भूख के साये में विकास! 29.5 करोड़ खाली पेट, रिकॉर्ड तोड़ता कुपोषण

'वैश्विक खाद्य संकट रिपोर्ट 2025' में सामने आया है कि 2024 में लगातार छठे साल दुनिया में गंभीर खाद्य संकट और बच्चों में कुपोषण बढ़ा है
दुनिया का सबसे कमजोर तबका आज भी संघर्ष, महंगाई, जलवायु संकट और जबरन विस्थापन के चक्रव्यूह में उलझा है; फोटो: आईस्टॉक
दुनिया का सबसे कमजोर तबका आज भी संघर्ष, महंगाई, जलवायु संकट और जबरन विस्थापन के चक्रव्यूह में उलझा है; फोटो: आईस्टॉक
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भले ही दुनिया विकास के कितने भी दम्भ भरे या यह कहे कि उसने तकनीकों पर कितनी सफलता हासिल कर ली है। लेकिन खाली पेट आज भी एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। इसकी पुष्टि विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की नई रिपोर्ट भी करती है।

दुनिया में 29.5 करोड़ लोग आज भी ऐसे हालात में जी रहे हैं जहां उनके लिए एक वक्त का खाना भी जुटा पाना मुश्किल है। यह खुलासा आज जारी 'वैश्विक खाद्य संकट रिपोर्ट 2025' में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का सबसे कमजोर तबका आज भी संघर्ष, महंगाई, जलवायु संकट और जबरन विस्थापन के चक्रव्यूह में उलझा हुआ है। इन सबने पहले से नाजुक हालातों को और अधिक त्रासद बना दिया है।

देखा जाए तो दुनिया के सबसे कमजोर और संकटग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए 2024 एक बुरे सपने से कम नहीं था। रिपोर्ट में सामने आया है कि 2024 में लगातार छठे साल दुनिया में गंभीर खाद्य संकट और बच्चों में कुपोषण बढ़ा है। इससे दुनिया के कई कमजोर इलाकों में करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।

रिपोर्ट में साझा आंकड़ों से पता चला है कि 2024 में 53 देशों या क्षेत्रों के 29.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहे थे। यह आंकड़ा 2023 के मुकाबले 1.37 करोड़ अधिक है। मतलब की सुधार की जगह स्थिति पहले से कहीं अधिक खराब हो गई है।

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रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि, जितनी भी आबादी एक आकलन किया गया उसमें से 22.6 फीसदी हिस्सा गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहा था। चिंता की बात है कि लगातार पांचवें साल यह आंकड़ा 20 फीसदी से अधिक पर बना हुआ हुआ है।

छठे साल भी गहराया संकट

19 लाख लोगों की स्थिति तो इतनी खराब है कि वे भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। आप को जानकर हैरानी होगी कि जब से 2016 से यह आंकड़ें जुटाने शुरू के गए हैं, यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।

दुनिया के 26 संकटग्रस्त क्षेत्रों में पांच साल से कम उम्र के करीब 3.8 करोड़ बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित पाए गए हैं। गाजा, माली, सूडान और यमन जैसे क्षेत्रों में हालात सबसे ज्यादा चिंताजनक हैं। सूडान में अकाल की स्थिति की पुष्टि हुई है, 2020 के बाद पहली बार है जब दुनिया में कहीं अकाल घोषित किया गया है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जबरन विस्थापन भुखमरी के संकट को और बढ़ा रहा है। 12.8 करोड़ विस्थापितों में से 9.5 करोड़ ऐसे देशों में रह रहे हैं जो खाद्य संकट झेल रहे हैं, इनमें डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, कोलंबिया, सूडान और सीरिया जैसे देश शामिल हैं।

सफलता या मानवता की असफलता

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस रिपोर्ट को दुनिया की "निष्क्रियता का आईना" बताया है। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ सिस्टम की विफलता नहीं, बल्कि मानवता की असफलता है। 21वीं सदी में भूखमरी स्वीकार नहीं की जा सकती। खाली पेटों का जवाब हम खाली हाथों और पीठ फेरकर नहीं दे सकते।“

रिपोर्ट में बढ़ते खाद्य संकट के कारणों को भी उजागर किया है।

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रिपोर्ट से पता चला है कि 20 देशों में करीब 14 करोड़ लोग युद्ध और भड़की हिंसा के कारण भूख के शिकार हैं। सूडान में तो भुखमरी की पुष्टि हो चुकी है। गाजा, हैती, माली और दक्षिण सूडान में भी हालात बेहद चिंताजनक हैं। आर्थिक संकट से भी स्थिति बिगड़ रही है।

महंगाई और मुद्रा में आई गिरावट जैसे आर्थिक झटकों ने 15 देशों में 5.94 करोड़ लोगों को संकट में डाल दिया है, हैरानी की बात है कि ये आंकड़े अब भी कोविड से पहले के मुकाबले दुगने हैं।

मौसम की मार भी लोगों को पीड़ा दे रही है। अल नीनो से प्रभावित सूखा और बाढ़ ने 18 देशों में 9.6 करोड़ लोगों को खाद्य संकट में धकेल दिया है। खासकर दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिण एशिया और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में स्थिति कहीं ज्यादा खराब है।

रिपोर्ट में यह भी अंदेशा जताया गया कि 2025 में हालात में ज्यादा सुधार नहीं होगा। खाद्य और पोषण सहायता के लिए मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय फंडिंग में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है।

खाद्य संकट की गंभीर स्थिति और कुपोषण रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके हैं, लेकिन दूसरी तरफ वैश्विक मदद और राजनीतिक इच्छाशक्ति घट रही है। ऐसे में रिपोर्ट में आपात राहत से आगे बढ़कर संकटग्रस्त इलाकों में स्थानीय खाद्य प्रणालियों और पोषण सेवाओं में निवेश पर जोर दिया है। यह बदलाव विशेष रूप से उन इलाकों के लिए जरूरी है जहां 70 फीसदी ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि भूख और कुपोषण के बढ़ते संकट को रोकने के लिए अब एक ठोस क़दमों के साथ नया रास्ता अपनाने की जरूरत है। ऐसा रास्ता जो असरदार और ठोस सबूतों पर आधारित हो।

इसका मतलब है कि संसाधनों को मिलाकर काम किया जाए, जो योजनाएं कारगर हैं उन्हें बड़े स्तर पर लागू किया जाए, और प्रभावित समुदायों की जरूरतों और आवाज को हर कदम पर प्राथमिकता दी जाए।

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