

शोध के अनुसार रक्त समूह ए में ऑटोइम्यून लिवर रोगों का जोखिम अधिक पाया गया।
रक्त समूह बी वाले लोगों में पीबीसी जैसे रोगों का जोखिम अपेक्षाकृत कम दिखा।
ऑटोइम्यून लिवर रोग प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी से होते हैं, न कि शराब या जीवनशैली से।
संतुलित आहार, कम सोडियम, व्यायाम और नियमित जांच लिवर स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
शराब से परहेज, धूम्रपान छोड़ना और विटामिन डी, कैल्शियम का सेवन रोग नियंत्रण में मदद करता है।
अधिकतर लोग अपने रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) को केवल एक सामान्य चिकित्सकीय जानकारी के रूप में जानते हैं। खून चढ़वाने, सर्जरी या किसी चिकित्सा आपातकाल के समय इसकी आवश्यकता होती है। लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि हमारा रक्त समूह हमारे लिवर (यकृत) स्वास्थ्य के बारे में भी महत्वपूर्ण संकेत दे सकता है, खासकर ऑटोइम्यून लिवर रोगों के संदर्भ में।
हाल ही में जर्नल फ्रंटियर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि रक्त समूह ए वाले लोगों में ऑटोइम्यून लिवर रोग होने की आशंका अधिक हो सकती है। वहीं, रक्त समूह बी वाले लोगों में इन रोगों का खतरा कम देखा गया, खासकर प्राइमरी बिलियरी कोलांगाइटिस (पीबीसी) के मामले में।
ऑटोइम्यून लिवर रोग क्या होते हैं?
ऑटोइम्यून लिवर रोग वे स्थितियां हैं जहां शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली किसी बाहरी जीवाणु या वायरस को मारने की बजाय खुद के ही लिवर पर हमला करना शुरू कर देती है। इससे लिवर में सूजन, नुकसान और समय के साथ गंभीर जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
मुख्य रूप से दो प्रकार अधिक देखे जाते हैं:
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (एआईएच) : इसमें इम्यून सिस्टम सीधे लिवर की कोशिकाओं पर हमला करता है, जिससे सूजन और नुकसान होता है।
प्राइमरी बिलियरी कोलांगाइटिस (पीबीसी) : इसमें प्रतिरक्षा तंत्र लिवर के अंदर मौजूद बाइल डक्ट्स पर आक्रमण करता है। परिणामस्वरूप बाइल सही तरीके से बाहर नहीं निकल पाती और लिवर में जमा होने लगती है। इससे लिवर में स्कारिंग (फाइब्रोसिस) और अंत में सिरोसिस या लिवर फेलियर हो सकता है। ये रोग शराब या अनियमित जीवनशैली के कारण नहीं होते, बल्कि प्रतिरक्षा तंत्र की गड़बड़ी से उत्पन्न होते हैं।
रक्त समूह और लिवर रोग: शोध से क्या पता चला?
रक्त समूह हमारे लाल रक्त कोशिकाओं पर मौजूद ए, बी या एच एंटीजन से तय होते हैं। इसी आधार पर रक्त को चार मुख्य समूहों - ए, बी, एबी और ओ में बांटा जाता है।
इस अध्ययन में 1,200 से अधिक लोगों को शामिल किया गया, जिनमें 114 मरीज ऑटोइम्यून लिवर रोगों से पीड़ित थे।
परिणामों में पाया गया कि सबसे अधिक मरीजों में रक्त समूह ए पाया गया। उसके बाद ओ, फिर बी, और सबसे कम एबी। इससे पता चलता है कि रक्त समूह ए कुछ लोगों में ऑटोइम्यून लिवर रोगों के खतरों को बढ़ा सकता है, जबकि बी समूह वाले व्यक्तियों में यह खतरा अपेक्षाकृत कम हो सकता है।
हालांकि रक्त समूह केवल एक जोखिम कारक है - इसका मतलब यह नहीं कि ए समूह वाले सभी लोगों को लिवर रोग होगा, या बी समूह वाले लोगों को कभी नहीं होगा। फिर भी, यदि किसी व्यक्ति में थकान, जोड़ों में दर्द, या पाचन से जुड़ी समस्याएं लगातार बनी रहें, तो डॉक्टर से सलाह लेना बेहतर होता है।
जीवनशैली और सावधानियां
यदि किसी व्यक्ति में पीबीसी या ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस की आशंका हो, या पहले से पता चल चुका हो, तो कुछ आदतें अपनाने से रोग को नियंत्रित रखने में मदद मिल सकती है।
1. शराब से परहेज : शोध के अनुसार, पीबीसी जैसे रोगों में शराब लिवर को और नुकसान पहुंचाती है। इसलिए शराब से दूर रहना बहुत जरूरी है।
2. कम सोडियम वाला आहार : लिवर रोगों में पेट में पानी भरने का खतरा बढ़ जाता है। नमक कम करने से इसके खतरे को कम किया जा सकता है।
3. संतुलित और पौष्टिक भोजन : साबुत अनाज, फल और सब्जियां, दालें और मेवे, ओमेगा-थ्री व अन्य स्वस्थ वसा (जैसे ऑलिव ऑयल) इनसे लिवर को आवश्यक पोषण मिलता है और सूजन कम करने में मदद मिलती है।
4. कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन : पीबी सी से पीड़ित मरीजों में हड्डियां कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए डॉक्टर अक्सर विटामिन डी सप्लीमेंट या कैल्शियम युक्त आहार की सलाह देते हैं।
5. नियमित व्यायाम : हल्का व्यायाम, योग, पैदल चलना या स्ट्रेचिंग - ये सब शरीर को सक्रिय रखते हैं और हड्डियों व मांसपेशियों को मजबूत बनाते हैं।
6. धूम्रपान छोड़ें : धूम्रपान लिवर की सूजन को बढ़ा सकता है और रोग को तेजी से बिगाड़ सकता है।
7. नियमित जांच और फॉलो-अप : खून की जांच, लिवर फंक्शन टेस्ट (एलएफटी) और डॉक्टर के साथ नियमित सलाह-मशविरा बहुत जरूरी है ताकि बीमारी को शुरुआती चरण में ही नियंत्रित किया जा सके।
शोध में कहा गया है कि रक्त समूह और लिवर रोगों के बीच संबंध पर हो रहा शोध अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन यह एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण है। रक्त समूह ए रखने का मतलब यह नहीं कि आपको ऑटोइम्यून लिवर रोग होगा, पर यह आपके जोखिम को थोड़ा बढ़ा सकता है।
इसलिए अपने शरीर के संकेतों पर ध्यान देना, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और समय-समय पर मेडिकल जांच कराना हमेशा फायदेमंद है। लिवर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण और मेहनती अंग है इसे स्वस्थ रखना हमारे हाथ में है।