सावधान! कोलन और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक

स्थिति यह है कि कभी जिस प्लास्टिक को वरदान समझा जाता था, आज वो अभिशाप में बदल चुका है
वैज्ञानिकों को हिमालय के ऊंचे पहाड़ों से लेकर समुद्र की अथाह गहराइयों में इसकी मौजूदगी के सबूत मिल चुके हैं; फोटो: आईस्टॉक
वैज्ञानिकों को हिमालय के ऊंचे पहाड़ों से लेकर समुद्र की अथाह गहराइयों में इसकी मौजूदगी के सबूत मिल चुके हैं; फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं कि हवा में मौजूद प्लास्टिक के महीन कण यानी माइक्रो प्लास्टिक, स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर सकते हैं। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने इन पर किए एक नए अध्ययन में खुलासा किया है कि हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स कोलन और फेफड़ों के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की वजह बन सकते हैं।

करीब 3,000 शोधों की समीक्षा से पता चला है कि ये महीन कण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े हैं। इनमें महिलाओं और पुरुषों में बांझपन, कोलन कैंसर और फेफड़ों की क्षमता में गिरावट जैसी समस्याएं शामिल है।

इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के मुताबिक लम्बे समय तक इन कणों का संपर्क फेफड़ों में सूजन पैदा कर सकते है, जिससे फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

गौरतलब है कि प्लास्टिक के बेहद महीन कणों को माइक्रोप्लास्टिक्स के रूप में जाना जाता है। यह कण आकार में पांच मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं। मतलब कि यह चावल के दाने से भी छोटे हैं। मौजूदा समय में प्लास्टिक के यह महीन कण दुनिया में इस कदर हावी हो चुके हैं कि कहीं भी इनकी मौजूदगी हैरान नहीं करती।

गौरतलब है कि वैज्ञानिकों को हिमालय के ऊंचे पहाड़ों से लेकर समुद्र की अथाह गहराइयों में इसकी मौजूदगी के सबूत मिल चुके हैं। यहां तक की इन कणों से इंसानी शरीर भी बचा नहीं है। यह महीन कण इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल और अन्य अंगों के साथ-साथ दिमाग में भी अपनी पैठ बना चुके हैं।

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छोटे कण, बड़ी समस्या

वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्लास्टिक के यह महीन कण मस्तिष्क के साथ-साथ इंसानों के महत्वपूर्ण अंगों में जमा हो रहे हैं। हाल यह है कि कभी जिस प्लास्टिक को वरदान समझा जाता था, आज वो अभिशाप में बदल चुका है।

शोध के मुताबिक हर साल, दुनिया भर की कंपनियां करीब 46 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक बना रही हैं। वहीं आशंका है कि 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 110 करोड़ मीट्रिक तक पहुंच जाएगा।

हवा में मौजूद प्लास्टिक का एक बड़ा स्रोत गाड़ियां हैं, जिनके चलने से टायरों और सड़क के बीच घर्षण से प्लास्टिक के महीन कण पैदा होते हैं। इतना ही नहीं कई तरह के कचरे से भी इस संख्या में इजाफा हो रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को के शोधकर्ताओं को संदेह है कि यह कण सांस के साथ-साथ अन्य बीमारियों की भी वजह बन सकते हैं।

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यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को और नेचुरल रिसोर्सेज डिफेन्स कॉउन्सिल से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता ट्रेसी जे वुड्रफ ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, "ये माइक्रोप्लास्टिक वायु प्रदूषण का ही एक रूप हैं और हम जानते हैं कि इस प्रकार का प्रदूषण हानिकारक है।"

शोधकर्ताओं के मुताबिक हवा में मौजूद इस प्लास्टिक का एक प्रमुख स्रोत वाहन हैं। इनके चलने से टायरों और ब्रेक घिस जाते हैं, जिनसे निकले प्लास्टिक के टुकड़े हवा में फैल जाते हैं।

गौरतलब है कि इस समीक्षा में शामिल ज्यादातर अध्ययन जानवरों पर आधारित हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि ये नतीजे इंसानों पर भी लागू होते हैं, क्योंकि वे भी समान जोखिम का सामना कर रहे हैं।

एक अन्य अध्ययन के मुताबिक वैश्विक रूप से टायरों से हर साल करीब 2,907 किलोटन माइक्रोप्लास्टिक्स का उत्सर्जन हो रहा है, जबकि ब्रेक से करीब 175 किलोटन का उत्सर्जन होता है। इन माइक्रोप्लास्टिक्स का ज्यादातर हिस्सा पूर्वी अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी चीन, भारत, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के बड़े शहरों से उत्सर्जित हो रहा है, जहां भारी संख्या में वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं।

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वैज्ञानिकों के मुताबिक वातावरण में प्रवेश करने के बाद माइक्रोप्लास्टिक के कण करीब छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं। इतने समय में यह कई महाद्वीपों की यात्रा कर सकते हैं या फिर सांस के जरिए हमारे शरीर के अंदरूनी अंगों में प्रवेश कर सकते हैं।

इससे पहले कॉर्नेल और यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि पैकेजिंग और सोडा बोतलों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के महीन कण हवाओं के जरिए पूरी दुनिया की यात्रा कर सकते हैं।

अन्य शोध से पता चला है फेफड़ों में पहुंचने के बाद यह कण फेफड़ों की कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म और उसके विकास पर असर डाल सकते हैं। इसके साथ ही यह कोशिकाओं के आकार को भी प्रभावित करने के साथ-साथ उनकी रफ्तार को बाधित कर सकते हैं।

ऐसे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता निकोलस चार्ट्रेस ने नीति निर्माताओं से आग्रह किया है कि वे इन बढ़ते प्रमाणों पर गौर करें, जिनके मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। इसमें कोलन और फेफड़ों का कैंसर भी शामिल है।

उन्होंने इस बात की भी उम्मीद जताई है कि वैश्विक नेता इस बढ़ते जोखिम को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करेंगे।

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