ग्रामीण भारत में 45 फीसदी लोग चिंताओं से जूझ रहे हैं, 73 फीसदी बुजुर्गों को देखभाल की है जरूरत

रिपोर्ट में पारिवारिक देखभाल करने वालों पर भारी निर्भरता का पता चलता है, जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं हैं, जिनका देखभाल करने वालों में 72.1 फीसदी हिस्सा है।
ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं (एंग्जायटी) भी बढ़ रही हैं, जहां सभी लिंगों के 45 फीसदी उत्तरदाताओं ने चिंता संबंधी समस्याओं की बात कही गई है
ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं (एंग्जायटी) भी बढ़ रही हैं, जहां सभी लिंगों के 45 फीसदी उत्तरदाताओं ने चिंता संबंधी समस्याओं की बात कही गई हैफोटो साभार: आईस्टॉक
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दिल्ली की ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (टीआरआई) ने स्टेट ऑफ हेल्थकेयर इन रूरल इंडिया- 2024 रिपोर्ट का चौथा संस्करण जारी किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बुजुर्ग सदस्यों वाले ग्रामीण भारतीय परिवारों में से 73 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें निरंतर देखभाल की जरूरत पड़ती है, जिसकी अधिकतर जिम्मेवारी महिलाओं पर होती है। भारी मांग के बावजूद केवल तीन फीसदी परिवार ही पैसे देकर देखभाल सेवाओं का विकल्प चुन पाते हैं, जो स्वास्थ्य के देखभाल में एक बड़े अंतर को सामने लाता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 21 राज्यों के 5,389 से अधिक परिवारों को शामिल करने वाले इस विस्तृत सर्वेक्षण से अनौपचारिक तौर पर पारिवारिक देखभाल करने वालों पर भारी निर्भरता का पता चलता है, जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं हैं, जिनका देखभाल करने वालों में 72.1 फीसदी हिस्सा है।

रिपोर्ट में पारिस्थितिकी, सामाजिक-महामारी विज्ञान के नजरिए से सामने लाए गए इस मॉडल का उद्देश्य केवल तकनीकी समाधानों पर निर्भर रहने के बजाय स्वास्थ्य को व्यापक रूप से देखा गया है। स्थानीय स्वास्थ्य समितियों, स्वयं सहायता समूहों और समुदाय के सदस्यों के बीच संबंधों को मजबूत करना पड़ोस की देखभाल को बढ़ाने के लिए आवश्यक है।

रिपोर्ट में " नेबहुड ऑफ केयर" की अवधारणा को शामिल किया गया है, जो स्वास्थ्य सेवा के लिए एक परिवर्तनकारी, समुदाय-केंद्रित नजरिए की बात करता है जो इन चुनौतियों का समाधान करता है। यह मॉडल पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणालियों से हटकर एक ऐसी प्रणाली की ओर बदलाव का सुझाव देता है जो सामाजिक और पारिस्थितिक कारणों को शामिल करती है, स्वास्थ्य पेशेवरों, सामुदायिक संगठनों और निवासियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करती है।

ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं (एंग्जायटी) भी बढ़ रही हैं, जहां सभी लिंगों के 45 फीसदी उत्तरदाताओं ने चिंता संबंधी समस्याओं की बात कही गई है, जिससे व्यापक सहायता प्रणालियों की आवश्यकता का पता चलता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य सिर्फ सुविधाओं से कहीं अधिक है, यह लोगों और परिवारों को उनके रोजमर्रा के जीवन में सहायता करने के बारे में है। चिंता के उच्च स्तर और बुजुर्गों की देखभाल की बढ़ती जरूरतों के साथ, हमें देखभाल करने वालों के लिए प्रशिक्षण और सहायता को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो मुख्य रूप से महिलाएं हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्षों में देखभाल करने वालों के समर्थन को मजबूत करने की बात कही गई है, स्वास्थ्य सेवाओं में इन्हें शामिल करने के लिए नीतिगत बदलावों की तत्काल जरूरत पर जोर दिया गया हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ग्रामीण लोगों की उभरती सभी तरह की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

जीवन बीमा कवरेज नहीं

रिपोर्ट के अन्य निष्कर्षों से पता चला कि 60 फीसदी से अधिक उत्तरदाताओं के पास कोई जीवन बीमा कवरेज नहीं था, न तो खुद के लिए और न ही उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य के लिए। इस बीच, सीमित जांच संबंधी सुविधाएं और सस्ती दवाओं तक पहुंच को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं, केवल 12.2 फीसदी उत्तरदाताओं के पास सब्सिडी वाली दवाओं तक पहुंच थी और 21 फीसदी के नजदीक में मेडिकल स्टोर तक नहीं था।

लगभग 50 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना था कि क्योंकि वे अपने खेतों में काम करते हैं और शारीरिक श्रम करते हैं, इसलिए वे फिट रहते हैं। इसलिए उन्हें अतिरिक्त व्यायाम की आवश्यकता नहीं है। केवल 10 फीसदी ने योग या अन्य फिटनेस गतिविधियां करने की बात कही।

रिपोर्ट के अनुसार, पांच में से एक उत्तरदाता ने बताया कि उनके गांवों में जल निकासी की कोई भी व्यवस्था नहीं है, केवल 23 फीसदी के पास कवर किया हुआ जल निकासी नेटवर्क था। 43 फीसदी घरों में वैज्ञानिक तरीके से कचरे के निपटान प्रणाली का अभाव था और उन्होंने कचरे को कहीं भी फेंक देने की बात कही।

रिपोर्ट में स्थानीय नेताओं, स्वयं सहायता समूहों और सेवा प्रदाताओं के प्रशिक्षण और कौशल को बढ़ाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है ताकि वे अपने गांवों में लोगों और परिवारों को बेहतर ढंग से सहायता कर सकें।

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