आज है अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस: दुनिया में 1.3 अरब लोग दिव्यांगता के साथ जी रहे हैं

दिव्यांगजनों के अधिकार, स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता और समान अवसरों को बढ़ावा देकर समावेशी तथा प्रगतिशील समाज की मजबूत नींव बनाना।
दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग छठा हिस्सा दिव्यांगता से जूझ रहा है
दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग छठा हिस्सा दिव्यांगता से जूझ रहा है फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • तीन दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस मनाकर अधिकारों, सम्मान और समावेश पर वैश्विक जागरूकता बढ़ाई जाती है।

  • 2025 की थीम दिव्यांग-समावेशी समाज बनाकर सभी के लिए सामाजिक प्रगति सुनिश्चित करने पर जोर देती है।

  • डब्ल्यूएचओ के अनुसार 1.3 अरब दिव्यांगजन अभी भी सुलभ और वहनीय स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं।

  • समावेशी स्वास्थ्य वित्तपोषण के लिए नीतियों में दिव्यांगजनों की भागीदारी और उनकी विशिष्ट जरूरतों को शामिल करना आवश्यक है।

  • सुलभ ढांचा, सामाजिक सुरक्षा और आंकड़ों पर आधारित निर्णय समावेशी और मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों की नींव रखते हैं।

हर साल तीन दिसंबर को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस (इंटरनेशनल डे ऑफ पर्सन्स विथ डिसेबिलिटी) मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने साल 1992 में इस दिवस की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य दिव्यांग लोगों के अधिकारों, सम्मान और उनकी रोजमर्रा की चुनौतियों के प्रति दुनिया भर में जागरूकता बढ़ाना है।

आज दुनिया में लगभग 1.3 अरब लोग किसी न किसी रूप में दिव्यांगता के साथ जी रहे हैं, यह संख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग छठा हिस्सा है। इतने बड़े समुदाय की जरूरतों और अधिकारों को समझना और सम्मान देना किसी भी समाज की प्रगति के लिए आवश्यक है।

2025 की थीम: समावेशी समाज की दिशा में बढ़ते कदम

साल 2025 के लिए तय की गई थीम, “सामाजिक प्रगति के लिए दिव्यांग-समावेशी समाजों को प्रोत्साहित करना” है, हम सबको यह याद दिलाती है कि समाज की वास्तविक प्रगति तभी संभव है जब हर व्यक्ति को समान अवसर मिले।

दिव्यांगों को अब केवल सहानुभूति के नजरिए से नहीं, बल्कि सहयोग और सहभागिता के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। यदि हम सच में समावेशी वातावरण बनाते हैं, तो न केवल दिव्यांगजन बल्कि पूरा समाज इससे सशक्त होता है।

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दृष्टिकोण में बदलाव और ऐतिहासिक कदम

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जब दिव्यांगता को पुनर्परिभाषित करने की पहल की, तब दुनिया को एक नया विचार मिला, दिव्यांगजन कोई बोझ नहीं, बल्कि समाज के सक्रिय, रचनात्मक और महत्वपूर्ण सदस्य हैं।

शुरुआती अभियानों में ऐसे प्रेरणादायक लोगों की कहानियां सामने आई जिन्होंने कठिनाइयों के बावजूद बड़े मुकाम हासिल किए। फिर चाहे वह पैरालंपिक खिलाड़ियों की जीत हो या ऐसे आविष्कारक जिनकी तकनीक आज सभी के लिए उपयोगी है, इन कहानियों ने दुनिया को समावेशिता की शक्ति दिखाई।

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समय के साथ यह आंदोलन और मजबूत हुआ और दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (सीआरपीडी) बनाया गया, जिसे 180 से अधिक देशों ने अपनाया है। इस समझौते ने देशों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया कि वे दिव्यांगजनों के लिए कानूनों, नीतियों और संरचनाओं को अधिक सुलभ बनाएं। परिणामस्वरूप कई देशों में सार्वजनिक भवनों में रैंप, ब्रेल साइनेज, सुलभ परिवहन और रोजगार में समान अवसर जैसी व्यवस्थाएं देखने को मिलीं।

स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच: अभी भी एक बड़ी चुनौती

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया में 1.3 अरब लोग दिव्यांगता के साथ रहते हैं, इसलिए “सभी के लिए स्वास्थ्य” का लक्ष्य तभी हासिल होगा जब उनकी जरूरतों को गंभीरता से शामिल किया जाए। दुर्भाग्य से आज भी कई दिव्यांग लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इसके कई कारण हैं - महंगे उपचार, बीमा कवरेज की कमी, आवश्यक उपकरणों की अनुपलब्धता और स्वास्थ्य सुविधाओं का असुलभ होना।

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इन चुनौतियों के कारण कई परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं और कई बार गरीबी और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इसलिए स्वास्थ्य वित्तपोषण में दिव्यांगजनों की जरूरतों को शामिल करना किसी भी राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।

समावेशी स्वास्थ्य वित्तपोषण क्यों जरूरी है?

जब किसी देश की स्वास्थ्य नीति सुलभता, वहनीयता और समानता पर आधारित होती है, तो न सिर्फ दिव्यांगजन बल्कि पूरा समाज लाभान्वित होता है। यदि दिव्यांगजनों के लिए सुविधाएं बेहतर होंगी, तो स्वास्थ्य प्रणाली और भी मजबूत और प्रभावी बनती है।

समावेशी स्वास्थ्य वित्तपोषण का मतलब है कि बजट और योजनाओं में दिव्यांगजनों की विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखा जाए - जैसे कि सहायक उपकरण, पुनर्वास सेवाएं, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और सुलभ अस्पताल भवन।

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सरकारों और नीति-निर्माताओं को क्या कदम उठाने चाहिए?

दिव्यांगजनों की जरूरतों को स्वास्थ्य वित्तपोषण में सही तरीके से शामिल करने के लिए निम्न कदम जरूरी हैं:

  • प्रगतिशील सार्वभौमिकता को स्वास्थ्य वित्तपोषण का आधार बनाना। इसका मतलब है कि सबसे कमजोर और जरूरतमंद समुदायों को प्राथमिकता दी जाए।

  • दिव्यांग व्यक्तियों से परामर्श कर नीतियां बनाना। उनके अनुभव और सुझाव ही वास्तविक जरूरतों को समझने में मदद करते हैं।

  • दिव्यांगजनों की विशिष्ट स्वास्थ्य स्थितियों को उपचार पैकेज में शामिल करना।

  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को दिव्यांगजनों की विविध जरूरतों के अनुसार मजबूत करना।

  • स्वास्थ्य केंद्रों और सेवाओं को सुलभ बनाने की लागत को बजट में शामिल करना।

  • दिव्यांगता-आधारित आंकड़ों को संग्रह करना और उसी आधार पर संसाधनों का वितरण करना।

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समावेशिता से बनता है मजबूत समाज

अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस हमें हर साल याद दिलाता है कि सच्चा विकास तभी संभव है जब समाज में किसी को भी पीछे न छोड़ा जाए। समावेशिता केवल नीतियों का विषय नहीं है, बल्कि संवेदनशीलता, सम्मान और समान अवसर का वादा है।

यदि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहां हर व्यक्ति योगदान दे सके और गरिमा के साथ जीवन जी सके, तो हम वास्तव में सामाजिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

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