'विकास या विनाश': दिल्ली पहुंची 'शाहबाद जंगल बचाओ आंदोलन' की गूंज

राजस्थान के शाहबाद जंगल में जलविद्युत परियोजना के लिए चार लाख से ज्यादा पेड़ों के काटे जाने की योजना है, जिसका विरोध हो रहा है। पर्यावरणविदों का भी कहना है कि इससे वन्यजीवों, वनस्पति और दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियां को नुकसान हो सकता है
Illustration : Tarique Aziz
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पर्यावरणविदों और आम लोगों सहित "शाहबाद जंगल बचाओ" आंदोलन के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सांसद दुष्यंत सिंह को एक ज्ञापन सौंपा है। दुष्यंत सिंह राजस्थान के झालावाड़-बारां से सांसद है।

पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील प्रशांत पटानी और दीपक यादव उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और एक अप्रैल, 2025 को इस बारे में केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की थी।

यह ज्ञापन शाहबाद जंगल में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए चार लाख पेड़ों को काटे जाने की योजना के विरोध में है। जैव विविधता से भरपूर शाहबाद जंगल राजस्थान के बारां में हैं, जो मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में चीतों के लिए निर्धारित आवास के बेहद नजदीक हैं।

ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि इस जलविद्युत परियोजना से कूनो नेशनल पार्क में प्रोजेक्ट चीता के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए चीतों के स्वास्थ्य से भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह ज्ञापन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को भी सौंपा गया है।

क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने हैदराबाद स्थित कंपनी ग्रीनको एनर्जीज प्राइवेट लिमिटेड को बारां जिले की शाहाबाद तहसील में शाहपुर पंप स्टोरेज परियोजना स्थापित करने की मंजूरी दी है। यह परियोजना कलौनी, बैंत और मुंगावली गांवों में 624.17 हेक्टेयर भूमि को कवर करती है। इसमें से 408 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल हैं।

मतलब की यह परियोजना क्षेत्र शाहाबाद संरक्षण रिजर्व के अंतर्गत आता है, जोकि वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम (डब्ल्यूपीएए) 2022 की अनुसूची-I के तहत संरक्षित वन्यजीव प्रजातियों का घर है।

शाहपुर पंप स्टोरेज परियोजना के बारे में बता दें कि यह ऑफ-स्ट्रीम क्लोज्ड लूप पंप स्टोरेज परियोजना है। इसके तहत दो जलाशयों का निर्माण किया जाएगा। वहीं प्रस्तावित निचले जलाशय को भरने के लिए पास की कुनो नदी से पानी पंप किया जाएगा।

इस मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि चार लाख से ज्यादा पेड़ों को काटे जाने से जंगल नष्ट हो जाएंगे। साथ ही इसका खामियाजा स्थानीय पारिस्थितिकी को भी भुगतना होगा। इतना ही नहीं इसकी वजह से मूल निवासियों की जीविका भी छिन जाएगी।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का तर्क है कि यह जमीन संरक्षित वन क्षेत्र के तहत आती है। उनके मुताबिक यह योजना राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दिए फैसले के भी खिलाफ है।

बता दें कि 9 अक्टूबर, 2024 को राजस्थान उच्च न्यायालय ने राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर में छपी खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया था। इन खबरों में कहा गया है कि बारां में कूनो राष्ट्रीय उद्यान से 15 किलोमीटर दूर एक पंप स्टोरेज परियोजना के लिए 1.19 लाख पेड़ों के काटे जाने की योजना है।

इन खबरों में कहा गया है कि इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों के काटे जाने से जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। साथ ही इसकी वजह से जंगल नष्ट हो जाएंगें जो हर साल 22.5 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख रहे हैं।

इतना ही नहीं पेड़ों के काटे जाने से मिट्टी का भी कटाव होगा और साथ ही पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण लाभ भी अवरुद्ध हो सकते हैं।

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