कर्नाटक में बड़े पैमाने पर खनन की भेंट चढ़े जंगल, एनजीटी ने मांगा जवाब

एनजीटी ने अधिकारियों से उन आरोपों पर जवाब देने को कहा है, जिसमें कहा गया है कि कर्नाटक में खनन के लिए बड़ी मात्रा में वन भूमि का उपयोग किया जा रहा है
खनन के कारण तबाह क्षेत्र को देखती ग्रामीण; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स
खनन के कारण तबाह क्षेत्र को देखती ग्रामीण; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अधिकारियों से उन आरोपों पर जवाब देने को कहा है, जिसमें कहा गया है कि कर्नाटक में खनन के लिए बड़ी मात्रा में वन भूमि का उपयोग किया जा रहा है।

इस मामले में 12 सितंबर, 2024 को दिए आदेश में एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कर्नाटक के खान और भूविज्ञान विभाग, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय और बल्लारी के जिला मजिस्ट्रेट सहित कई अन्य अधिकारियों को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई पांच नवंबर 2024 को दक्षिणी बेंच, चेन्नई के समक्ष होगी।

गौरतलब है कि 21 अगस्त, 2024 को दक्क्न हेराल्ड में प्रकाशित एक खबर के आधार पर, यह मामला ट्रिब्यूनल द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया था।

इस खबर में जिक्र किया गया है कि पिछले 14 वर्षों में, बल्लारी सहित कर्नाटक के चार जिलों में खनन के चलते 4,228.81 एकड़ में मौजूद जंगल नष्ट हो गए हैं। अकेले बल्लारी ने ही इस नुकसान का 80 फीसदी दंश झेला है।

इसकी वजह से वहां 3,338.13 एकड़ वन भूमि प्रभावित हुई है। जानकारी दी गई है कि 2010 से मार्च 2024 के बीच, 60 खनन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिसमें बल्लारी 39 परियोजनाओं के साथ अग्रणी रहा। इस दौरान 5,000 एकड़ से अधिक वन क्षेत्र में खनन पट्टों को बढ़ाया या नवीनीकृत किया गया।

खबर में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) द्वारा की गई जांच से पता चला है कि 2000 से 2011 के बीच किए गए खनन से 2,199.24 एकड़ में फैले जंगल नष्ट हो गए। इतना ही नहीं इसकी वजह से कुल 43.4 वर्ग किलोमीटर (10,724 एकड़) क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खनन के चलते जंगलों को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी वजह से सफेद गिद्ध, पीले गले वाले बुलबुल, सफेद पीठ वाले गिद्ध (चमर गिद्ध) और चौसिंघा (चार सींग वाले मृग) जैसी प्रजातियां गायब हो गई हैं। इसकी वजह से कड़े नियमों को लागू करना पड़ा है।

खबर में यह भी दावा किया गया है कि वैध खनन ने अवैध खनन की तुलना में वनों का दोगुना विनाश किया है। इसकी वजह से संदुर में वन्यजीव और स्थानीय समुदाय गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। खबर में इस बात का भी जिक्र किया है कि खनन संबंधी वायु प्रदूषण के चलते अस्थमा के मामलों में चार गुना वृद्धि हुई है। साथी ही कृषि से होने वाली आय को इसकी वजह से सालाना 200 करोड़ रुपए की चपत लगी है।

ऐसे में अदालत ने कहा है कि यह मामला पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के उल्लंघन से जुड़ा है।

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