भारतीय शोधकर्ताओं ने खोजा पार्किंसंस के उपचार के लिए नया नैनो-फॉर्मूलेशन

शोधकर्ताओं के द्वारा तैयार किया गया फॉर्मूलेशन 17 बीटा-एस्ट्राडियोल नामक हार्मोन के निरंतर स्राव में मदद करता है जो पार्किंसंस की बीमारी के उपचार में अहम भूमिका निभा सकता है।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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भारतीय शोधकर्ताओं ने पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) से निपटने के लिए एक नैनो फॉर्मूलेशन तैयार किया है। यह फॉर्मूलेशन 17 बीटा-एस्ट्राडियोल नामक हार्मोन के निरंतर स्राव में मदद कर सकता है जो पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) के उपचार में अहम भूमिका निभा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया भर में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) के कारण विकलांगता और मृत्यु दर में तेजी से वृद्धि हो रही है।

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डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है।

लेवोडोपा या कार्बिडोपा, लक्षणों, कामकाज और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए सबसे प्रभावी दवा हर जगह सुलभ, उपलब्ध या सस्ती नहीं है, खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में। पुनर्वास पीडी से पीड़ित लोगों के कामकाज और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकता है।

पार्किंसंस रोग, न्यूरॉन कोशिकाओं में लगातार आने वाली कमी से पहचाना जाता है जिससे हमारे शरीर में डोपामाइन (न्यूरोट्रांसमीटर) के स्तर में काफी कमी आ जाती है।

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डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है।

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है। 2019 में दुनिया भर के अनुमानों से पता चला कि पीडी से पीड़ित 85 लाख से अधिक लोग हैं।

वर्तमान अनुमानों से पता चलता है कि, 2019 में, पीडी के कारण 58 लाख विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाई) हुए, जिसमें साल 2000 से 81 फीसदी की वृद्धि है और 329 000 मौतें हुईं, जो 2000 से 100 फीसदी से अधिक की वृद्धि है।

शोध पत्र में भारतीय शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) जैसी कई न्यूरोडीजेनेरेटिव और मानसिक विकृतियां मनुष्य के मस्तिष्क में 17 बीटा-एस्ट्राडियोल (ई2) के असंतुलन से उत्पन्न होती हैं। हालांकि पीडी थेरेपी के लिए ई2 के उपयोग से पड़ने वाले बुरे प्रभाव और आणविक तंत्र की कम समझ इसकी न्यूरोथेरेप्यूटिक क्षमता में बाधा उत्पन्न करती है।

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डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, मोहाली के नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों ने 17 बीटा-एस्ट्राडियोल-लोडेड चिटोसन नैनोकणों के साथ डोपामाइन रिसेप्टर डी3 (डीआरडी3) का उपयोग किया, जिसके कारण मस्तिष्क में 17बीटा-एस्ट्राडियोल (ई2) का निरंतर स्राव हुआ।

नैनो फॉर्मूलेशन ने कैलपैन के माइटोकॉन्ड्रियल ट्रांसलोकेशन में रुकावट डाली, जिससे न्यूरॉन्स को रोटेनोन के जरिए माइटोकॉन्ड्रियल नुकसान से बचाया जा सका। इसके अलावा नैनो डिलीवरी प्रणाली ने रोडंट मॉडल में व्यवहार संबंधी कमियों को कम किया।

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डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 सालों में पार्किंसंस की बीमारी (पीडी) का प्रचलन दोगुना हो गया है।

इसके अलावा अध्ययन में पहली बार इस बात का पता चला है कि बीएमआई 1, पीआरसी 1 कॉम्प्लेक्स का एक सदस्य जो माइटोकॉन्ड्रियल होमियोस्टेसिस को नियंत्रित करता है, कैलपैन की एक परत की तरह है। नैनो-फॉर्मूलेशन ने कैलपैन के द्वारा इसके नष्ट होने को रोककर बीएमआई 1 को फिर से स्थापित किया।

कार्बोहाइड्रेट पॉलीमर अध्ययन ने पार्किंसंस रोग (पीडी) रोगियों में ऑक्सीडेटिव तनाव को नियमित करने में हार्मोन (ई 2) की भूमिका को समझने में मदद की है। लंबे समय में सुरक्षा और बेहतर तरीके से लगातार खोज करने के साथ, यह पार्किंसंस रोगियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक सुरक्षित दवा हो सकती है।

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