के तरीकों की जानकारी नहीं थी।
लोगों में जागरूकता बेहद जरुरी
जर्नल ई-कैंसर मेडिकल साइंस में प्रकाशित स्टडी रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि पढ़े-लिखे प्रतिभागियों, जिन्होंने तंबाकू उत्पादों पर लिखी पर ध्यान दिया था और जिन्हें इन चेतावनियों से डर महसूस हुआ, उनमें तंबाकू से कैंसर होने की जागरूकता काफी अधिक थी।
रिपोर्ट में इस बात को भी उजागर किया है कि 60 वर्ष से कम उम्र और पुरुष प्रतिभागियों में तंबाकू से कैंसर होने की जागरूकता थोड़ी अधिक थी, हालांकि यह अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं था। धूम्रपान करने वालों की तुलना में तंबाकू चबाने वालों में जागरूकता अधिक थी। इसी तरह पढ़े-लिखे प्रतिभागी अशिक्षितों की तुलना में तंबाकू के कैंसरकारक प्रभाव के बारे में अधिक जागरूक थे।
अध्ययन से यह तो स्पष्ट है कि कैंसर के इन मरीजों में तंबाकू से जुड़े जोखिम और बचाव संबंधी उपायों के बारे में जागरूकता की गंभीर कमी है। इसके साथ ही तंबाकू के बेहद ज्यादा उपयोग के बावजूद, मरीजों में बीमारी की शुरुआती पहचान, सरकारी रोकथाम कार्यक्रम और खुद जांच करने की जानकारी सीमित है।
इसे ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने कई सुझाव दिए हैं, जिनमें जनस्वास्थ्य अभियानों को तेज करना शामिल है, ताकि लोगों को तंबाकू और मुंह के कैंसर के जोखिम के बारे में जागरूक किया जा सके। साथ ही मुंह के कैंसर की जांच को स्वास्थ्य से जुड़े नियमित चेकअप, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और आउटरीच कैंप में शामिल करना।
इसके साथ ही अग्रिम पंक्ति पर जो स्वास्थ्य कर्मचारी और चिकित्सक हैं, उनके के प्रशिक्षण को मजबूत करना ताकि वे मरीजों को सही जानकारी दे सकें और मौखिक जांच कर सकें। अध्ययन में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि मुंह के कैंसर की रोकथाम के लिए शुरुआती पहचान के प्रति जागरूकता बढ़ाना और तंबाकू के खतरों के बारे में लोगों को शिक्षित करना बेहद आवश्यक है।
एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि भारत में गुटखा, पान मसाला, जर्दा या खैनी जैसे तंबाकू उत्पादों से जुड़ी नीतियों पर ध्यान न दिया गया तो वो स्वास्थ्य के लिहाज से महंगा पड़ सकता है।
अनुमान है कि यदि इनसे जुड़ी नीतियों में बदलाव न किया गया तो देश में इसका सेवन करने वालों के जीवन काल में स्वास्थ्य देखभाल पर करीब 158,705 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसका सबसे ज्यादा बोझ मुंह के कैंसर के इलाज पर होने वाले खर्च के रूप में पड़ेगा।