आज दुनिया भर में मनाया जाता है नारियल दिवस, क्या है मकसद

नारियल केवल भोजन का साधन नहीं, बल्कि आजीविका, संस्कृति, परंपरा और पर्यावरण से जुड़ा एक अमूल्य उपहार है।
भारत में इस अवसर पर नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में नारियल से जुड़े उद्योग, किसान और शोधकर्ताओं को एक साथ लाया जाता है।
भारत में इस अवसर पर नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में नारियल से जुड़े उद्योग, किसान और शोधकर्ताओं को एक साथ लाया जाता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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हर साल दो सितंबर को विश्व नारियल दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को नारियल के महत्व, उसकी उपयोगिता और किसानों व उद्योगों को मिलने वाले फायदे के बारे में जागरूक करना है। नारियल केवल एक फल ही नहीं, बल्कि जीवन के लिए वरदान माना जाता है, इसीलिए कई देशों में इसे “जीवन का वृक्ष” भी कहा जाता है।

यह दिन एशियन पैसिफिक कोकोनट कम्युनिटी (एपीसीसी) की स्थापना की याद में मनाया जाता है, जिसकी स्थापना 1969 में हुई थी। एपीसीसी का मुख्यालय जकार्ता, इंडोनेशिया में है और इसमें भारत सहित सभी प्रमुख नारियल उत्पादक देश सदस्य हैं। इसका उद्देश्य किसानों को सशक्त बनाना, उद्योगों को मजबूत करना और नारियल से जुड़े अनुसंधान को बढ़ावा देना है।

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भारत में इस अवसर पर नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में नारियल से जुड़े उद्योग, किसान और शोधकर्ताओं को एक साथ लाया जाता है।

नारियल दिवस हमें यह याद दिलाता है कि नारियल गरीब किसानों के लिए आजीविका का साधन है और कई उद्योगों की रीढ़ है। यह किसानों को आर्थिक स्थिरता देता है। नारियल आधारित उत्पादों से निर्यात और व्यापार बढ़ता है। नारियल की खेती में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा मिलता है। यह हमें पारंपरिक और सांस्कृतिक उपयोगों से भी जोड़ता है।

🥥 कहां-कहां होता है नारियल का उपयोग?

नारियल का हर हिस्सा काम आता है। तना और लकड़ी - घर बनाने, फर्नीचर और नावों में प्रयोग होता है। छिलका और रेशा (कोयर) - रस्सी, जाल, चटाई, दरवाजे के पायदान और ब्रश बनाने में उपयोग होता है। छिलके से बने बोर्ड - कारों के फर्श, कुर्सी और हल्के फर्नीचर बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

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हाइड्रोपोनिक खेती - नारियल का भूसा ऑर्किड और मशरूम जैसी फसलों को उगाने में भी उपयोग में लाया जाता है। सक्रिय कार्बन पानी साफ करने वाले फिल्टर में उपयोग होता है। पानी और गूदा - स्वास्थ्यवर्धक पेय, भोजन, मिठाइयों और नारियल का दूध बनाने में उपयोग किया जाता है। तेल और सौंदर्य प्रसाधन - खाना पकाने, साबुन, क्रीम और बालों की देखभाल में नारियल तेल का उपयोग किया जाता है।

🌴 दुनिया में नारियल की किस्में

दुनिया में नारियल की लगभग 150 किस्में और 80 देशों में नारियल की खेती की जाती है। कुछ प्रमुख किस्मों में मलेशियन येलो ड्वार्फ, फिजी ड्वार्फ, र्फगोल्डन मले, किंग कोकोनट, वेस्ट कोस्ट टॉल, मयपन और पनामा टॉल, ईस्ट कोस्ट टॉल, ड्वार्फ ऑरेंज और ग्रीन ड्वार्फ शामिल हैं।

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🌴 नारियल से जुड़े रोचक तथ्य

"कोकोनट " शब्द पुर्तगाली भाषा के कोको से बना है, जिसका अर्थ है चेहरा (क्योंकि नारियल के तीन छेद चेहरे जैसे लगते हैं)। नारियल के छिलके से बने अर्क में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण पाए गए हैं। एक नारियल का पेड़ साल में 30 से 70 नारियल देता है, कई बार 180 तक भी पहुंच जाता है। पेड़ की आयु 100 साल तक हो सकती है, लेकिन फल लगभग 80 साल तक ही देता है।

द्वितीय विश्व युद्ध में नारियल पानी को सलाइन सॉल्यूशन के रूप में डिहाइड्रेशन से पीड़ित सैनिकों को चढ़ाया गया था। नारियल वास्तव में बीजदार फल है, न कि सूखा मेवा।

नारियल में मौजूद पोषक तत्व – फाइबर, विटामिन सी, ई, बी1, बी3, बी 5, बी6 और आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, जिंक आदि। नारियल के पेड़ से लकड़ी, पानी, दूध, तेल, सब कुछ मिलता है।

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🌴 दुनिया भरा में नारियल उत्पादन करने वाले अग्रणी पांच देश

इंडोनेशिया

फिलीपींस

भारत

श्रीलंका

ब्राजील

🌴 भारत में नारियल उत्पादन करने वाले शीर्ष पांच राज्य

कर्नाटक

तमिलनाडु

केरल

आंध्र प्रदेश

पश्चिम बंगाल

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🌴 भारत और नारियल

भारत में इस अवसर पर नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में नारियल से जुड़े उद्योग, किसान और शोधकर्ताओं को एक साथ लाया जाता है। इसके साथ ही, नारियल की खेती और उद्योग से जुड़े उत्कृष्ट कार्य करने वालों को राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए जाते हैं।

साल 2019 में विश्व नारियल दिवस का मुख्य आयोजन असम में किया गया था। इस आयोजन के दौरान नारियल विकास बोर्ड ने असम को आने वाले समय में भारत का एक प्रमुख नारियल उत्पादक राज्य बताया।

आयोजन के दौरान कहा गया था कि वर्तमान समय में पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों में लगभग 33,493 हेक्टेयर भूमि पर नारियल की खेती हो रही है। इसमें से अकेले असम में लगभग 20,368 हेक्टेयर भूमि पर नारियल उगाया जा रहा है। इसका मतलब है कि उत्तर-पूर्व में नारियल की खेती का सबसे बड़ा हिस्सा असम में है।

नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी)
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भारत में इस अवसर पर नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में नारियल से जुड़े उद्योग, किसान और शोधकर्ताओं को एक साथ लाया जाता है।

असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में जलवायु और मिट्टी नारियल की खेती के लिए उपयुक्त है। यही कारण है कि आने वाले वर्षों में यहां नारियल की खेती और उद्योग में बड़ी संभावनाएं हैं। इससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय उद्योगों और रोजगार के नए रास्ते भी खुलेंगे।

नारियल केवल भोजन का साधन नहीं, बल्कि आजीविका, संस्कृति, परंपरा और पर्यावरण से जुड़ा एक अमूल्य उपहार है। यह पेड़ हमें जीवन के हर क्षेत्र में सहयोग देता है - भोजन, औषधि, निर्माण, सौंदर्य और पर्यावरण संरक्षण। यही कारण है कि इसे सही मायने में “जीवन का वृक्ष” कहा जाता है। इसलिए नारियल के पेड़ों को संरक्षित करना और उनके उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। नारियल का संरक्षण किसानों के उत्थान और सतत विकास की राह के लिए अहम है।

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