

महाराष्ट्र में 2010 से 2024 के बीच बिना अनुमति के 1,65,582 पेड़ काटे गए, जिनमें से अधिकतर कृषि भूमि पर थे।
एनजीटी में दाखिल रिपोर्ट के अनुसार, इन पेड़ों की कटाई पर जुर्माना भी लगाया गया है। यह पेड़ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और पर्यावरण को लाभ पहुंचाने में सहायक होते हैं।
इस मामले में एनजीटी ने 18 मई 2024 को अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है।
इस खबर के मुताबिक, देश के कई इलाकों में खेतों से परिपक्व पेड़ों की संख्या तेजी से घट रही है। हालांकि ज्यादातर जगहों पर यह कमी पांच से 10 फीसदी तक ही रही, लेकिन मध्य भारत, खासकर तेलंगाना और महाराष्ट्र में यह गिरावट इससे कहीं ज्यादा पाई गई।
महाराष्ट्र में 2010 से 2024 के बीच वन क्षेत्रों के बाहर बिना अनुमति के 1,65,582 पेड़ काटे गए हैं। इन पेड़ों को काटे जाने के मामलों में जुर्माना भी वसूला गया है। यह जानकारी महाराष्ट्र के प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा 16 अक्टूबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल रिपोर्ट में दी गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, जिन पेड़ों को काटा गया है, उनमें से ज्यादातर कृषि भूमि पर मौजूद थे, जो सीधे तौर पर राज्य के वन विभाग के नियंत्रण में नहीं आते। हालांकि महाराष्ट्र में ट्री फेलिंग (रेगुलेशन) अधिनियम, 1964 लागू है, जिसके तहत पेड़ों के काटे जाने को नियंत्रित और संरक्षित करने के प्रावधान किए गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक वन विभाग उन खेत मालिकों को अनुमति देता है, जो अपने खेतों में उगे निर्धारित प्रजातियों के परिपक्व पेड़ को वैध रूप से काटना चाहते हैं। लेकिन अगर कोई बिना अनुमति ऐसे पेड़ काटता है, तो विभाग जमीन मालिक पर जुर्माना लगाता है।
गौरतलब है कि इस मामले में एनजीटी ने 18 मई 2024 को अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है।
इस खबर के मुताबिक, देश के कई इलाकों में खेतों से परिपक्व पेड़ों की संख्या तेजी से घट रही है। हालांकि ज्यादातर जगहों पर यह कमी पांच से 10 फीसदी तक ही रही, लेकिन मध्य भारत, खासकर तेलंगाना और महाराष्ट्र में यह गिरावट इससे कहीं ज्यादा पाई गई।
बता दें कि इस विषय पर डाउन टू अर्थ में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि 2018 से 2022 के बीच देश में करीब 53 लाख पेड़ खेतों से गायब हो चुके हैं। मतलब की इस दौरान हर किलोमीटर क्षेत्र से औसतन 2.7 पेड़ नदारद मिले। वहीं कुछ क्षेत्रों में तो हर किलोमीटर क्षेत्र से 50 तक पेड़ गायब हो चुके हैं।
बता दें कि इन पेड़ों का मुकुट करीब 67 वर्ग मीटर या उससे बड़ा था। इनमें नीम, महुआ, जामुन, कटहल, खेजड़ी (शमी), बबूल, शीशम, करोई, नारियल आदि जैसे बहुउद्देशीय पेड़ शामिल हैं, जो कई तरह से फायदेमंद होते हैं।
यह पेड़ मिट्टी की उर्वरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ छाया प्रदान करके पर्यावरण की मदद करते हैं। साथ ही किसानों को फल, लकड़ी, जलावन, चारा, दवा जैसे उपयोगी उत्पाद भी देते हैं। सूखने के बाद इनकों बेच कर अतिरिक्त आय भी अर्जित की जा सकती है।
इस बारे में अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक अध्ययन में इन विशाल पेड़ों के गायब होने की वजहों की भी पड़ताल की है। इसके मुताबिक इन पेड़ों के गायब होने की सबसे बड़ी वजह खेती-किसानी के तौर तरीकों में आता बदलाव है। देखा जाए तो जैसे-जैसे किसानी के तरीकों में बदलाव आ रहा है खेतों में मौजूद इन पेड़ों को फसलों की पैदावार के लिए हानिकारक माना जा रहा है।
रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि सिंचाई के साधनों में होते इजाफे के साथ विशेषकर धान के खेतों में जगह बनाने के लिए ज्यादातर पेड़ों को काट दिया गया, क्योंकि किसानों को लगता है कि यह पेड़ उनकी फसलों के लिए खतरा हैं। उनके मुताबिक नीम जैसे पेड़ जिनकी छाया बहुत गहरी होती वो फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।