क्यों एनजीटी ने दिल्ली परिवहन विभाग को दिया 95 लाख रुपए का मुआवजा भरने का निर्देश

ट्रिब्यूनल ने कहा है कि अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और समितियां पेड़ों की अवैध कटाई के चलते पर्यावरण को हो रहे गंभीर नुकसान के बावजूद किसी भी पर्यावरणीय मुआवजे की गणना करने से बचती हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली परिवहन विभाग को अवैध रूप से पेड़ों को काटने और ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना करते समय काटे गए पेड़ों के बदले में प्रतिपूरक वृक्षारोपण न करने के लिए 95,05,000 रुपए का अंतरिम पर्यावरणीय मुआवजा भरने का निर्देश दिया है।

परिवहन विभाग को मुआवजे की यह राशि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के पास जमा करनी होगी।

इस मामले में डीपीसीसी को अंतिम पर्यावरणीय मुआवजे की गणना करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है। अंतरिम मुआवजे का उपयोग पर्यावरण को पहुंचे नुकसान की भरपाई के लिए किया जाएगा।

इस बारे में अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), डीपीसीसी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक और जीएनसीटीडी की संयुक्त समिति से एक योजना तैयार करने के लिए किया है। इस योजना के आधार पर ही पर्यावरण की बहाली के लिए कदम उठाए जाएंगे।

21 मार्च, 2025 को दिए आदेश में ट्रिब्यूनल ने कहा है कि इस योजना को तीन महीनों के भीतर तैयार किया जाना चाहिए और अगले तीन महीनों में इसे लागू किया जाना चाहिए।

दिशा-निर्देशों की कमी का नहीं बना सकते बहाना

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की बेंच का कहना है कि अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और समितियां पेड़ों की अवैध कटाई के कारण पर्यावरण को हो रहे गंभीर नुकसान के बावजूद किसी भी पर्यावरणीय मुआवजे की गणना और आकलन करने से बचती हैं।

वे इसका कारण स्पष्ट दिशा-निर्देशों या कार्यप्रणाली की कमी को बताते हैं।

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि “यदि कानून के अनुसार कुछ किया जाना आवश्यक है, और नियम मौजूद हैं, तो उनका पालन किया जाना चाहिए। यदि नियम या प्रावधान नहीं हैं, तो उचित दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए, क्योंकि विनियामकों को निर्देश जारी करने की वैधानिक शक्ति और अधिकार दिए गए हैं।“

एनजीटी ने यह भी आदेश दिया है कि यह निर्णय सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शीर्ष अधिकारियों, जिनमें राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और प्रदूषण नियंत्रण समितियों के सदस्य सचिवों; सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अतिरिक्त मुख्य सचिवों/प्रधान सचिवों, पर्यावरण और वन; महानिदेशक (वन), एमओईएफ एंड सीसी, नई दिल्ली; सदस्य सचिव, सीपीसीबी और सचिव, एमओईएफ एंड सीसी शामिल हैं, को उनकी जानकारी और कार्रवाई के लिए भेजा जाना चाहिए।

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