सड़कों से समुद्रों तक पहुंच रहा है हर साल 140,000 टन माइक्रोप्लास्टिक: रिपोर्ट

अनुमान है कि टायरों से 34 फीसदी और ब्रेकिंग सिस्टम से उत्सर्जित होने वाला करीब 30 फीसदी माइक्रोप्लास्टिक हर साल समुद्रों तक पहुंच जाता है
सड़कों से समुद्रों तक पहुंच रहा है हर साल 140,000 टन माइक्रोप्लास्टिक: रिपोर्ट
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हर साल सड़क पर दौड़ रहे वाहनों से उत्सर्जित होने वाला करीब 140,000 टन माइक्रोप्लास्टिक्स हवा के जरिए समुद्रों तक पहुंच जाता है। जोकि इकोसिस्टम और मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। यह जानकारी कल (14 जुलाई 2020) प्रकाशित एक नए शोध से सामने आई है। जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में यह जानने की कोशिश की गई है कि किस मात्रा में और कैसे वाहनों से निकलने वाला माइक्रोप्लास्टिक समुद्रों तक पहुंच जाता है। यहां तक कि वो आर्कटिक जैसे निर्जन स्थानों तक भी पहुंच चुका है। जिसकी वजह से आर्कटिक में बर्फ के पिघलने की गति में भी वृद्धि हो रही है। इनमें से ज्यादातर माइक्रोप्लास्टिक टायरों के घिसने और ब्रेक पेडल आदि से निकलता है।

यदि 2018 के आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल करीब 35.9 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है। जिसका करीब 1.8 फीसदी टायरों से माइक्रोप्लास्टिक के रूप में उत्सर्जित हो रहा है। इस नए शोध के अनुसार, हवा के जरिए भी माइक्रोप्लास्टिक उसी दर से समुद्रों तक पहुंच रहा है, जिस दर से नदियों के जरिए माइक्रोप्लास्टिक महासागरों में प्रवेश कर रहा है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि टायरों से उत्सर्जित होने वाला करीब 34 फीसदी माइक्रोप्लास्टिक (करीब 100 किलोटन) और ब्रेकिंग सिस्टम से उत्सर्जित होने वाला 30 फीसदी (40 किलोटन) माइक्रोप्लास्टिक हर साल समुद्रों तक पहुंच जाता है।

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक

गौरतलब है कि जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। जिस तरह से दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका पर्यावरण पर क्या असर होगा, इसे अब तक बहुत कम करके आंका गया है। जबकि माइक्रोप्लास्टिक्स  के बारे में तो बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

शोध से पता चला है कि प्लास्टिक के बड़े कण जो भारी होते हैं वो अपने वजन के अपने स्रोत के पास ही जमा हो जाते हैं। जबकि माइक्रोप्लास्टिक्स जो 2.5 माइक्रोमीटर और उससे भी छोटे होते हैं, वो उड़कर और नदियों के जरिये दूर-दर्ज के क्षेत्रों तक पहुंच जाते हैं। अनुमान है कि हर साल वाहनों से उत्सर्जित होने वाला करीब 140,000 टन माइक्रोप्लास्टिक हवा के जरिए समुद्रों में मिल जाता है। जबकि करीब 48,000 टन माइक्रोप्लास्टिक दूर-दर्ज के निर्जन बर्फ से ढंके क्षेत्रों तक पहुंच जाता है।

एशिया और उत्तरी अमेरिका के वाहन कर रहे हैं सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक का उत्सर्जन

अनुमान है कि वैश्विक रूप से टायरों से हर साल करीब 2,907 किलोटन माइक्रोप्लास्टिक्स का उत्सर्जन होता है। जबकि ब्रेक से करीब 175 किलोटन का उत्सर्जन होता है। इन माइक्रोप्लास्टिक का ज्यादातर हिस्सा पूर्वी अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी चीन, भारत, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के बड़े शहरों से उत्सर्जित हो रहा है जहां भारी संख्या में वाहनों का आवागमन होता है।

इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक निकोलास इवांगेलीओ के अनुसार यह एक चिंता का विषय है क्योंकि माइक्रोप्लास्टिक आर्कटिक और ग्रीनलैंड तक पहुंच गया है जो सतह को सफ़ेद से गाढ़े रंग का कर रहा है। सफेद और हलके रंग के कारण बर्फ पर पड़ने वाली ज्यादातर सूर्य की किरणे परावर्तित हो जाती हैं। पर जब से माइक्रोप्लास्टिक के कारण सतह के गाढ़े रंग के होने की वजह से यह किरणें सतह द्वारा अवशोषित कर ली जा रही है। जिससे उसका तापमान बढ़ रहा है और ज्यादा मात्रा में बर्फ पिघल रही है।    

दुनिया भर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पेट्रोल और डीजल वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। पर इसके बावजूद माइक्रोप्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाला खतरा जस का तस रहेगा क्योंकिं टायरों और ब्रेक का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों में भी होता है। ज्यादातर टायर और ब्रेक, जीवाश्म ईंधन जैसे कि ईथीलीन और प्रोपलीन के बने होते हैं ऐसे में उनसे होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। जिसपर ध्यान देने की जरुरत है।

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