
क्या आप जानते हैं कि दुनिया में हर साल हजारों बच्चे एक ऐसे खतरनाक वायरस के साथ जन्म लेते हैं, जो उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है?
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि दुनिया में हर साल करीब 74,000 बच्चे हेपेटाइटिस सी वायरस (एचसीवी) के साथ जन्म लेते हैं। चिंता की बात तो यह है कि इनमें से करीब 23,000 बच्चों में यह संक्रमण पांच साल की उम्र तक भी पीछा नहीं छोड़ता।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गयाज, जिसके नतीजे मेडिकल जर्नल द लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपटोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
पाकिस्तान और नाइजीरिया में सबसे अधिक मामले
इस बारे में जारी रिसर्च रिपोर्ट से पता चला है कि पाकिस्तान और नाइजीरिया में ऐसे मामलों की संख्या सबसे अधिक है। इनके बाद चीन, रूस और भारत जैसे देश आते हैं। इन पांच देशों में कुल मिलाकर आधे से अधिक मामलों की पुष्टि हुई है।
रिपोर्ट की खास बात यह है कि पहली बार हर देश के लिए अलग-अलग अनुमान जारी किए गए हैं। इससे पहले, केवल पाकिस्तान, मिस्र और अमेरिका के बारे में ही जानकारी उपलब्ध थी, वो भी 10 साल पुराने आंकड़ों पर आधारित थी।
अध्ययन से जोड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर एडम ट्रिकी, का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "निष्कर्ष दर्शाते हैं कि यह संक्रमण कितना व्यापक है और इसकी जांच कितनी जरुरी है। बिना जांच के, यह वायरस नवजात बच्चों में बिना इलाज के रह जाता है, जबकि अधिकतर मामलों में इसका इलाज संभव है।"
गर्भावस्था के दौरान संक्रमण का खतरा
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 15 से 49 वर्ष की उम्र की उन महिलाओं का अनुमान लगाया है जो हेपेटाइटिस सी वायरस से संक्रमित हैं। इसके साथ ही यह भी आंका गया कि गर्भावस्था के दौरान बच्चे में इस वायरस के पहुंचने की कितनी आशंका है।
रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हर महिला में से करीब 7 फीसदी मामलों में यह वायरस गर्भ में ही बच्चे को संक्रमित कर सकता है। अच्छी बात यह है कि इनमें से दो-तिहाई बच्चे पांच साल की उम्र तक वायरस को खुद-ब-खुद खत्म कर देते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 5 करोड़ लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं और 2022 में करीब 2.4 लाख मौतें इससे जुड़ी लिवर संबंधी बीमारियों के कारण हुई थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक हेपेटाइटिस के कारण हर साल 13 लाख लोगों की मौत हो रही है। इनमें 83 फीसदी हेपेटाइटिस-बी और 17 फीसदी हेपेटाइटिस-सी के शिकार बन रहे हैं।
स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी है कि 2022 में 25.4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी से जबकि पांच करोड़ लोग हेपेटाइटिस सी के साथ अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर थे। इतना ही नहीं हेपेटाइटिस बी और सी से गम्भीर रूप से संक्रमित आधे से ज्यादा लोगों की उम्र 30 से 54 वर्ष के बीच है। वहीं 12 फीसदी बच्चे भी इसका शिकार हैं।
बता दें कि वैश्विक स्तर पर हेपेटाइटिस के करीब 80 फीसदी मामले 38 देशों में सामने आए हैं, जिनमें भारत भी शामिल है। आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हेपेटाइटिस बी और सी के सबसे ज्यादा मामले चीन में सामने आए थे। जहां यह आंकड़ा 8.38 करोड़ दर्ज किया गया। देखा जाए तो दुनिया के 27.5 फीसदी मामले चीन में सामने आए हैं।
इसके बाद भारत इस मामले में दूसरे स्थान पर हैं जहां 2022 में हेपेटाइटिस बी और सी के 3.53 करोड़ मामले सामने आए। इनमें हेपेटाइटिस बी के 2.98 करोड़ और हेपेटाइटिस सी के 55 लाख मामले शामिल थे।
इलाज संभव, जागरूकता की कमी
डॉक्टर ट्रिकी ने कहा कि "यह स्थिति तब है जब 2014 से ही कई देशों में हेपेटाइटिस सी का कारगर इलाज उपलब्ध है। सिर्फ तीन महीने की दवा से 90 फीसदी से ज्यादा मरीज ठीक हो सकते हैं।" हालांकि फिर भी ज्यादातर लोग अपनी बीमारी से अनजान रहते हैं, क्योंकि यह वायरस लंबे समय तक बिना लक्षण के शरीर में छुपा रह सकता है।
अध्ययन के मुताबिक हेपेटाइटिस सी ज्यादातर उन लोगों में पाया जाता है जो पहले ही हाशिए पर हैं जैसे नशे के लिए सुई का इस्तेमाल करने वाले या असुरक्षित मेडिकल प्रक्रियाओं से गुजरने वाले लोग, इसका ज्यादा शिकार बनते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2022 में महज 36 फीसदी संक्रमितों को ही इस बारे में जानकारी थी कि उन्हें यह बीमारी है। इसकी वजह यह है कि हेपेटाइटिस सी के लक्षण कई सालों तक दिखाई नहीं देते। बाद में यह बीमारी लिवर संबंधी गंभीर समस्याओं जैसे सिरोसिस या लिवर कैंसर में बदल सकती है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच जरूरी है।
अमेरिका और यूरोप की स्वास्थ्य गाइडलाइंस अब सभी गर्भवती महिलाओं की एचसीवी जांच की सिफारिश करती हैं, लेकिन ज्यादातर देशों में यह जांच आम नहीं है। बच्चों में इलाज को लेकर भी नियम अलग-अलग हैं, लेकिन आमतौर पर तीन साल की उम्र के बाद इस बीमारी का इलाज शुरू किया जा सकता है। हालांकि, गर्भवती महिलाओं के इलाज पर अभी भी शोध चल रहा है।
शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि, हमारे पास असरदार दवाएं मौजूद हैं। अब जरूरत है सही समय पर जांच और इलाज की, ताकि संक्रमण को रोका जा सके और लाखों जिंदगियां बचाई जा सकें।