

एक नई रिसर्च के अनुसार, रोजाना 3,000 से 7,500 कदम चलने से अल्जाइमर की प्रगति धीमी हो सकती है।
अध्ययन में पाया गया कि नियमित शारीरिक गतिविधि से दिमागी गिरावट की रफ्तार कम होती है। यह खासकर उन लोगों के लिए फायदेमंद है जिनमें अल्जाइमर का खतरा अधिक होता है।
अध्ययन में देखा गया कि, जो लोग हर दिन 3,000 से 5,000 कदम चलते हैं, उनमें दिमागी गिरावट की रफ्तार करीब तीन साल धीमी रही। वहीं 5,000 से 7,500 कदम चलने वालों में यह असर सात साल तक दिखा।
एक नई रिसर्च से पता चला है कि रोजाना थोड़ा भी पैदल चलना, अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारी की रफ्तार को धीमा कर सकता है। यह खासकर उन लोगों के लिए अधिक कारगर है जिनमें अल्जाइमर का खतरा अधिक होता है।
अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि जो लोग हर दिन 3,000 से 7,500 कदम चलते हैं, उनमें दिमाग और याददाश्त कमजोर होने की प्रक्रिया (संज्ञानात्मक गिरावट) धीमी पाई गई। अध्ययन में देखा गया कि, जो लोग हर दिन 3,000 से 5,000 कदम चलते हैं, उनमें दिमागी गिरावट की रफ्तार करीब तीन साल धीमी रही। वहीं 5,000 से 7,500 कदम चलने वालों में यह असर सात साल तक दिखा।
यह अध्ययन अमेरिका के मास जनरल ब्रिघम हॉस्पिटल से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जो बुजुर्ग नियमित शारीरिक गतिविधि जैसे चलने-फिरने या व्यायाम करने की आदत रखते हैं, उनका दिमाग ज्यादा समय तक तेज रहता है।
इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन में पाया गया कि जिन बुज़ुर्गों के दिमाग में एमिलॉयड-बीटा प्रोटीन का स्तर अधिक था, लेकिन वे शारीरिक रूप से सक्रिय थे, उनमें सोचने-समझने की क्षमता घटने की रफ्तार काफी धीमी रही। गौरतलब है कि एमिलॉयड-बीटा एक पेप्टाइड है, जो मस्तिष्क में बनता है और अल्जाइमर से जुड़ा होता है।
इतना ही नहीं इन बुजुर्गों के दिमाग में टाऊ प्रोटीन (जो अल्जाइमर के लक्षणों से सबसे ज्यादा जुड़ा है) भी बहुत धीरे जमा हुआ।
जितने ज्यादा कदम, उतनी धीमी गिरावट
इसके विपरीत, जो लोग ज्यादातर समय बैठे रहते थे, उनके दिमाग में ‘टाऊ प्रोटीन’ जल्दी जमा हुआ और उनकी सोचने-समझने की क्षमता व रोजमर्रा के काम करने की क्षमता में तेजी से गिरावट दर्ज की गई।
यह अध्ययन 50 से 90 वर्ष की आयु के 296 स्वस्थ लोगों पर किया गया, जो हार्वर्ड एजिंग ब्रेन स्टडी का हिस्सा थे। इन सभी प्रतिभागियों के दिमाग की पीईटी स्कैन की मदद से जांच की गई। इस दौरान उनमें एमाइलॉयड और टाऊ प्रोटीन की मौजूदगी को भी जांचा गया।
साथ ही उनकी शारीरिक गतिविधि को पेडोमीटर (कदम गिनने वाली डिवाइस) से नापा गया। इसके साथ ही करीब 9 वर्षों तक इनकी गतिविधि और याददाश्त का रिकॉर्ड रखा गया।
अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जिन लोगों के दिमाग में पहले से एमाइलॉयड प्रोटीन अधिक था, लेकिन उनमें से जो लोग अधिक चलते-फिरते थे, उनके दिमाग में टाऊ प्रोटीन का जमाव धीमा रहा और उनकी सोचने-समझने की क्षमता लंबे समय तक बेहतर बनी रही।
शोध से यह भी पता चला कि शारीरिक गतिविधि का असर सीधे टाऊ प्रोटीन पर पड़ता है, यानी रोजाना चलना फिरना दिमाग में इस नुकसानदायक प्रोटीन के बनने की रफ्तार को धीमा कर सकता है। इससे दिमाग सक्रिय और स्वस्थ बना रहता है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता जस्मीर छटवाल का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "यह अध्ययन दर्शाता है कि क्यों कुछ लोगों में अल्जाइमर की शुरुआत होने के बाद भी दिमागी क्षमता में गिरावट उतनी तेज नहीं होती। ऐसे में अगर समय पर जीवनशैली में बदलाव किए जाएं, तो बीमारी को काफी हद तक रोका जा सकता है।“
अध्ययन से जुड़ी अन्य शोधकर्ता डॉक्टर रीसा स्पर्लिंग का कहना है, "इन नतीजों से पता चलता है कि अल्जाइमर की शुरुआती अवस्था में भी दिमाग को मजबूत बनाया जा सकता है और टाऊ प्रोटीन के असर से बचाव किया जा सकता है।"
इस अध्ययन से इतना तो स्पष्ट है कि हर कदम मायने रखता है। रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ा-सा चलना जैसे सीढ़ियां चढ़ना, हल्की सैर करना या टहलना भी दिमाग को बूढ़ा होने से बचा सकता है। बस शुरुआत जल्दी करें, चलते रहें, अपने छोटे-छोटे कदमों से भी आप दिमाग को मजबूती दे सकते हैं।