

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने एनजीटी को बताया कि कारों में इस्तेमाल होने वाले फ्लेम-रिटार्डेंट रसायनों के स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन तेजी से चल रहा है।
आईसीएमआर ने जैविक नमूनों के विश्लेषण का काम शुरू कर दिया है। एनजीटी ने आईसीएमआर को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई से पहले अध्ययन की प्रगति पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करें।
एनजीटी ने इस मामले में एनडीटीवी पर प्रकाशित एक खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है। इस खबर में अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि जहरीले फ्लेम रिटार्डेंट रसायनों का स्तर गर्मियों में सबसे अधिक होता है, क्योंकि गर्मी से कार के सामान से ये केमिकल अधिक मात्रा में बाहर निकलते हैं।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने 24 दिसंबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को बताया है कि ड्राइवरों और यात्रियों की सेहत पर आग रोधी रसायनों (फ्लेम-रिटार्डेंट केमिकल्स) के असर को समझने के लिए अध्ययन तेजी से आगे बढ़ रहा है।
आईसीएमआर ने ट्रिब्यूनल को जानकारी दी है कि इस अध्ययन के तहत जैविक नमूनों को एकत्र करने और उनके विश्लेषण का काम शुरू हो चुका है। अध्ययन का मकसद यह समझना है कि वाहनों में इस्तेमाल होने वाले फ्लेम-रिटार्डेंट रसायन ड्राइवरों की सेहत के लिए कितना खतरा पैदा कर रहे हैं। वहीं एनजीटी ने आईसीएमआर को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अध्ययन की प्रगति पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करे।
इस मामले में अगली सुनवाई 28 अप्रैल 2026 को होगी।
गौरतलब है कि 22 दिसंबर 2025 को दाखिल हलफनामे में आईसीएमआर ने बताया था कि यह काम 24 सितंबर 2025 से शुरू हुआ था। अब तक आवश्यक स्टाफ की भर्ती पूरी हो चुकी है और अध्ययन के लिए जरूरी रसायन व अन्य सामग्री भी जुटा ली गई है।
आईसीएमआर के मुताबिक, प्रस्तावित अध्ययन को पूरा करने के लिए 18 महीने की समय-सीमा तय की गई है। इसके लिए स्टाफ की भर्ती हो चुकी है, जरूरी रसायनों की खरीद की जा चुकी है और प्रतिभागियों को शामिल करने के लिए फील्ड विजिट भी किए गए हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अहमदाबाद और गांधीनगर की दो वाहन एजेंसियों का दौरा किया गया है, जिन्हें गर्म और शुष्क क्षेत्र (हॉट और एरिड ज़ोन) के रूप में चिन्हित किया गया है। इसके अलावा, जरूरी एलसी-एमएस उपकरण की खरीद की प्रक्रिया भी जारी है।
गौरतलब है कि एनजीटी ने इस मामले में एनडीटीवी पर प्रकाशित एक खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है। इस खबर में अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि जहरीले फ्लेम रिटार्डेंट रसायनों का स्तर गर्मियों में सबसे अधिक होता है, क्योंकि गर्मी से कार के सामान से ये केमिकल अधिक मात्रा में बाहर निकलते हैं।
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होने की उम्मीद है कि वाहनों में इस्तेमाल होने वाले रसायन ड्राइवरों की सेहत को किस हद तक प्रभावित कर रहे हैं, और आगे किन कदमों की जरूरत होगी।
मौर्य एन्क्लेव में अवैध बोरवेल पर एनजीटी सख्त, भूजल प्राधिकरण से जवाब तलब
दिल्ली के पीतमपुरा स्थित मौर्य एन्क्लेव में अवैध बोरवेल के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है। 24 दिसंबर 2025 को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) ने अदालत से इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगा, जिसे एनजीटी ने स्वीकार कर लिया है।
एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया है कि वे मौके पर जाकर जमीन स्थिति की जांच करें और की गई कार्रवाई तथा मौजूदा हालात पर एक कार्रवाई रिपोर्ट अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले दाखिल करें।
इस मामले में अगली सुनवाई 18 मार्च 2026 को होगी। एनजीटी ने स्पष्ट किया कि संबंधित एजेंसियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की निगरानी सीजीडब्ल्यूए करेगा।
याचिका में कहा गया है कि मौर्य एन्क्लेव में कई बोरवेल बिना किसी वैध अनुमति के लगाए गए हैं। शुरुआत में इन बोरवेल से भूजल का इस्तेमाल निर्माण कार्यों के लिए किया गया, लेकिन अब इसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि इस संबंध में मौर्य एन्क्लेव थाने के एक हेड कांस्टेबल ने प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार कर उप-जिलाधिकारी (एसडीएम) को सूचना दी थी, लेकिन इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि इलाके में ऐसे अवैध बोरवेल की संख्या काफी अधिक है, जो भूजल संकट को और गहरा कर रहे हैं।