पश्चिम बंगाल के जंगलमहल में आधे से भी कम हुआ जंगल, एनजीटी ने मांगा जवाब

इन जंगलों के कटने से आदिवासी समुदायों की जीविका पर भी संकट मंडरा रहा है
इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा/सीएसई
इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा/सीएसई
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी पीठ ने पश्चिम बंगाल के जंगलमहल क्षेत्र में घटते वन क्षेत्र को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया और पश्चिम बंगाल के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ और एचओएफएफ) को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। पीठ ने उनसे इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।

गौरतलब है कि 5 जून, 2025 को द टेलीग्राफ में छपी एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। खबर के मुताबिक जंगल महल का वन क्षेत्र आधे से भी कम हो गया है।

खबर के मुताबिक, 1992 से 2022 के बीच जंगलमहल क्षेत्र खासकर झारग्राम, पश्चिम मिदनापुर, पुरुलिया और बांकुरा जिलों में पारंपरिक साल (शोरिया रोबस्टा) के घने जंगलों में भारी गिरावट आई है। यह गिरावट एक अध्ययन में सामने आई, जिसके मुताबिक कृषि भूमि, सड़क और बस्तियों के विस्तार के कारण यह स्थिति बनी है। बता दें कि साल जंगल महल की लैटेराइट मिट्टी में पनपने वाली पेड़ की एक प्रमुख प्रजाति है।

मिदनापुर सदर ब्लॉक के देलुहा गांव का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में बताया गया कि 1992 में जहां 1.2 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में साल के जंगल थे, वहां अब इनमें काफी कमी आई है। आदिवासी और वनवासी समुदायों ने जीवन यापन के लिए साल के पेड़ों को काटकर खेती करनी शुरू कर दी है।

खबर के अनुसार इस वन कटाव से जंगल पर निर्भर समुदायों की आजीविका पर भी नकारात्मक असर पड़ा है, विशेष रूप से आदिवासी जनजातियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।

प्राकृतिक नाले पर अतिक्रमण और प्रदूषण का मामला: एनजीटी ने झारखंड सरकार को भेजा नोटिस

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच ने झारखंड सरकार और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है। मामला झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक नाले पर अतिक्रमण और पर्यावरणीय गिरावट से जुड़ा है।

इस मामले में अदालत ने एक तथ्य-जांच समिति (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) के गठन का भी निर्देश दिया है। इस समिति में पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त और झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल होंगे। यह समिति साइट का निरीक्षण कर तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

आवेदन में दावा किया गया है कि यह नाला सुंदरनगर से निकलता है और बिरसानगर से होकर बहता हुआ सुवर्णरेखा नदी में मिलता है। यह स्थानीय पारिस्थितिकी और जल निकासी प्रणाली का एक अहम हिस्सा है। यह नाला स्थानीय समुदाय के लिए जीवन रेखा है। इसपर करीब 30 मुहल्लों के लोग, जिनमें कई आदिवासी परिवार भी शामिल हैं, कृषि, दुग्ध पालन और मत्स्य पालन के लिए निर्भर हैं।

हालांकि, नाले में घरेलू गंदा पानी और ठोस कचरा बिना किसी उपचार के बहाया जा रहा है, जिससे पानी और आसपास का इलाका गंभीर रूप से प्रदूषित हो रहा है।

आवेदक राम प्रकाश गुप्ता ने शिकायत में कहा है कि करीब 25 लोगों ने 'एसआरटी' चिह्नित वर्दी पहनकर नाले के क्षेत्र में जबरन घुसे, पुराने पेड़ों को काटा और सार्वजनिक जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया। इस मामले को लेकर उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री को भी शिकायत भेजी थी।

उनकी शिकायत पर मुख्यमंत्री के वरिष्ठ सचिव ने 6 जुलाई 2021 को पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को उचित कार्रवाई के निर्देश दिए थे। अब एनजीटी ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए सभी संबंधित पक्षों से दो सप्ताह में जवाब मांगा है।

अवैध कचरा डंपिंग से नष्ट हो रहे बालकुम में मैंग्रोव, एनजीटी ने प्रशासन से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी बेंच ने 3 जुलाई, 2025 को निर्देश दिया है कि बालकुम क्षेत्र में मैंग्रोव की अवैध कटाई और कचरा डंपिंग के मामले पर 21 अगस्त, 2025 को सुनवाई की जाएगी। यह मामला महाराष्ट्र के ठाणे जिले का है।

अदालत ने ठाणे के जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि अगली तारीख को प्राधिकरण की ओर से कोई व्यक्ति अपने जवाबी हलफनामे के साथ उपस्थित हो।

यह मामला तब सामने आया जब इस बारे में 6 अप्रैल 2025 को मिड-डे अखबार में एक खबर छपी थी। खबर में अज्ञात लोगों द्वारा तटीय आर्द्रभूमियों (कोस्टल वेटलैंड्स) में अवैध रूप से कचरा डंप कर इलाके को धीरे-धीरे पाटने की गंभीर शिकायतें उठाई गई थीं। इससे मैंग्रोव पेड़ों को नुकसान पहुंच रहा है।

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