
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के दादरी खुर्द गांव में कोयला आधारित सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट की स्थापना के लिए 8.3581 हेक्टेयर वन भूमि उपयोग (फॉरेस्ट डाइवर्जन) का प्रस्ताव पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के लखनऊ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में विचाराधीन है। इस प्लांट की कुल क्षमता 2x800 मेगावाट है।
हालांकि, 25 फरवरी 2025 को हुई साइट निरीक्षण में पाया गया कि परियोजना प्रस्तावक कंपनी मिर्जापुर थर्मल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड ने पहले ही पूरे क्षेत्र में बाउंड्री वॉल बना दी है और वर्षा जल संग्रहण हेतु एक तालाब भी तैयार कर लिया है। 20 मार्च, 2025 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, परियोजना भूमि के ऊपर से बिजली की हाई टेंशन तारें भी गुजर रही हैं।
निरीक्षण में यह भी पाया गया कि परियोजना स्थल का मुख्य सड़क से कोई सीधा संपर्क नहीं है। केवल एक रास्ता वन भूमि से होकर है, जिसका उपयोग परियोजना पक्ष ने स्थानीय वन विभाग (मदिहान रेंज) से 5,000 रुपए (16 अगस्त 2024 को) और 11,650 रुपए (30 दिसंबर 2024 को) शुल्क देकर किया है।
एनजीटी के समक्ष दायर एक आवेदन में कहा गया है कि मिर्जापुर एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संयंत्र की स्थापना के लिए अवैध निर्माण किया गया है। साथ ही बड़े पैमाने पर वनस्पति और जंगल को साफ करके भूमि को समतल किया गया था।
पहले रद्द हो चुकी है पर्यावरण मंजूरी
इस परियोजना को पहले 21 अगस्त 2014 को पर्यावरण मंजूरी दी गई थी, जिसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 21 दिसंबर 2016 को रद्द कर दिया था।
अब परियोजना पक्ष ने 8 मई 2024 को फिर से विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए ) के लिए पर्यावरण मंत्रालय के पास ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत विस्तृत ईआईए अध्ययन करने और टर्म्स ऑफ रेफरेंस (टीओआर) प्रदान करने के लिए आवेदन किया है।
परियोजना स्थल के भीतर 0.62 हेक्टेयर क्षेत्र को शुरू में वन भूमि बताया गया था, लेकिन वन विभाग और राजस्व विभाग के संयुक्त निरीक्षण में यह गैर-वन भूमि निकली।
हालांकि, एक जल पाइपलाइन और सड़क मार्ग के पास वन क्षेत्र की मौजूदगी के कारण अब करीब 4.0123 हेक्टेयर वन भूमि के लिए स्टेज-I फॉरेस्ट क्लीयरेंस का आवेदन किया गया है, जो अब मंत्रालय में विचाराधीन है।
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) की केंद्रीय विशेषज्ञ समिति (ईएसी) ने परियोजना प्रस्तावक से कहा है कि वह वन विभाग से स्पष्ट पत्र ले जिसमें यह बताया जाए कि परियोजना क्षेत्र के अंदर और बाहर कितनी वन भूमि शामिल है।
इसके साथ ही समिति ने सुझाव दिया है कि परियोजना की योजना बनाते समय वन भूमि की आवश्यकता को यथासंभव कम करने की कोशिश की जाए और इसका विवरण पर्यावरण मंजूरी के दौरान पेश किया जाए।