कड़वी सच्चाई: मौजूदा रफ्तार से बाल विवाह जैसी कुरीति को खत्म करने में लगेंगे 300 साल

दुनिया में बाल विवाह की शिकार करीब एक तिहाई महिलाएं और बच्चियां भारत में हैं। मतलब की देश में करीब 21.7 करोड़ महिलाओं और बच्चियों का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया था
हर साल करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है; फोटो:
हर साल करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है; फोटो:
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बाल विवाह एक ऐसी सामाजिक कुरीति है, जो सदियों से मानव समाज का हिस्सा रही है। हालांकि मौजूदा समय में इस कुरीति में गिरावट जरूर आई है लेकिन इसके बावजूद गिरावट की यह रफ्तार उतनी नहीं है, जिससे इसके लिए तक लक्ष्य को निर्धारित समय में हासिल किया जा सके।

वास्तव में देखा जाए तो इस रफ्तार से समाज में व्याप्त इस कुरीति को जड़ से खत्म करने में अभी और 300 साल लगेंगें। वहीं यदि उप सहारा अफ्रीका की बात करें तो मौजूदा रफ्तार से वो इस कुप्रथा के जड़ से उन्मूलन में अभी 200 वर्ष दूर है। वहीं दक्षिण एशिया जोकि इस कुप्रथा का सबसे ज्यादा शिकार है वो इस कुप्रथा को पूरी तरह दूर करने से अभी 55 वर्ष दूर है। यह जानकारी यूनिसेफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट "इस एन एन्ड टू चाइल्ड मैरिज विदइन रीच" में सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक अब से एक दशक पहले 20 से 24 साल की हर चौथी महिला की शादी 18 साल से कम में हो गई थी। आज यह आंकड़ा घटकर पांच में से एक पर आ गया है। मतलब कि हर पांचवी महिला की शादी उसकी बाल्यावस्था में ही हो गई थी। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2012 में दुनिया की 20 से 24 वर्ष की 23 फीसदी युवतियों का विवाह 18 साल की उम्र से पहले हो गया था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 19 फीसदी पर पहुंच गया है।

हालांकि इसके बावजूद बाल विवाह के मामलों में आ रही गिरावट सतत विकास के लक्ष्यों के अनुकूल नहीं है। बाल विवाह की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप यूएनएफपीए द्वारा जारी आंकड़ों से लगा सकते हैं जिनके अनुसार हर साल करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है।

रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी है कि बढ़ते संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न संकटों के चलते इस दिशा में जो थोड़ी बहुत प्रगति हुई है वो भी खतरे में है। पता चला है कि पिछले 25 वर्षों में जागरूकता और अन्य उपायों की मदद से बाल विवाह के 6.8 करोड़ मामलों को टाला जा सका है। 

भारत में हैं बाल विवाह की एक तिहाई शिकार

रिपोर्ट के मुताबिक आज दुनिया में करीब 64 करोड़ महिलाएं और युवतियां ऐसी हैं जिनका विवाह बाल्यावस्था में ही हो गया था। पता चला है कि बाल विवाह की शिकार इनमें से करीब आधी महिलाएं और बच्चियां दक्षिण एशिया की हैं। इनकी कुल संख्या 29 करोड़ है। इसके बाद 20 फीसदी (12.7 करोड़) शिकार उप सहारा अफ्रीका, 15 फीसदी (9.5 करोड़) पूर्वी एशिया और प्रशांत, जबकि नौ फीसदी (5.8 करोड़) दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन की हैं।

वहीं यदि भारत की बात करें तो दुनिया में बाल विवाह की शिकार करीब एक तिहाई महिलाएं और बच्चियां भारत में हैं। मतलब की देश में करीब 21.7 करोड़ महिलाओं और बच्चियों का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया था। इसके बाद बांग्लादेश में 4.2 करोड़, चीन में 3.5 करोड़, इंडोनेशिया में 2.6 करोड़, नाइजीरिया में 2.4 करोड़, ब्राजील में 2.2 करोड़ और पाकिस्तान में दुनिया की 1.9 करोड़ बालिका वधु हैं।

महामारी ने किस हद तक इसको प्रभावित किया है इसे पूरी तरह मापा जाना अभी बाकी है, लेकिन यूनिसेफ का अनुमान है कि महामारी ने वर्षों से आ रही गिरावट की प्रवृत्ति को पलट दिया था। जानकारी मिली है कि महामारी के चलते 2020 में इसके जोखिम एक बार फिर बढ़ गया था। नतीजन 2022 में करीब 1.2 करोड़ बच्चियां बाल विवाह की वेदी पर बलि चढ़ गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह के मामलों में संघर्ष की भी बड़ी भूमिका है। पता चला है कि संघर्ष से होने वाली मौतों में हर दस गुना वृद्धि के साथ बाल विवाह के प्रसार में 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। इसी तरह यदि जलवायु परिवर्तन को देखें तो उसकी वजह से बारिश में आया दस फीसदी का बदलाव बाल विवाह के मामलों में एक फीसदी की वृद्धि के लिए जिम्मेवार है।

देखा जाए तो जिन बच्चियों का विवाह बाल्यावस्था में हो जाता है उन्हें जीवनभर इसके परिणामों को झेलना पड़ता है। इसकी वजह से जहां उनके स्कूल जाने की सम्भावना घट जाती है। वहीं गर्भावस्था के चलते स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों का सामना भी करना पड़ता है।

इससे न केवल मां बल्कि बच्चे की स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं और मृत्यु दर के जोखिम में वृद्धि हो जाती है। इसकी वजह से बच्चियां अपने परिवार, दोस्तों और समुदाय से भी अलग-थलग पड़ जाती हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी भारी असर पड़ता है। देखा जाए तो यह सीधे तौर पर मानव अधिकारों का हनन है।

लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 20 गुणा तेज करे होंगे प्रयास

हाल ही में अंतराष्ट्रीय संगठन सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी नई रिपोर्ट 'ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021' से पता चला है कि बाल विवाह हर रोज 60 से ज्यादा बच्चियों की जान लील रहा है। मतलब की इसकी वजह से हर साल 22,000 से ज्यादा बच्चियों की असमय मौत हो जाती है। वहीं इसकी वजह से दक्षिण एशिया में हर रोज छह बच्चियों अपनी जान गंवा रही हैं।

इस बारे में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल का कहना है कि, "दुनिया संकटों से घिरी हुई है, इसकी वजह से कमजोर तबके से जुड़े बच्चों की उम्मीदें और सपने कुचले जा रहे हैं, विशेषकर लड़कियों के, जिन्हें दुल्हन नहीं, छात्राएं बनना चाहिए।"

उनके अनुसार "स्वास्थ्य एवं आर्थिक संकट, सशस्त्र संघर्षों में होती वृद्धि, और जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों के चलते परिवार, बाल विवाह में झूठी तसल्ली को ढूंढ रहे हैं। ऐसे में उनके मुताबिक हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि शिक्षा और सशक्त जीवन जीने के लिए, उनके अधिकार सुरक्षित हों।

ऐसे में देखा जाए तो बाल विवाह में जिस रफ्तार से गिरावट आ रही है उसे देखते हुए लगता है कि 2030 तक यह आंकड़ा घटकर केवल 16 फीसदी पर ही पहुंच पाएगा। ऐसे में यदि 2030 तक बाल विवाह के पूरी तरह उन्मूलन के एसडीजी के लक्ष्य को हासिल करना है तो इस दिशा में की जा रही प्रगति की रफ्तार में 20 गुणा तेजी लानी होगी।

इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है। न केवल कानूनी तौर पर बल्कि सामाजिक तौर पर भी बाल विवाह जैसी कुरीति का विरोध जरूरी है। नहीं भूलना चाहिए कि बच्चियों को भी भी अपने फैसले लेने का हक है। उन्हें भी अपना जीवन संवारने, पढ़ने लिखने, खेलने और बेहतर भविष्य बनाने का हक है। इस हक को उनसे नहीं छीना जा सकता। 

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