गुना में पेड़ों को काट वन भूमि पर हुआ अतिक्रमण, एनजीटी ने तत्काल कार्रवाई के दिए निर्देश

रिपोर्ट के मुताबिक वन क्षेत्र में 26.487 हेक्टेयर भूमि पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है और उसपर खेती की जा रही है
पेड़ों को काट बढ़ता विनाश; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
पेड़ों को काट बढ़ता विनाश; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सेंट्रल बेंच ने गुना के कलेक्टर और राघौगढ़ के तहसीलदार से जंगलों पर हुए सभी तरह के अतिक्रमण हटाने को कहा है।

14 नवंबर 2024 को दिए इस आदेश में उन्हें इस भूमि को वन विभाग को सौंपने और उसकी सीमा की पहचान करने के साथ-साथ चिह्नित करने के लिए भी कहा है। इसके साथ ही वन भूमि को सही तरीके से संरक्षित करने का भी निर्देश अदालत ने दिया है।

अगर इन आदेशों का पालन नहीं किया जाता, तो गुना के कलेक्टर और राघौगढ़ के तहसीलदार को व्यक्तिगत हलफनामे में इसका कारण बताना होगा। उन्हें चार  दिसंबर, 2024 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए ट्रिब्यूनल की कार्यवाही में भी शामिल होने को कहा गया है। इसका उद्देश्य मुद्दे को सुलझाना और यह सुनिश्चित करना है कि राज्य की जमीन नियमों के मुताबिक सुरक्षित रहे।

गौरतलब है कि आवेदन में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के उल्लंघन के साथ-साथ राघौगढ़ तहसील के कंपार्टमेंट नंबर 678 में वन भूमि के अवैध उपयोग को लेकर चिंता जताई गई थी। आरोप है कि कुछ लोगों ने वन भूमि पर अतिक्रमण कर उसे निजी संपत्ति में बदल दिया है और पर्यावरण नियमों का भी उल्लंघन किया जा रहा है।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में अदालत को जानकारी दी है कि वन सीमा पी678 में एक जनवरी 2021 से 30 नवंबर 2023 के बीच 64 से ज्यादा पेड़ काटे गए। इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 26.487 हेक्टेयर भूमि पर अवैध रूप से कब्जा किया गया और उसपर खेती की जा रही है।

इसके साथ ही 7.457 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, लेकिन अधिकारियों को सूचित किए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसके अलावा 19.030 हेक्टेयर भूमि पर 23 लोगों ने कब्जा कर रखा है।

अदालत को बताया गया है कि वन भूमि पर कई अतिक्रमण हुए हैं, लेकिन जिला प्रशासन ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है। हालांकि वन विभाग ने इस मुद्दे पर जिला प्रशासन को बार-बार सूचना दी है।

कचरा प्रबंधन से जुड़े नियमों का पालन करें बालाघाट नगर पालिका परिषद: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संबंधित अधिकारियों से बालाघाट में ठोस कचरे के प्रबंधन से जुड़े नियमों का पालन करने को कहा है। मामला मध्य प्रदेश के बालाघाट का है।

14 नवंबर, 2024 को दिए इस आदेश में अदालत ने लम्बे समय से जमा कचरे को भी साफ करने और उसका उचित तरीके से निपटान करने का भी निर्देश दिया है। इस मामले में क्या कार्रवाई की गई है, उसके सम्बन्ध में दो महीनों के भीतर अदालत के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

आवेदक के वकील ने अदालत को जानकारी दी है कि बालाघाट नगर पालिका परिषद ठोस कचरे का उचित तरीके से निपटान नहीं कर रही है। न ही वो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को गंभीरता से ले रही है।

वहीं बालाघाट  नगर पालिका की ओर से पेश वकील ने कहा है कि वित्तीय संकट के चलते नगर पालिका इस मामले पर ध्यान नहीं दे पा रही है। इस मामले में उन्होंने मध्य प्रदेश के शहरी विकास एवं पर्यावरण विभाग (यूएडीडी) से मदद मांगी है। यूएडीडी ने बालाघाट के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है। वे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने पर भी काम कर रहे हैं, जो अंतिम चरण में है।

महाराष्ट्र, ओडिशा और त्रिपुरा के भूजल में मौजूद है आर्सेनिक और फ्लोराइड: केंद्रीय भूजल प्राधिकरण

महाराष्ट्र, ओडिशा और त्रिपुरा के भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड मौजूद है। यह जानकारी केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने 18 नवंबर, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सौंपी अपनी रिपोर्ट में दी है।

वहीं महाराष्ट्र सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में आर्सेनिक की मौजूदगी नहीं पाई गई है। हालांकि, 150 स्थानों पर फ्लोराइड पाया गया है। इनमें 140 स्रोत ग्रामीण क्षेत्रों में जबकि दस शहरी क्षेत्रों से जुड़े हैं। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में, पांच स्थानों पर दोबारा की गई जांच में कोई प्रदूषण नहीं पाया गया है, जबकि शेष 135 स्रोतों से पीने के लिए पानी लिए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही इस समस्या से निपटने के लिए, प्रभावित गांवों में डीफ्लोराइडेशन और आरओ प्लांट लगाए गए हैं।

ओडिशा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य के गहरे जलस्रोत आर्सेनिक मुक्त हैं। 18 जून, 2024 तक 18 क्षेत्रों में फ्लोराइड पाया गया। राज्य ने दूषित जल स्रोतों को बंद कर दिया है और इस बस्तियों में अल्पकालिक उपाय के रूप में सामुदायिक जल शोधन संयंत्र स्थापित करके कार्रवाई की है। इसके अतिरिक्त, इन प्रभावित क्षेत्रों को अब एकल-ग्राम या बहु-ग्राम पाइप जल योजनाओं के माध्यम से साफ पानी की आपूर्ति की जा रही है।

त्रिपुरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2019 से 2023 के बीच आठ जिलों से पानी के 915 नमूने लिए गए हैं। इन सभी 915 नमूनों में आर्सेनिक और फ्लोराइड का स्तर जांचे जाने योग्य सीमा से नीचे पाया गया है।

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