
खून की जांच से अब अल्जाइमर की पहचान आसान और सस्ती हो गई है।
यह टेस्ट मस्तिष्क से जुड़े दो प्रोटीन – पीटाऊ 217 बीटा-एमिलॉयड 1-42 को मापता है।
क्लिनिकल रिसर्च में टेस्ट ने 88 से 92 फीसदी की सटीकता पाई गई है।
यह जांच विशेष रूप से 55 साल से ऊपर के लक्षण दिख रहे लोगों के लिए है।
शुरुआती पहचान से मरीज को नए इलाज और बेहतर जीवन गुणवत्ता का लाभ मिल सकेगा।
अल्जाइमर रोग दुनिया भर में लाखों लोगों पर बुरा असर डालता है। यह एक दिमागी बीमारी है, जिसमें धीरे-धीरे याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता और व्यवहार पर असर पड़ता है। शुरुआती दौर में यह साधारण भूलने की बीमारी की तरह लगता है, लेकिन जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, मनुष्य अपने नजदीकी लोगों को पहचानने, खाना खाने या रोजमर्रा के साधारण काम करने में भी असमर्थ हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 5.5 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं और इनमें से 60 से 70 फीसदी मामलों के पीछे अल्जाइमर मुख्य कारण है। अब तक इसकी सही और शुरुआती पहचान करना मुश्किल था, लेकिन हाल ही में एक बड़ी खोज ने उम्मीद की नई किरण जगाई है, अब सिर्फ खून की जांच से अल्जाइमर का पता लगाया जा सकेगा।
अल्जाइमर कैसे होता है?
हालांकि इस रोग का सटीक कारण अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि मस्तिष्क में दो तरह के विषैले प्रोटीन जमा होने लगते हैं।
पहला एमिलॉयड प्लाक्स और दूसरा टाऊ टैंगल्स ये प्रोटीन मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली में गड़बड़ी पैदा करते हैं और धीरे-धीरे याददाश्त तथा सोचने की क्षमता को नष्ट कर देते हैं।
नई खोज: खून की जांच से पहचान
पहले अल्जाइमर का पता लगाने के लिए मरीज को महंगे पैट स्कैन या स्पाइनल टैप (रीढ़ की हड्डी से तरल निकालकर जांच) जैसी जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था। ये दोनों तरीके न केवल महंगे और समय लेने वाले थे, बल्कि हर जगह उपलब्ध भी नहीं होते थे। अब वैज्ञानिकों ने एक सरल खून की जांच विकसित किया है, जो कुछ ही मिनटों में बीमारी की पहचान करने में सक्षम है।
क्या है इस टेस्ट का नाम और तरीका?
जामा नेटवर्क में प्रकाशित शोध के मुताबिक, इस जांच का नाम है ल्यूमिपल्स जी पीटाऊ217/बीटा-एमाइलॉयड 1-42 प्लाज्मा अनुपात। इसमें खून के नमूने से दो खास प्रोटीन की मात्रा मापी जाती है- फॉस्फोरिलेटेड टाऊ 217 बीटा-एमिलॉयड 1-42 इन दोनों के अनुपात को देखकर यह पता चलता है कि मरीज के मस्तिष्क में अल्जाइमर की पहचान करने वाले एमिलॉयड प्लाक्स मौजूद हैं या नहीं।
शोध में क्या मिला?
स्वीडन के लुंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने 1,213 मरीजों पर यह अध्ययन किया। नतीजे बेहद उत्साहजनक रहे, जांच ने 88 से 92 प्रतिशत मामलों में अल्जाइमर की सही पहचान की। 92 फीसदी पॉजिटिव नतीजे पैट स्कैन या स्पाइनल टेस्ट से भी मेल खाते पाए गए। 97 फीसदी नेगेटिव नतीजे भी सही साबित हुए। इससे यह साबित होता है कि खून की यह जांच लगभग उतनी ही भरोसेमंद है जितनी पारंपरिक महंगी जांचें।
किसके लिए है यह टेस्ट?
यह टेस्ट अमेरिकी दवा नियंत्रण संस्था (एफडीए) से मंजूरी हासिल कर चुका है। यह उन वयस्कों के लिए है जिनकी उम्र 55 वर्ष से अधिक है और जिनमें भूलने, सोचने या समझने में कठिनाई जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। अभी यह जांच सामान्य, स्वस्थ लोगों के लिए स्क्रीनिंग के रूप में नहीं है।
क्यों है यह बड़ी उपलब्धि?
पहले अल्जाइमर की पहचान में कई महीने और हजारों रुपये खर्च हो जाते थे। अब सिर्फ खून का नमूना लेकर आसानी से पता लगाया जा सकता है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के क्लिनिक भी इस जांच को कर पाएंगे। शुरुआती स्तर पर पहचान होने से मरीज को सही इलाज और बेहतर जीवन जीने का अवसर मिलेगा।
इलाज और योजना बनाने में मदद
आज के समय में लेकेम्बी और किसुनला जैसी नई दवाएं एफडीए द्वारा मंजूर की गई हैं, जो मस्तिष्क से एमिलॉयड प्लाक्स को हटाने का काम करती हैं। लेकिन ये दवाएं तभी अधिक असरदार होती हैं जब मरीज को रोग के शुरुआती चरण में पहचानकर इलाज शुरू किया जाए। खून की जांच से डॉक्टर समय पर सही मरीजों को चिन्हित कर पाएंगे और उन्हें जल्द इलाज मिल सकेगा।
इसकी कुछ सीमाएं भी हैं
यह टेस्ट अकेले में अंतिम जांच नहीं है। डॉक्टर को इसके साथ मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, क्लीनिकल जांच और जरुरत पड़ने पर स्कैन भी देखना होगा। हर जगह बीमा कंपनियां इसका खर्च नहीं उठा रहीं, हालांकि एफडीए की मंजूरी के बाद कवरेज मिलने की संभावना बढ़ गई है।
आगे की राह
यह खून की जांच पहला कदम है। आने वाले सालों में और भी कई तरह के खून की जांच विकसित किए जा रहे हैं, जो अलग-अलग बायोमार्कर (प्रोटीन) की जांच करेंगे। इनसे न केवल शुरुआती पहचान आसान होगी बल्कि डॉक्टर मरीज की बीमारी की प्रगति भी ट्रैक कर पाएंगे।
अल्जाइमर जैसे गंभीर रोग में शुरुआती पहचान बहुत मायने रखती है। यह नई तरह की खून की जांच तकनीक न केवल सस्ती और सरल है, बल्कि दुनिया भर के करोड़ों लोगों को समय पर इलाज और बेहतर जीवन का अवसर भी देगी। अब वह दिन दूर नहीं जब अल्जाइमर की पहचान बड़े अस्पतालों तक सीमित न होकर छोटे अस्पतालों और गांवों तक पहुंच जाएगी।