राणापुर में पेड़ों को काट आरक्षित वन भूमि पर किया अवैध कब्जा, सहायता के नाम पर सरकार से हड़पे लाखों

आरोप है कि अतिक्रमणकारियों ने पेड़ों को काट आरक्षित वन क्षेत्र में न केवल फार्महाउस बल्कि सडकें भी बनाई हैं। इतना ही नहीं उन्होंने वित्तीय सहायता के नाम पर सरकार से लाखों रुपए भी हड़पे हैं
पेड़ों को काट बढ़ता विनाश; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
पेड़ों को काट बढ़ता विनाश; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अखुपदर गांव में आरक्षित वन क्षेत्र पर कथित अतिक्रमण की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का निर्देश दिया है। मामला ओडिशा में नयागढ़ जिले की राणापुर तहसील का है।

इस समिति में नयागढ़ के जिला मजिस्ट्रेट, खोरधा के प्रभागीय वन अधिकारी और ओडिशा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल होंगे। अदालत ने समिति से साइट का दौरा करने के साथ लगाए आरोपों के संबंध में चार सप्ताह के भीतर हलफनामे पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

आरोप है कि कुछ लोगों ने अखुपदर गांव में आरक्षित वन भूमि पर अवैध रूप से अतिक्रमण किया है। उन्होंने न केवल पेड़ों को काटकर फार्महाउस बनाया साथ ही सड़कें भी बनाई हैं। अवैध कब्जे का यह गोरखधंदा यहीं तक सीमित नहीं है, अतिक्रमण करने वालों ने इस जमीन पर तालाब भी खुदवाएं हैं। साथ ही विभिन्न योजनाओं का सहारा लेकर सरकारी वित्तीय सहायता के रूप में लाखों रुपए भी हड़प लिए हैं।

यह भी सामने आया है कि आरक्षित वन भूमि पर मुर्गी और मछली पालन के लिए वित्तीय सहायता दी गई। इसके अतिरिक्त, नयागढ़ कृषि और बागवानी विभागों ने अतिक्रमणकारियों को फलों की खेती के लिए सब्सिडी भी दी थी।

आरोप है कि तालाब खोदने, मछली पकड़ने और अन्य अवैध गतिविधियों के चलते वन भूमि को अवरुद्ध कर दिया गया, वहां पेड़ों को काटा गया और प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। इसके साथ ही यह भी दावा किया गया है कि इन अवैध गतिविधियों में नयागढ़ के विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत रही है, क्योंकि उनकी जानकारी के बिना ऐसा किया जाना मुमकिन नहीं है।

इस मामले में आवेदक ने वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण, तालाब की खुदाई और आरक्षित वन क्षेत्र को हुए अन्य नुकसान के सबूत के रूप में तस्वीरें प्रस्तुत की हैं। आवेदक ने अधिकारों का अभिलेख (आरओआर) भी संलग्न किया है, जिसमें दर्शाया गया है कि नयागढ़ जिले के रानपुर तहसील में वन भूमि के रूप में नामित खाता संख्या 154, प्लॉट संख्या 305 पर पोल्ट्री फार्म बनाने के लिए अवैध रूप से कब्जा किया गया है। यह 4.950 एकड़ भूमि पर फैला है। उनका आरोप है कि इसकी वजह से आरक्षित वन के भीतर पर्यावरण गंभीर रूप से प्रदूषित हो रहा है।

मामले पर गौर करने के बाद अदालत का कहना है कि यह मामला वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के उल्लंघन तथा अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित है , ऐसे में इस पर विचार करने की जरूरत है।

दामोदर नदी पर चलता अवैध खनन का कारोबार, आरोपों की जांच के लिए एनजीटी ने दिए निर्देश

दामोदर नदी तल से हो रहे अवैध रेत खनन के आरोपों की जांच के लिए एनजीटी ने जांच के निर्देश दिए हैं। एनजीटी की पूर्वी बेंच ने इस मामले में तीन सदस्यीय समिति से साइट का दौरा करने को भी कहा है। मामला पश्चिम बंगाल में बांकुरा के नफरदंगा मदनमोहनपुर का है।

29 मई, 2024 को दिए अपने इस आदेश में अदालत ने समिति से आवेदन में लगाए आरोपों के संबंध में चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। इस मामले में बांकुरा के जिला मजिस्ट्रेट नोडल एजेंसी होंगे।

आरोप है कि दामोदर नदी के दक्षिणी हिस्से से जेसीबी और पोकलेन जैसी मशीनों की मदद नदी तल से रेत का अवैध खनन किया जा रहा है। इसकी वजह से आवेदक और ग्रामीणों को पर्यावरण से जुड़े गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है। आवेदक के मुताबिक यांत्रिक उपकरणों का उपयोग करके रेत के बेतहाशा होते खनन ने नदी के नियमित मार्ग को प्रभावित कर दिया है, जिससे नदी तल में कटाव और रेत की कमी हो रही है।

इसकी वजह से नदी तल गहरे हो रहे हैं और मुहाने चौड़े हो गए हैं। नतीजन पानी का खारापन बढ़ रहा है। यह भी आरोप है कि इसकी वजह से ग्रामीणों के घर और जीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। डर है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो मानसून के दौरान कभी भी गांव में बाढ़ आ सकती है। 

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