बैक्टीरिया की कमजोरी पकड़ेगा नया देसी डिवाइस, आईआईटी, मद्रास की नई खोज

आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों द्वारा बनाए नए डिवाइस ‘ε-µD’ से एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस की पहचान आसान होगी, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी समय पर बेहतर इलाज मिल सकेगा
रोगाणुरोधी प्रतिरोध औसतन हर दिन 13,562 लोगों की जान ले रहा है; फोटो: आईस्टॉक
रोगाणुरोधी प्रतिरोध औसतन हर दिन 13,562 लोगों की जान ले रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक नया और किफायती माइक्रोफ्लुइडिक डिवाइस विकसित किया है, जो तेजी से पता लगा सकता है कि कोई बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति संवेदनशील है या प्रतिरोधी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह डिवाइस एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता (एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स) का तेज और सटीक तरीके से मूल्यांकन कर सकता है।

‘ε-µD’ नामक यह डिवाइस एक तरह का लैब-ऑन-चिप है, जो स्क्रीन-प्रिंटेड कार्बन इलेक्ट्रोड्स पर आधारित है। इसमें महंगी धातुओं या जटिल तकनीकों की जरूरत नहीं होती, न ही इसे चलाने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण चाहिए। इस वजह से यह डिवाइस न केवल किफायती है, बल्कि इसे छोटे क्लीनिकों और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस डिवाइस को तेजी से काम करने, संवेदनशीलता और आसान उपयोग को ध्यान में रखकर बनाया गया है। यह खास तौर पर उन इलाकों में बैक्टीरियल इंफेक्शन का जल्द से जल्द पता लगाने और बेहतर इलाज में मदद कर सकता है, जहां आधुनिक लैब सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

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रोगाणुरोधी प्रतिरोध औसतन हर दिन 13,562 लोगों की जान ले रहा है; फोटो: आईस्टॉक

यह डिवाइस इलेक्ट्रोकेमिकल इम्पीडेन्स स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक पर आधारित है, जो बैक्टीरिया के विकास को इलेक्ट्रिकल सिग्नल के जरिए मापती है। इसकी मदद से डिवाइस यह जान लेता है कि बैक्टीरिया दवा के बावजूद बढ़ रहे हैं या मर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि यह डिवाइस जांच के महज तीन घंटे में नतीजे दे सकता है।

अगर बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, तो वे दवा के बावजूद बढ़ते रहते हैं और सिग्नल बदलता है। वहीं अगर दवा असरदार है, तो बैक्टीरिया की वृद्धि रुक जाती है और सिग्नल स्थिर रहता है। वैज्ञानिकों ने इसे सामान्यीकृत प्रतिबाधा संकेत (एनआईएस) नामक तकनीक से मापा है, जो यह फर्क आसानी से बता देती है।

एएमआर: दुनिया के सामने खड़ा एक बड़ा खतरा

बता दें कि एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाला रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक ऐसा अदृश्य खतरा है, जिसका प्रभाव सीमाओं से परे है। यही वजह है कि कोई भी देश अकेले तेजी से बढ़ते इस खतरे का मुकाबला नहीं कर सकता।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 2019 में वैश्विक स्तर पर होने वाली करीब 49 लाख मौतों के लिए एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स (एएमआर) जिम्मेवार है। वहीं आशंका है कि अगले 25 वर्षों में एएमआर से होने वाली इन मौतों का आंकड़ा बढ़कर सालाना एक करोड़ पर पहुंच जाएगा।

देखा जाए तो कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में यह संकट और भी गहरा है, क्योंकि वहां सही जांच और समय पर इलाज उपलब्ध नहीं हो पाता।

बता दें कि एंटीमाइक्रोबियल सस्प्टिबिलिटी टेस्टिंग (एएसटी) एक जरूरी तरीका है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि किसी खास संक्रमण पर कौन-सी एंटीबायोटिक दवा असर करेगी। यह डॉक्टरों को सही दवा चुनने और एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल से बचने में मदद करता है, जो एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का एक बड़ा कारण है।

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हालांकि एएसटी के पारंपरिक तरीकों में बैक्टीरिया को लैब में विकसित करके यह देखना होता है कि दवा का उस पर क्या असर होता है। इस प्रक्रिया में 48 से 72 घंटों का समय लगता है। इस देरी की वजह से अक्सर डॉक्टरों को सभी पर असर करने वाली (ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक) दवाएं देनी पड़ती हैं, जो बाद में बैक्टीरिया को और ज्यादा प्रतिरोधी बना सकती हैं।

इन कमियों को दूर करने के लिए आईआईटी मद्रास की टीम ने 'ε-µD' नामक एक सस्ता और असरदार टेस्टिंग डिवाइस विकसित किया है। यह डिवाइस इलेक्ट्रोकेमिकल संकेतों के जरिए बैक्टीरिया की बढ़त और एंटीबायोटिक के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को मापता है।

यह डब्ल्यूएचओ द्वारा तय प्रमुख मापदंडों जैसे किफायती, तेज नतीजे, उपयोग में आसान और भरोसेमंद परिणाम को पूरा करता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस डिवाइस के जरिए अब ऐसे इलाकों में भी एंटीबायोटिक टेस्टिंग संभव हो सकेगी, जहां संसाधन सीमित और उन्नत लैब सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

क्लिनिकल ट्रायल के बाद मार्केट में आएगा यह डिवाइस

शोधकर्ता आईआईटीएम इंस्टीट्यूट हॉस्पिटल के साथ मिलकर डिवाइस का क्लिनिकल परीक्षण कर रहे हैं। इसके बाद इसे आईआईटी मद्रास से जुड़े स्टार्टअप काप्पोन एनालिटिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के जरिए व्यावसायिक रूप से लॉन्च किया जाएगा।

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इस डिवाइस पर किए अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च से पता चला है कि ε-µD ने एस्चेरिचिया कोलाई (ई कोलाई) और बी सबटिलिस जैसे बैक्टीरिया पर परीक्षण के दौरान सटीक नतीजे दिए। साथ ही इसकी मदद से एम्पीसिलीन और टेट्रासाइक्लिन जैसी दवाओं के असर की पहचान भी सफलतापूर्वक की गई है। यूरीन के नमूनों में भी यह डिवाइस सही रिजल्ट दे पाया, यानी यह असली क्लिनिकल केस में भी काम करेगा। ऐसे में उम्मीद है कि आईआईटी मद्रास का यह किफायती, तेज और भरोसेमंद डिवाइस बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज में एक गेम-चेंजर साबित होगा।

साथ ही ग्रामीण भारत से लेकर आईसीयू तक, यह डिवाइस डॉक्टरों को समय पर, सटीक दवा चुनने में मदद करेगा और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जैसी वैश्विक चुनौती से लड़ने में एक बड़ी भूमिका निभाएगा।

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