वैज्ञानिकों ने पार्किंसंस रोग के बेहतर प्रबंधन के लिए नया स्मार्ट सेंसर किया विकसित

स्मार्ट सेंसर पार्किंसंस की बीमारी से संबंधित डोपामाइन की कमी को पूरा करने में मदद करता है। जब तक शरीर को एल-डोपा की सही मात्रा दी जाती है, तब तक यह रोग नियंत्रण में रहता है।
वैज्ञानिकों ने एक किफायती, उपयोग करने में आसान, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन सेंसर प्रणाली विकसित की है जो पार्किंसंस बीमारी की रोकथाम में मदद कर सकती है।
वैज्ञानिकों ने एक किफायती, उपयोग करने में आसान, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन सेंसर प्रणाली विकसित की है जो पार्किंसंस बीमारी की रोकथाम में मदद कर सकती है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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भारतीय वैज्ञानिकों ने एक किफायती, उपयोग करने में आसान, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन सेंसर प्रणाली विकसित की है जो पार्किंसंस नामक बीमारी की रोकथाम में मदद कर सकती है। शोध में कहा गया है कि यह सेंसर शरीर में एल-डोपा की मात्रा का सटीक पता लगाने में मदद करेगा, जिससे इस रोग की प्रभावी तरीके से रोकथाम के लिए जरूरी सटीक खुराक की मात्रा तय करने में मदद मिलेगी।

पार्किंसंस रोग, न्यूरॉन कोशिकाओं में लगातार आने वाली कमी से पहचाना जाता है जिससे हमारे शरीर में डोपामाइन (न्यूरोट्रांसमीटर) के स्तर में काफी कमी आ जाती है। एल-डोपा एक केमिकल है जो हमारे शरीर में डोपामाइन में बदल जाता है, इसलिए यह पार्किंसंस की दवाओं के रूप में काम करता है।

यह डोपामाइन की कमी को पूरा करने में मदद करता है। जब तक शरीर को एल-डोपा की सही मात्रा दी जाती है, तब तक यह रोग नियंत्रण में रहता है। हालांकि पार्किंसंस की लगातार बढ़ने की प्रकृति के कारण, जैसे-जैसे रोगी की उम्र बढ़ती है, न्यूरॉन्स की निरंतर कमी को पूरा करने के लिए अधिक एल-डोपा की जरूरत पड़ती है।

हालांकि एल-डोपा की अधिक मात्रा से रोगी में डिस्किनेशिया, गैस्ट्राइटिस, साइकोसिस, पैरानोया ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन जैसे खतरनाक दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जबकि एल-डोपा की बहुत कम मात्रा से पार्किंसंस के लक्षण वापस आ सकते हैं।

इस रोग के उपचार में एल-डोपा के अधिकतम स्तर की अहम भूमिका को देखते हुए, जैविक तरल पदार्थों में एल-डोपा की निगरानी के लिए एक सरल, किफायती, संवेदनशील और तेज विधि विकसित करने की जरूरत है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) ने जैविक नमूनों में एल-डोपा के कम स्तर का तुरंत पता लगाने के लिए फ्लोरोसेंस टर्न-ऑन मैकेनिज्म का उपयोग करते हुए एक किफायती, उपयोग करने में आसान, पोर्टेबल स्मार्टफोन-आधारित ऑप्टिकल सेंसर प्रणाली विकसित की है।

सेंसर को कम ग्रेफीन ऑक्साइड नैनोकणों की सतह पर बॉम्बेक्स मोरी सिल्क कोकून से हासिल किए गए सिल्क-फाइब्रोइन प्रोटीन नैनो-लेयर की कोटिंग करके बनाया गया है। यह प्रणाली फोटोलुमिनेसेंस के गुणों के साथ कोर-शेल ग्रेफीन-आधारित क्वांटम डॉट्स का निर्माण करती है, जो इसे पांच से 35 माइक्रोमीटर की सीमा के अंदर रक्त प्लाज्मा, पसीने और मूत्र जैसे वास्तविक नमूनों में एल-डोपा का पता लगाने के लिए एक प्रभावी फ्लोरोसेंट टर्न-ऑन सेंसर बनाती है। पहचान करने की सीमा का निर्धारण क्रमशः 95.14 एनएम, 93.81 एनएम और 104.04 एनएम किया गया है।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने एक स्मार्टफोन-आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तैयार किया है जिसमें एक इलेक्ट्रिक सर्किट 5वी स्मार्टफोन चार्जर द्वारा संचालित 365 एनएम एलईडी से जुड़ा है। पूरे सेटअप को बाहरी प्रकाश से अलग करने के लिए एक अंधेरे कमरे में रखा जाता है। यह सरल, किफायती और तेजी से स्क्रीनिंग करने वाला उपकरण दूरदराज के इलाकों में मौके पर ही विश्लेषक का पता लगाने के लिए अहम है।

रोगी के जैविक नमूनों में यह पता चलने पर कि क्या एल-डोपा का स्तर कम है, यह सेंसर रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक खुराक को समायोजित करने में मदद कर सकता है।

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